ज्ञान और पाठ्यचर्या बी एड द्वितीय वर्ष पीडीएफ
ज्ञान और पाठ्यचर्या (PAPER-6B)
Unite- 1
पाठ्यचर्या की प्रकृति
पाठ्यचर्या क्या है के बाद अब हम जानते हैं कि पाठ्यचर्या की प्रकृति
शिक्षा का इतिहास हमें बताता है कि समय-समय पर पाठ्यचर्या की प्रकृति कैसी रही है ?
कभी पाठ्यचर्या संकीर्ण रही है तो कभी पाठ्यचर्या व्यापक रही है। इसका स्वरूप तथा प्रकृति हमेशा बदलती रही है।
पाठ्यचर्या स्वयं में कई तत्वों को समेट लेती है। पाठ्यचर्या किसी भी देश का भविष्य हो सकता है किसी विद्वान का विचार हो सकता है या पाठ्यचर्या आवश्यकता हो सकती है। पाठ्यचर्या ने समय के साथ-साथ स्वयं में परिवर्तन किया है।
किंतु आधुनिक काल में पाठ्यचर्या में विराट और अमूल चूल परिवर्तन हुए हैं। विशेषकर ब्रिटिश सत्ता ने पाठ्यचर्या में बहुत सीमा तक परिवर्तन किया तथा हमारे भारतीय शिक्षाविदों महापुरुषों आदि ने पाठ्यचर्या को एक सुंदर नवीन और आवश्यकतानुसार रूप प्रदान किया है।
इसे उपयोगिता परिणाम प्रदाता बनाया गया है। इसमें ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान आधुनिकता तकनीकी आदि को सम्मिलित किया गया है। पाठ्यचर्या की प्रकृति परिवर्तनशील रही है।
वर्तमान में पाठ्यचर्या और अधिक विस्तृत रूप में सामने आई है इसमें व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की क्रियाओं का चिंतन तथा मनन किया गया हैं।
पाठ्यचर्या की परिभाषा
पाठ्यचर्या क्या है इसकी परिभाषा अलग अलग दार्शनिक के द्वारा
फ्रोबेल के अनुसार
पाठ्यचर्या को मानव जाति के संपूर्ण ज्ञान तथा अनुभव का सार समझना चाहिए।
मुनरो के अनुसार
पाठ्यचर्या में वे सभी क्रियाएं सम्मिलित हैं जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते हैं।
डिवी के अनुसार
सीखने का विषय या पाठ्यचर्या पदार्थों विचारों और सिद्धांतों का चित्रण है जो निरंतर उद्देश्य पूर्ण क्रियान्वयन अन्वेषण के साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।
हेनरी के अनुसार
पाठ्यचर्या में वे सभी क्रियाएं लिए जाती है
जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार
पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सेधांतिक विश्व में से नहीं है जो विद्यालय में परंपरागत रूप से पढ़ाई जाते हैं बल्कि इसमें अनुभव कि वह संपूर्णता भी सम्मिलित होती है जिनको विद्यार्थी विद्यालय कक्षा कक्ष पुस्तकालय प्रयोगशाला कार्यशाला खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक को औपचारिक संपर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का संपूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके संतुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।
शिक्षा में पाठ्यचर्या की आवश्यकता
• शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु
पाठ्यक्रम शैक्षणिक उद्देश्यों की प्राप्ति का एक मुख्य साधन है बिना पाठ्यचर्या के शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति संभव नहीं है। जीवन में प्रत्येक कार्य किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है। उसी प्रकार शिक्षा के सभी उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं। इन शैक्षणिक उद्देश्यों की प्राप्ति उचित वाक्य सरिया निर्धारण करके ही प्राप्त की जा सकती है।
2) शिक्षण सामग्री के निर्धारण हेतु
प्रत्येक विद्यालय में समय सारणी का
निर्धारण पाठ्यचर्या की सहायता से ही
किया जाता है और यह तय किया जाता
हैकि पाठ्यचर्या सम्मिलित पाठ्यक्रम
को कब कैसे एवं किस प्रकार में बालकों
के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिससे बालकों
का अधिगम स्तर ऊंचा उठ सके। पाठ्यचर्या
के अभाव में यह संभव नहीं हो पाता।
3)शिक्षण विधियों के निर्धारण में
पाठ्यचर्या शिक्षकों की शिक्षण विधि के निर्धारण में सहायता प्रदान करती है। पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि उसे किस कक्षा के बालकों को किस तरह का पाठ्यक्रम पढ़ना है।
4) पाठ्य पुस्तकों की रचना
पाठ्य पुस्तकों का निर्धारण या निर्माण पाठ्यचर्या पर ही आधारित होता है। पाठ्य पुस्तकों को का मूल आधार पाठ्यचर्या ही होता है पाठ्यचर्या का निर्धारण प्रत्येक कक्षा के लिए अलग-अलग होता है जो कि उस आयु वर्ग के बालकों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। पाठ्यचर्या की सहायता से पाठ्य सामग्री का निर्माण किया जाता है।
5) शिक्षा का स्तर के निर्धारण हेतु
पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षा के उचित स्तर का निर्धारण किया जाता है क्योंकि पाठ्यचर्या के आधार पर ही विभिन्न स्तर के बालकों को किस स्तर की शिक्षा देनी है। यह पाठ्यचर्या की सहायता से ही सुनिश्चित किया जाता है। प्राथमिक स्तर के बालकों के लिए सरल व रोचकता से परिपूर्ण पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर के बालकों का ज्ञानवर्धक एवं तर्कपूर्ण पाठ्यक्रम तथा उच्च कक्षाओं के लिए गहन चिंतन सिले प्रयोगात्मक अध्ययन का सुझाव पाठ्यचर्या के माध्यम से ही प्राप्त होता है।
छिपी हुई पाठ्यचर्या
एक प्रच्छन्न पाठ्यचर्या एक अज्ञात या किसी का ध्यान नहीं जाने वाला पाठ्यक्रम है जो अक्सर अलिखित होता है। विभिन्न साधनों के माध्यम से संगठन द्वारा शिक्षाप्रद निवेश को स्पष्ट रूप से प्रदान किया जाता है। शिक्षार्थी कक्षा और स्कूल के सामाजिक परिवेश से बहुत कुछ सीखते हैं।
छिपे हुए पाठ्यक्रम में अनकहे या अंतर्निहित शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश शामिल होते हैं जो को सूचित किया जाता है
कोर पाठ्यचर्या
विद्यालय में ज्ञान का संगठन या संरचना
पाठ्यचर्या की अलग-अलग कल्पना और संबंधित मुद्दे :-
राष्ट्र स्तर पर राज्य स्तर पर स्कूल स्तर परऔर कक्षा स्तर पर
राष्ट्र स्तर पर पाठ्यक्रम की कल्पना:-
किसी समाज को विकसित करने में सबसे पहले देश की राष्ट्रीय पहचान को सुरक्षित करने और इसकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से उच्च शिक्षा में स्कूली पाठ्यक्रम विकसित किया जाना चाहिए ।
अपने नागरिकों को शिक्षा प्रदान करने में राष्ट्र की अपनी भूमिका होती है।
यह प्रभावी शिक्षण और उनके उज्जवल भविष्य के लिए राष्ट्र की जिम्मेदारी है कि वह अपने छात्रों के लिए प्रभावी पाठ्यक्रम तैयार करें।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान में और प्रशिक्षण परिषद एनसीईआरटी भारत की राजधानी नई दिल्ली में अस्तित्व सर्वोच्च निकाय है।यह संपूर्ण भारत में स्कूली शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम संबंधी मामले बनता है।एनसीईआरटी भारत और विदेशों में शिक्षा नीतियों को लागू करने के लिए कई पहलुओं में कई स्कूलों में सहायता मार्गदर्शन तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम का उद्देश्य
पर्यावरण की सुरक्षा करना औरप्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करना।
जाति, लिंग के किसी भी भेदभाव के बिना सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा प्रदान करना।
10+2+3 पैटर्न अस्तित्व में आना।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा तैयार करना।
शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए सीखने का न्यूनतम स्तर तय करना।
राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों की विभिन्न संस्कृत,सामाजिक व्यवस्था के बारे में बच्चों में जागरूकता लाना।
देश की संस्कृति,विरासत की निरंतरता के बीच एक संतुलित संश्लेषण की आवश्यकता की सराहना।
मानवीय मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता के साथ सभी की अंतर्निहित समानता और वैश्विक भाईचारे की आवश्यकता के बारे में जागरूकता लाना।
राष्ट्रीय प्रतीकों का ज्ञान प्रदान करना और इच्छा एवं संकल्प करना।
राष्ट्रीय पहचान और एकता की आदर्श को कायम रखना।
ज्ञान कौशल योग्यता दृष्टिकोण मूल्य का विकास जो हमारे बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
यह सुनिश्चित करना कि सीखने में रखने की पद्धति में बदलाव आए।
लचीले शिक्षण कार्यक्रम बच्चों को विविध और एकीकृत शिक्षक अनुभव प्रदान करते हैं।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या कार्य की विशेषताएं
राष्ट्रीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए
मानव संसाधनों का विकास करना।
प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर पड़ने वाले सभी लोगों के लिए सामान्य शिक्षा की व्यापक नियम रखना।
प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सामान्य शिक्षक विधि लागू करना।
ऐसी सामग्री का चयन जो सीखने के न्यूनतम स्तर
को प्राप्त करने में मदद करती है।
पाठ्यक्रम को क्रियान्वित करने में बाल केंद्रित और गतिविधि आधारित दृष्टिकोण।
परीक्षा प्रणाली का पुनर्गठन निरंतर व्यापक मूल्यांकन जिसमें स्कूल और स्कूल से बाहर की गतिविधियां शामिल है।
राष्ट्र स्तर पर पाठ्यचर्या संबंधी मुद्दे
प्रक्रिया के बजाय उत्पादन पर ध्यान देना।
व्यक्तिगत की तुलना में सामाजिक जरूरत पर ध्यान देना।मानक गैर शिक्षकों द्वारा लिखे और लागू किए जाते हैं।
आमतौर पर प्रत्येक छात्र के लिए व्यक्तिकृत करने के बजाय विषय वस्तु पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
शिक्षकों को व्यवसायिक स्वतंत्रता और निर्णय की कमी।
छात्र शिक्षक संवाद का अभाव।
निचले स्तर के ज्ञान की समझ और स्मृति पर जोर देने की परीक्षण की और ले जाता है।
रचनात्मकता की कमी
थोपी गई विचारधाराए और थोपा गया धाम।
पाठ्यक्रम विकास की जटिलता का एहसास नहीं है।
स्थानीय संसाधनों में शिक्षार्थियों की विशेषताओं का ध्यान नहीं रखा जाता है।
राज्य स्तर पर पाठ्यक्रम की कल्पना
राज्य अपने विद्यालय में पाठ्यक्रम शिक्षक विधियां शिक्षक सामग्रियों की स्थापना चयन विनियमन में भारी रूप से शामिल है।नतीजा प्रत्येक राज्य में अलग-अलग मानक और नीतियां हैं जो दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।हालांकि विद्यालय राज्य कानून द्वारा अपेक्षित से परे शिक्षण कार्यक्रम में पाठ्यक्रम और गतिविधियां प्रदान करते हैं।विशेष रूप से राज्य स्तर पर विद्यालय शिक्षा प्रणालियों को नियंत्रित करने वाले कुछ पाठ्यक्रम निकाय हैं।जैसे
राज्य स्तर पर पाठ्यक्रम तैयार करने वाले अन्य संगठन
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालई शिक्षा संस्थान
इस्लामी मदरसे
स्वत विद्यालय जैसे श्री अरविंदो इंटरनेशनल स्कूल आफ एजुकेशन पुडुचेरी आदि।
अंतरराष्ट्रीय स्कूलअर्थात अंतरराष्ट्रीय स्तर के तहत
विशेष शिक्षा(I EDC)
राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम के मुद्दे
पाठ्यक्रम की योजना बनाते समय स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर विचार नहीं किया जाता है।
राज्य ढांचे की प्रकृति और घटकों के संबंध में सहमति मौजूद है।
पाठ्यचर्या मानक अक्षर अन्य प्रणालिगत परिवर्तनों के साथ समर्थित नहीं होते हैं जैसे शिक्षक शिक्षा के लिए नए दृष्टिकोण।
राज्य की पहल को खंडित और अक्सर विरोधाभासी के रूप में देखा जा सकता है।
सीमित संसाधन और साथ में काम करने वाला स्टाफ।
अधिकांश राज्य शिक्षा विभाग स्थानीय जिलों को राज्य मानकों को लागू करने में मदद नहीं करते हैं।
राज्य व्यापी योग्यता मूल्यांकन हानिकारक शिक्षक प्रथाओं को बढ़ावादेते हैं।जैसे की विशेष शिक्षा प्लेसमेंट का प्रति धारण और दुरुपयोग,जबकि स्कूल में सुधार को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
मुद्दों का समाधान
दृष्टिकोण में छात्र कैसे सीखते हैं और पाठ्यक्रम के सभी घटकों की बातचीत का समर्थन करके नया दृष्टिकोण शामिल होना चाहिए।
राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा में दर्शनशास्त्र,तरक,लक्ष्य,शिक्षार्थी स्कूल के परिणाम,सामग्री मानक,छात्र प्रदर्शनमानक,अंतर अनुशासनात्मक रणनीतियांआदि जैसे घातक शामिल होने चाहिए।
शिक्षक की गुणवत्ता और अनुभव को उन्नत करने और पाठ्यक्रम विकास कार्यों में भागीदारी के लिए किए गए प्रयास।
विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम की कल्पना
विद्यालय शिक्षा में पाठ्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षा की वंषानिया गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए विद्यालय में आयोजित की जाने वाली सभी गतिविधियों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता हैविद्यालय पाठ्यक्रम में हम किसी शैक्षणिक संस्थान द्वारा प्रस्तावित सभी पाठ्यक्रमों को देखते हैं। जिसमें निम्नलिखित समाहित है:-
शैक्षिक कार्यक्रम, पाठ्यक्रम, अनुसूची, अध्ययन अध्ययन के लिए विषय और कार्यक्रम आदि।
विद्यालय ऐसे पाठ्यक्रम की पेशकश करते हैं जो छात्रों के लिए प्रभावी हो और शिक्षकों के लिए अपना काम करना आसान हो विद्यालय आवश्यक बदलाव करते हैं जिससे शिक्षकों और छात्रों दोनों को वर्ष बेहतर तरीके से गुजरने में मदद मिलेगी।
विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम का उद्देश्य
विद्यालय स्तर पर पाठ्यचर्या के कार्य
जिले के दृष्टिकोण पर उच्च गुणवत्ता वाले पाठ्यक्रम निर्माण के विद्यालय के दृष्टिकोण को विकसित करें।
जिला शैक्षिक के लक्ष्य का पूरक।
जिला दिशा में देश के अंतर्गत अध्ययन का अपना कार्य विकसित करें।
पाठ्यक्रम एकीकरण और सीमा निर्धारण करें।
उन सभी शिक्षकों के लिए स्टाफ विकास प्रदान करें जो पाठ्यक्रम मार्गदर्शिका का उपयोग करेंगे।
लिखित परीक्षित समर्थित सिखाए गए और सीखे गए पाठ्यक्रम को सरेक्षित करें।
पाठ्यक्रम की निगरानी और कार्यान्वयन।
पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करें
विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम के मुद्दे
शिक्षक स्वयं प्रशिक्षित एवं कुशल नहीं है।
कौशल विकास प्रधान ने देना।
टीमवर्क की कमी।
सभी प्रकार के छात्रों के लिए एक निर्धारित पाठ्यक्रम लागू करना।
स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम के मुद्दों का समाधान
शिक्षक को अच्छी तरह से प्रशिक्षित होना चाहिए और उन्हें अपने ज्ञान को अध्ययनरथ करना चाहिए जो छात्रों के सीखने और राष्ट्र के निर्माण में मदद करता है।
विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम विकास में व्यक्तिगत भिन्नताओं, कौशल विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।
कक्षा स्तर पर पाठ्यक्रम की कल्पना
एक कक्षा पाठ्यक्रम को कक्षाओं और अन्य शैक्षिक सेटिंग्स में होने वाले शिक्षक और सीखने के रूप में वर्णित किया जा सकता है। कक्षाओं के पाठ्यक्रम के केंद्र में छात्रों के सीखने और प्रभावी अभ्यास के बारे में साक्ष के आधार पर शिक्षकों के निर्णय होते हैं।कक्षा में पाठ्यक्रम किसी विद्यालय या किसी विशिष्ट पाठ्यक्रम का या कार्यक्रम में पढ़ाई जाने वाले पाठकों और शैक्षणिक सामग्रियों को संदर्भित करता है।
कक्षा पाठ्यक्रम से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न:-
क्या देना जरूरी है?
मेरे छात्र इस समय कहां है?
कौन सी रणनीतियां मेरे विद्यार्थियों को सिखाने में सबसे अधिक मदद करेगी?
शिक्षक के परिणाम स्वरूप क्या हुआ और भविष्य के शिक्षक पर इसके क्या प्रभाव होंगेमार्क?
सीखने को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अगला कदम क्या उठाया जाना चाहिए?
कक्षा पाठ्यक्रम में क्या शामिल किया जाना चाहिए
सीखने के लक्ष्य और उद्देश्य,सामग्री और छात्रों से अपेक्षाएं (ज्ञान और कौशल)।
उपलब्ध सामग्री में संपूर्ण विद्यालय,वर्ष पर और पाठ्यक्रम सीखने के क्षेत्र से जुड़ी कक्षा योजना शामिल है।
विद्यालय प्रत्येक छात्र की सीखने की जरूरत और स्थानीय संदर्भ के अनुरूप सामग्री अपना सकते हैं।
कक्षा में हम इच्छित और छिपे हुए पाठ्यक्रम को देखते हैंजैसे छात्र सीखते हैं क्योंकि जिस तरह से विद्यालय के काम की योजना बनाई और व्यवस्थित की जाती हैलेकिन जो योजना मेंयहां तक की स्कूल की व्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोगों की चेतना में भी स्पष्ट रूप से शामिल नहीं है।
पाठ्यक्रम के संबंध में कक्षा के कार्य:-
पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाना।
पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए दीर्घकालिक योजना कैलेंडर विकसित करें।
अध्ययन की इकाइयां विकसित करना।
पाठ्यक्रम को व्यक्तिकृत करना।
पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करना।
पाठ्यक्रम को लागू करना सभी छात्रों को महारत हासिल करने में मदद करना।
छात्रों के बीच व्यक्तिगत अंतर पर जोर दें।
पाठ्यक्रम से समस्या
पाठ्यक्रम बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में मदद नहीं कर रहा है।
छात्रों के बीच सहानुभूति और समर्थन की कमी को पूरा नहीं करता है।
शिक्षक एक ही समय परबहुत सी भूमिकाएं निभा रहे हैं।
छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में नहीं रखता है।
सभी प्रकार के छात्रों के लिए एक निर्धारित पाठ्यक्रम लागू करना।
मूल्य और प्रेरणाय कक्षा के हिसाब से अलग-अलग होती हैं जो एक कक्षा में काम करता है वह अक्सर अगली अवधि में काम नहीं करेगा।
पहले से पेट पाठ्यक्रम शिक्षकों की व्यक्त व्यावसायिक और एजेंसी को कमजोर करता है।
सांस्कृतिक संवेदनशीलता किसी पैकेज या पाठ्यचर्या में नहीं आती है।
शिक्षार्थी की आवश्यकताओं और रुचियां के साथ-साथ उनके विकासात्मक स्तरों पर अपर्याप्त जोर।
कक्षा का आकार:-यदि कक्षा का आकार 30 बच्चों से अधिक है तो शिक्षक कक्षा में प्रत्येक छात्र पर ध्यान नहीं दे सकता है।
गरीबी:-कक्षा में छात्रों में सीखने को प्रभावित करती है।
प्रौद्योगिकी:-छात्रों का जो औद्योगिकी प्रेम ने विद्यालय के काम से विचलित कर देता है।
छात्रों का रवैया और व्यवहार-शिक्षकों के प्रति उदासीनता और अनदर आज कक्षा में सबसे बड़ी समस्या बन गई है।यह माध्यमिक विद्यालय में अधिक है
माता-पिता कीभागीदारी-शैक्षिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप।
उपर्युक्त मुद्दों का समाधान
कक्षा कार्य में शिक्षकों द्वारा लचीलापन,इरादा और निर्णय की आवश्यकता
गतिविधियों में सांस्कृतिक संवेदनशीलता।
व्यक्तिगत आवश्यकताएं,रुचिया छात्रों के सीखने को बढ़ाएंगी।
पाठ्यक्रम को सभी प्रकार के शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी होना चाहिए।
शिक्षार्थियों के सामाजिक अनुकूलन और विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।
कक्षा का आकार 30 छात्रों से अधिक नहीं होना चाहिए।
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे माता-पिता इसमें शामिल हो सकते हैं और अपने बच्चों की शिक्षा में सहायता कर सकते हैं।
पाठ्यक्रम को बच्चों की जरूरत,टीमवर्क के विकास,व्यक्तिगत मतभेद ,शिक्षक की भूमिका और गुणवत्ता पहलुओं को पूरा करना चाहिए।
Unit- 5
Q.1 एक पाठ्यक्रम की क्रियान्वयन या अंतर्वस्तु चयन और विकास हेतु अधिगम के विविध भौतिक संसाधनों के बारे में विस्तार से समझाइए।
Ans.
शिक्षण अधिगम की सफलता के लिए परंपरागत सामग्री के साथ कई नवीन सामग्रियों का प्रयोग किया जा रहा है जैसे पाठ्यपुस्तकी पाठ्यक्रम संदर्भित संदर्भ पुस्तक के दृश्य सर्वे सामग्री अभिक्रमित सामग्री अभिक्रमित अनुदेशन आदि।
पाठ्य पुस्तक का अर्थ
किसी विषय वस्तु के ज्ञान को जब एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है उसे पाठ्य पुस्तक की संख्या प्रदान की जाती है।
डगलस के अनुसार
अध्यापकों के बहुमत में अंतिम विश्लेषण के आधार पर पाठ्य पुस्तक को वे क्या और किस प्रकार पढ़ाएंगे को आधारशील माना है।
पाठ्य पुस्तक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
केमिनियस ने 1592 में सबसे पहले भाषा शिक्षण की पुस्तक लिखी। इसके बाद पाठ्यपुस्तक के महत्व को देखते हुए अनेक विषय विशेषज्ञों द्वारा पाठ्यपुस्तके लिखी जाने लगी। 19वीं शताब्दी में प्रोबेबल जेएसडीवी महात्मा गांधी आदि ने पुस्तक के ज्ञान का विरोध किया।
अनुभव केंद्रित वह क्रिया केंद्रित ज्ञान पर बोल दिया। इसके पश्चात पुस्तक विहीन शिक्षक के प्रयोग किया और निष्कर्ष पर पहुंचे की पाठ्य पुस्तकों का कभी अंत नहीं हो सकता।
हमारे देश में एनसीआरटी दिल्ली इस क्षेत्र में कार्य करती है।
परंपरागत पाठ्य पुस्तक के साथ नवीन रूपों में भी पाठ्य पुस्तक लागू की गई हैं।
करिकुलम फ्रेमवर्क
(पाठ्यचर्या रूपरेखा)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक नीति दस्तावेज है जिसे भारत में
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2020 (एनसीएफ 2020) दिशानिर्देशों का एक महत्वपूर्ण समूह है जो भारत में स्कूलों और पाठ्यक्रम के शैक्षिक विकास का मार्गदर्शन करता है। यह एक रूपरेखा है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
एनईपी 2020 का लक्ष्य भारत के छात्रों को समग्र शिक्षा और कौशल विकास प्रदान करना है। एनसीएफ 2020 भारत में विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों में 3 से 18 वर्ष की आयु के छात्रों के लिए शैक्षिक निर्देश को कवर करता है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) 2020 क्या है?
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ), 2005 के बाद से , शैक्षिक प्रणाली काफी उन्नत हुई है। राष्ट्रीय शैक्षिक नीति, 2020 सबसे हालिया सुधार है, और यह एनसीएफ 2005 की तुलना में एक और सुधार का प्रतिनिधित्व करती है।
इन दो रणनीतियों के प्रचार-प्रसार के बीच अधिक सरल और समावेशी शिक्षण प्रक्रिया के लिए शिक्षण और सीखने के लिए कई नवीन तरीके पेश किए गए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक नीति दस्तावेज है जिसे भारत में शिक्षा विकास का मार्गदर्शन करने के लिए बनाया गया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने शुरुआत में इसे 2005 में स्थापित किया था, और 2020 में इसमें संशोधन किया गया।
एनसीएफ में देश के दर्शन, लक्ष्य और पाठ्यक्रम, मूल्यांकन और शिक्षाशास्त्र के लिए बुनियादी ढांचे का वर्णन किया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के संयोजन में , राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) विकसित और कार्यान्वित की जाती है।
यह व्यापक रणनीति, जिसका उद्देश्य देश के शैक्षिक मानकों में सुधार करना है, शिक्षा मंत्रालय (एमओई) और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के सहयोग से विकसित की गई थी।
सभी भारतीय नागरिक, अपनी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना, अब एनसीएफ की बदौलत उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इसमें सभी सामाजिक-आर्थिक, नस्लीय और भाषाई पृष्ठभूमि के छात्रों को समान अवसर प्रदान करना शामिल है।
शिक्षार्थियों की शैक्षिक संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए, एनसीएफ कक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को भी बढ़ावा देता है। ईआरपी कैंपस सॉफ्टवेयर एनसीएफ के लक्ष्यों के अनुरूप, संस्थानों को प्रशासनिक कार्यों को सुव्यवस्थित करने और हितधारकों के बीच संचार में सुधार करने में मदद कर सकता है।
एनसीएफ 2020 का उद्देश्य क्या है?
एनसीएफ यह गारंटी देना चाहता है कि शिक्षा सर्वव्यापी और व्यापक है, बच्चों के अच्छी शिक्षा के अधिकार को बरकरार रखा गया है, और शैक्षिक प्रणाली बदलती सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रूप से अनुकूल और लचीली है।
पाठ्यक्रम में विभिन्न सीखने की शैलियों की जांच होनी चाहिए, आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना चाहिए और सांस्कृतिक और पर्यावरणीय सेटिंग्स को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें छात्र रहते हैं और सीखते हैं।
एनसीएफ 2020 के उद्देश्य क्या हैं?
शिक्षाशास्त्र सहित पाठ्यक्रम में उचित लाभकारी सुधारों के माध्यम से, इस एनसीएफ का मुख्य लक्ष्य एनईपी 2020 में कल्पना की गई भारतीय स्कूल प्रणाली को बदलने में सहायता करना है।
चूँकि "पाठ्यचर्या" शब्द स्कूल में एक छात्र के समग्र अनुभवों को समाहित करता है, "अभ्यास" का तात्पर्य केवल पाठ्यचर्या सामग्री और शिक्षाशास्त्र से कहीं अधिक है ; इनमें स्कूल का माहौल और संस्कृति भी शामिल है।
एनसीएफ लक्ष्य-उन्मुख उद्देश्यों को महत्वपूर्ण महत्व देता है और इसमें नीतियों और दिशानिर्देशों को विकसित करने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है। संपूर्ण ढांचे की नींव में ये उद्देश्य शामिल हैं।
सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के उद्देश्य नीचे सूचीबद्ध हैं।
एनसीएफ 2020 के प्रमुख लाभ
गणित, भौतिकी, भाषा, कला, शारीरिक शिक्षा, सामाजिक अध्ययन, प्रौद्योगिकी और जीवन कौशल कुछ ऐसे विषय और विषय हैं जिन्हें एनसीएफ संबोधित करता है। यह समग्र रूप से सीखने पर ज़ोर देता है, जिसमें पारंपरिक शैक्षणिक सामग्री और वास्तविक दुनिया के कौशल दोनों शामिल होते हैं।
इसके अतिरिक्त, यह कक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करता है और रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करता है।
लैंगिक समानता और विकलांगता अधिकार जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे भी एनसीएफ द्वारा शासित होते हैं। एनसीएफ भारतीय शिक्षा को आधुनिक बनाने और सभी छात्रों के लिए शिक्षा के मानक को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एनसीएफ अधिक सामंजस्यपूर्ण पाठ्यक्रम विकसित करने के अलावा सीखने के माहौल को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों, अभिभावकों और समुदाय के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
साथ ही, एनसीएफ का उद्देश्य सभी भारतीय छात्रों के शैक्षिक अनुभव को बेहतर बनाना है, भले ही उनकी परवरिश या रहने की स्थिति कुछ भी हो।
एनसीएफ भारतीय शिक्षा में बहुत आवश्यक आधुनिकीकरण लाता है और राज्यों और स्थानीय स्कूलों को अपने विद्यार्थियों की जरूरतों के अनुसार अपने पाठ्यक्रम को अनुकूलित करने की अनुमति देकर यह सुनिश्चित करने में सहायता कर सकता है कि प्रत्येक छात्र एक समान शिक्षा प्राप्त करे।
पंचकोश विकास (पांच गुना विकास)
मन और शरीर के बीच एक संतुलित संबंध पंचकोश सिद्धांत का केंद्र है, जो प्राचीन भारत में प्रचलित है। पंच संख्या पाँच को दर्शाता है, और कोष एक आत्म-आवरण या आवरण को दर्शाता है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के नियम पंचकोश विचार पर आधारित हैं, जिसके अनुसार प्रत्येक परत को महत्वपूर्ण विकास का अनुभव होना चाहिए। यह छात्रों के लिए जीवन के सभी पहलुओं में अनुकूलन, विकास और आगे बढ़ने का मार्ग बनाता है।
पंचकोश विचार और कल्पना कई ईसीसीई विकास डोमेन से भी मेल खाते हैं जो पाठ्यक्रम के लक्ष्यों की नींव के रूप में काम करते हैं। ये पांच कोष शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा और जीवन ऊर्जा के क्षेत्रों को शामिल करते हैं।
शारीरिक विकास (शारीरिक विकास):
शारिक विकास भौतिक डोमेन के विकास के लिए जिम्मेदार है। शिक्षार्थी खेल, खेल, ध्यान अभ्यास और अन्य शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से आंदोलन के मूल्य की खोज करेगा।
आयु-उपयुक्त, अच्छी तरह से संतुलित शारीरिक विकास, लचीलापन, फिटनेस, ताकत और सहनशक्ति; इन्द्रियाँ; पोषण; व्यक्तिगत सफाई; शारीरिक क्षमताओं का विकास; शरीर और आदतों का गठन; और एक इंसान के 100 साल स्वस्थ जीवन जीने के विचार को एक छात्र की शिक्षा में शामिल किया जाता है।
प्राणिक विकास (जीवन ऊर्जा विकास):
प्राणिक विकास जिस तरह से जीवन शक्ति या जीवन ऊर्जा विकास के बुनियादी सिद्धांतों को शामिल करता है, वह इस विचार को अनुसरण करने के लिए एक असाधारण रत्न बनाता है। यह शिक्षार्थियों को समग्र शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों को विकसित करने में मदद करता है।
विद्यार्थियों की शिक्षा में सहानुभूतिपूर्ण और पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र की सक्रियता शामिल है, जो ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह के संतुलन और अवधारण के साथ-साथ सभी मुख्य प्रणालियों (पाचन, श्वसन, संचार और तंत्रिका) के कुशल संचालन में योगदान करती है। सिस्टम)।
मानसिक विकास (मानसिक विकास)
मानसिक विकास में मानसिक और भावनात्मक विकास शामिल है जो शैक्षिक गतिविधि का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह जीवन के प्रति सकारात्मक और भावुक दृष्टिकोण विकसित करने से संबंधित है।
छात्रों की शिक्षा में दृश्य और प्रदर्शन कला, संस्कृति, साहित्य, नकारात्मक भावनाओं को संभालना, गुणों की खेती (मौल्यवर्धन), और लोगों, स्थितियों और नौकरियों से जुड़ने और अलग होने की इच्छा को संभालना भी शामिल है।
बौद्धिक विकास (बौद्धिक विकास)
सीखने के लिए बौद्धिक विकास एक आवश्यक लेकिन अपर्याप्त शर्त है। बौद्धिक विकास के अनुसार, इस बिंदु का ध्यान एक छात्र की बुद्धि को बढ़ाने पर है।
छात्रों की शिक्षा में अवलोकन, प्रयोग, विश्लेषणात्मक कौशल, संश्लेषण, अमूर्त और भिन्न सोच, भाषाई दक्षता, तार्किक तर्क, कल्पना, रचनात्मकता, विवेक की शक्ति, सामान्यीकरण और अमूर्तता में शिक्षण शामिल है।
प्रत्येक शिक्षार्थी आध्यात्मिक ज्ञान और शिक्षा से लाभ उठा सकता है, जो चैतसिक विकास का केंद्र बिंदु है। इस बिंदु पर, छात्र ऊर्जा संतुलन और सभी महत्वपूर्ण प्रणालियों के प्रमुख संचालन का ज्ञान प्राप्त करता है।
छात्रों की शिक्षा में आनंद, करुणा, सहजता, स्वतंत्रता, सौंदर्यशास्त्र और "जागरूकता को अंदर की ओर मोड़ने" की प्रक्रिया पर पाठ शामिल हैं।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2020 को लागू करने की रणनीतियाँ:
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के कार्यान्वयन और प्रभाव का समर्थन करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ इस प्रकार हैं:curriculum and syllabus their significance in school education (स्कूली शिक्षा में पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या का महत्व)
विभिन्न विद्यालय विषयों में ज्ञान के रूप और उसकी विशेषता
विद्या एक अद्वितीय और आध्यात्मिक धारणा है, जो मनुष्य को समझ, ज्ञान और बुद्धि का अनुभव कराती है। विद्या कई रूपों में उपलब्ध है और यह विभिन्न विद्यालय विषयों में विभाजित होती है। इन विषयों में ज्ञान की विशेषता और रूप को समझने के लिए हमें उनके अध्ययन में गहराई से सोचना चाहिए।
**शिक्षा के उद्देश्यों की प्रासंगिकता और विशेषता प्रसंगिक स्तर के लिए**
हर शिक्षार्थी का शिक्षा के प्रति एक अलग उद्देश्य होता है। शिक्षा के उद्देश्यों की प्रासंगिकता और विशेषता, उन विद्यालय विषयों के संदर्भ में विशेष महत्व रखती है। विषय और स्तर के अनुसार उद्देश्यों को निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि छात्र अपनी शिक्षा में सफल हो सकें। उदाहरण के लिए, गणित में उद्देश्य हो सकता है कि छात्र संख्याओं को समझें और समस्याओं को हल करने के लिए गणितीय तरीके से सोचें। इसके बिल्कुल विपरीत, कला में उद्देश्य हो सकता है कि छात्र समाज के साथ जुड़े विभिन्न आधारों को समझें और उन्हें स्वयं में प्रकट करें। इस प्रकार, शिक्षा के उद्देश्यों को स्पष्ट करना और प्रासंगिक बनाना विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा में सफलता की दिशा में महत्वपूर्ण है।
**छात्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश - बहुसांस्कृतिक, बहुभाषाई पहलु**
शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू छात्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश का है। आज के समय में, विद्यालयों में छात्रों की विविधता और बहुसांस्कृतिकता बढ़ रही है। इसलिए, विद्यालय विषयों में ज्ञान की विशेषता और प्रासंगिकता को समझने के लिए छात्रों के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश का महत्वपूर्ण ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि एक विद्यालय विषय को अध्ययन कर रहा है जो समाज की समस्याओं पर आधारित है, तो छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश के मुद्दों को समझने और समाधान के लिए
तैयार किया जाना चाहिए। वहीं, यदि छात्रों की भाषाई या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि विविध है, तो इसे ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शिक्षा योजनाओं का अनुपालन किया जाना चाहिए।
इस प्रकार, विभिन्न विद्यालय विषयों में ज्ञान की विशेषता, उसके उद्देश्यों की प्रासंगिकता और छात्रों के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के संदर्भ में समझी जानी चाहिए। इससे छात्रों को सफलता की दिशा में अधिक सहायता मिलेगी और वे अपने शैक्षिक अनुभव को गहराई से समझेंगे।
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शैक्षिक उद्देश्यों की महत्ता और विशेषता: उत्तराधिकारिक स्तर के लिए
शैक्षिक उद्देश्यों के माध्यम से सामाजिक और पर्यावरणीय सद्भावना को बढ़ावा देना आवश्यक है, ताकि छात्र समाज के साथ सहयोगी और उपयोगी साझेदार बन सकें।
निष्कर्ष:
शिक्षा के उद्देश्यों की महत्ता और विशेषता का समझना उच्चतर स्तर के शैक्षिक प्रणालियों के विकास में महत्वपूर्ण है। उत्तराधिकारिक स्तर पर, शैक्षिक उद्देश्यों को समाज की आवश्यकताओं और छात्रों की योग्यताओं के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सकारात्मक और सतत विकास का मार्ग प्राप्त हो सके।


Hi sir
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