पाठ्यचर्या क्या है c- (6B)

 

पाठ्यचर्या क्या है


पाठ्यचर्या क्या है ?
पाठ्यचर्या क्या है 

Unit- 2 व 4


पाठ्यचर्या का अर्थ

पाठ्यचर्या क्या है के बारे में हम जानते हैं कि

पाठ्यक्रम शब्द आंग्ल भाषा के curriculum


 शब्द का हिंदी रूपांतरण है curriculum


 शब्द लैटिन भाषा के carrire शब्द से बना है। 


जिसका अर्थ होता है दौड़ का मैदान यदि हम 


पाठ्यक्रम के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो हमें 


ज्ञात होता है कि पाठ्यक्रम एक मार्ग होता है 


जिस पर चलकर बालक अपनी शिक्षा प्राप्त करता


 है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शिक्षा एक दौड़ है 


जो पाठ्यक्रम के मार्ग पर दौड़ती है।


Q.1)पाठ्यचर्या क्या है ?

पाठ्यचर्या का अर्थ पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संस्थानों में करवाई जाने वाली सहगामी क्रिया कलाप जैसे एनसीसी स्काउट खेल आदि का जोड़ ही पाठ्यचर्या कहलाता है।


पाठ्यचर्या की प्रकृति

पाठ्यचर्या क्या है के बाद अब हम जानते हैं कि 
पाठ्यचर्या की प्रकृति

शिक्षा का इतिहास हमें बताता है कि समय-समय पर पाठ्यचर्या की प्रकृति कैसी रही है ? 

कभी पाठ्यचर्या संकीर्ण रही है तो कभी पाठ्यचर्या व्यापक रही है। इसका स्वरूप तथा प्रकृति हमेशा बदलती रही है। 

पाठ्यचर्या स्वयं में कई तत्वों को समेट लेती है। पाठ्यचर्या किसी भी देश का भविष्य हो सकता है किसी विद्वान का विचार हो सकता है या पाठ्यचर्या आवश्यकता हो सकती है। पाठ्यचर्या ने समय के साथ-साथ स्वयं में परिवर्तन किया है। 

किंतु आधुनिक काल में पाठ्यचर्या में विराट और अमूल चूल परिवर्तन हुए हैं। विशेषकर ब्रिटिश सत्ता ने पाठ्यचर्या में बहुत सीमा तक परिवर्तन किया तथा हमारे भारतीय शिक्षाविदों महापुरुषों आदि ने पाठ्यचर्या को एक सुंदर नवीन और आवश्यकतानुसार रूप प्रदान किया है। 

इसे उपयोगिता परिणाम प्रदाता बनाया गया है। इसमें ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान आधुनिकता तकनीकी आदि को सम्मिलित किया गया है। पाठ्यचर्या की प्रकृति परिवर्तनशील रही है। 

वर्तमान में पाठ्यचर्या और अधिक विस्तृत रूप में सामने आई है इसमें व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की क्रियाओं का चिंतन तथा मनन किया गया हैं।



पाठ्यचर्या की परिभाषा

पाठ्यचर्या क्या है इसकी परिभाषा अलग अलग 
दार्शनिक के द्वारा

फ्रोबेल के अनुसार

पाठ्यचर्या को मानव जाति के संपूर्ण ज्ञान तथा अनुभव का सार समझना चाहिए।


मुनरो के अनुसार

पाठ्यचर्या में वे सभी क्रियाएं सम्मिलित हैं जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते हैं।


डिवी के अनुसार


सीखने का विषय या पाठ्यचर्या पदार्थों विचारों और सिद्धांतों का चित्रण है जो निरंतर उद्देश्य पूर्ण क्रियान्वयन अन्वेषण के साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।


हेनरी के अनुसार


पाठ्यचर्या में वे सभी   क्रियाएं लिए जाती है 

जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती है।


माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार


पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सेधांतिक विश्व में से नहीं है जो विद्यालय में परंपरागत रूप से पढ़ाई जाते हैं बल्कि इसमें अनुभव कि वह संपूर्णता भी सम्मिलित होती है जिनको विद्यार्थी विद्यालय कक्षा कक्ष पुस्तकालय प्रयोगशाला कार्यशाला खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक को औपचारिक संपर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का संपूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके संतुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।

पाठ्यचर्या के प्रकार

  1. कोर पाठ्यचर्या। 
  2. सैद्धांतिक पाठ्यचर्या। 
  3. समेकित पाठ्यचर्या। 
  4. क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या। 
  5. पुनर संरचनात्मक पाठ्यचर्या
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 पाठ्यचर्या की विशेषताएं

पाठ्यचर्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति का व्यापक स्वरूप होती है।
 अध्ययन के प्रत्येक पक्ष को प्रस्तुत करती है।


 पाठ्यचर्या एक व्यापक संप्रत्य है जिसमें शैक्षणिक संप्रदाय है जिसमें शैक्षिक उद्देश्य पाठ्यवस्तु शिक्षण अधिगम एवं मूल्यांकन सम्मिलित हैं।


 पाठ्यचर्या देश की आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है।
 पाठ्यचर्या के माध्यम से बालक की शैक्षणिक क्रियाओं को विकसित किया जाता है।
 

पाठ्यचर्या में उन क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिससे बालक की शारीरिक मानसिक व सात्मक सामाजिक आध्यात्मिक एवं नैतिक पक्षों का विकास हो। 

यह अनुसंधान द्वारा संशोधित एवं परीक्षण किया हुआ होता है।

 यह छात्रों को अपने कौशल और रुचि अभिरुचि एवं अभि मूल्यों को विकसित करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है।




विद्यालय में पाठ्यचर्या की आवश्यकता एवं महत्व


बालक के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रमुख साधन पाठ्यचर्या को माना जाता है। शिक्षा में पाठ्यचर्या का स्थान अत्यंत ही महत्वपूर्ण है शिक्षा के क्षेत्र में जितना महत्व बालक एवं शिक्षक का है उतना ही महत्व पाठ्यचर्या का भी है।


शिक्षा में पाठ्यचर्या की आवश्यकता 

 • शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु   

पाठ्यक्रम शैक्षणिक उद्देश्यों की प्राप्ति का एक मुख्य साधन है बिना पाठ्यचर्या के शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति संभव नहीं है। जीवन में प्रत्येक कार्य किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है। उसी प्रकार शिक्षा के सभी उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं। इन शैक्षणिक उद्देश्यों की प्राप्ति उचित वाक्य सरिया निर्धारण करके ही प्राप्त की जा सकती है।

2) शिक्षण सामग्री के निर्धारण हेतु

प्रत्येक विद्यालय में समय सारणी का 

निर्धारण पाठ्यचर्या की सहायता से ही 

किया जाता है और यह तय किया जाता

 हैकि पाठ्यचर्या सम्मिलित पाठ्यक्रम 

को कब कैसे एवं किस प्रकार में बालकों 

के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिससे बालकों

का अधिगम स्तर ऊंचा उठ सके। पाठ्यचर्या 

के अभाव में यह संभव नहीं हो पाता।


3)शिक्षण विधियों के निर्धारण में

पाठ्यचर्या शिक्षकों की शिक्षण विधि के निर्धारण में सहायता प्रदान करती है। पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि उसे किस कक्षा के बालकों को किस तरह का पाठ्यक्रम पढ़ना है।



4) पाठ्य पुस्तकों की रचना


पाठ्य पुस्तकों का निर्धारण या निर्माण पाठ्यचर्या पर ही आधारित होता है। पाठ्य पुस्तकों को का मूल आधार पाठ्यचर्या ही होता है पाठ्यचर्या का निर्धारण प्रत्येक कक्षा के लिए अलग-अलग होता है जो कि उस आयु वर्ग के बालकों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। पाठ्यचर्या की सहायता से पाठ्य सामग्री का निर्माण किया जाता है।




5) शिक्षा का स्तर के निर्धारण हेतु


पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षा के उचित स्तर का निर्धारण किया जाता है क्योंकि पाठ्यचर्या के आधार पर ही विभिन्न स्तर के बालकों को किस स्तर की शिक्षा देनी है। यह पाठ्यचर्या की सहायता से ही सुनिश्चित किया जाता है। प्राथमिक स्तर के बालकों के लिए सरल व रोचकता से परिपूर्ण पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर के बालकों का ज्ञानवर्धक एवं तर्कपूर्ण पाठ्यक्रम तथा उच्च कक्षाओं के लिए गहन चिंतन सिले प्रयोगात्मक अध्ययन का सुझाव पाठ्यचर्या के माध्यम से ही प्राप्त होता है।




पाठ्यचर्या के घटक


पाठ्यचर्या को निरंतर चलने वाली प्रक्रिया माना जाता है। इस के चार प्रमुख घटक है



1)शिक्षण उद्देश्य 

पाठ्यचर्या निर्माण करने हेतु सर्वप्रथम विकास के उद्देश्यों का हमें पता होना आवश्यक है। या विकास के माध्यम से हमें किन उद्देश्यों को प्राप्त करना है।


2) अनुदेशन आत्मक प्रारूप

शिक्षण के उद्देश्यों के निर्धारण के पश्चात यह सुनिश्चित किया जाता है कि बालकों को कैसे अनुदेशन प्रदान किया जाए? अनुदेशन प्रदान करने हेतु शिक्षण विधियों एवं पाठ्यचर्या की सहायता से इस प्रकार के अवसर एवं परिस्थितियां उत्पन्न की जाती है ताकि बालक उचित प्रकार से अधिगम कर सके।

3) मूल्यांकन

समस्त शिक्षण विधियों तथा पाठ्यचर्या का प्रयोग किस सीमा तक उपयोगी सिद्ध हुआ है इसे जांचने के लिए पाठ्यचर्या मूल्यांकन किया जाता है।

4) पृष्ठ पोषण



मूल्यांकन के पश्चात पाठ्यचर्या को पृष्ठ पोषण प्रदान किया जाता है अतः हम कह सकते हैं कि पृष्ठ पोषण मूल्यांकन का प्रभाव है। मूल्यांकन के द्वारा हम वस्तुस्थिति का अनुमान लगाते हैं एवं उसी के अनुरूप शिक्षकों तथा छात्रों को पृष्ठ पोषण प्रदान किया जाता है जैसे छात्रों को पृष्ठ पोषण शाबाश बहुत अच्छा आदि


पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक

1 सामाजिक परिवर्तन।

2 राष्ट्रीय शिक्षा नीति या। 

3 पाठ्यचर्या निर्माण समिति।

4 शिक्षा प्रणाली। 

5 परीक्षा प्रणाली। 

6 शासकीय नीतियां।

7 आधुनिक विचारधारा।

8 आर्थिक परिवर्तन।

 पाठ्यचर्या के संगठन में कई तत्वों का समावेश होता है जैसे सहभागिता अवसरवादी ता लचीलापन आदि पूर्णविराम पाठ्यचर्या में इनके अतिरिक्त कई तथ्य होते हैं जो संगठित होकर ही कार्य करते हैं

तथा उच्च कोटि की पाठ्यचर्या का निर्माण करते हैं। पाठ्यचर्या की योजना के अनुसार ही पाठ्यचर्या का स्वरूप निर्मित हो सकेगा

पाठ्यचर्या की यह विशेषता है कि पाठ्यचर्या के प्रारूप में या उसके स्वरूप में जितनी विभिनता होगी पाठ्यचर्या उतनी ही अलग-अलग प्रदर्शित होगी। 

पाठ्यचर्या में अंतर वस्तु चयन प्रारूप निर्माण योजना के बाद उसके संगठन की आवश्यकता होती है। संगठन में विषय प्रचलित सामाजिक जीवन एवं अनुभव को स्थान दिया जाता है। 

किंतु फिर भी वर्तमान में तीन स्तरों पर पाठ्यचर्या का संगठन किया गया है वाक्य सरिया का संगठन आंसुओं में विभाजित विषयों को अलग से एक जगह संगठित करने की प्रक्रिया पाठ्यचर्या संगठन कहलाती है।


पाठ्यचर्या संगठन के विषय में कई शिक्षा शास्त्रियों के मत


भगवान बुद्ध के अनुसार


ज्ञान आधारित संगठन। 

भौतिकता पर आधारित संगठन। 

एवं समन्वित पाठ्यचर्या।


महात्मा गांधी के अनुसार

अहिंसा पर आधारित संगठन। 


देशभक्ति पर आधारित। 


हस्तकला पर आधारित। 


क्रिया पर आधारित। 


और अध्यात्म पर आधारित संगठन।



स्मिथ के अनुसार


विषयों को। 


क्रियाओं को ।


 एवं समन्वयता को।



गुडलैंड के अनुसार


एकीकृत संगठन।


 क्षत्रिय संगठन। 


संबंधित संगठन।



प्रचलित पाठ्यचर्या का संगठन

प्रचलित पाठ्यचर्या का संगठन के प्रकार 


1) समन्वित पाठ्यचर्या संगठन

 2) सतत पाठ्यचर्या संगठन

 3) क्रमबद्ध पाठ्यचर्या संगठन

 4) पाठ्य सहगामी क्रियाओं का समावेश


पाठ्यचर्या में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का समावेश निम्नलिखित कारणों से किया जाना चाहिए।


1 पाठ्य सहगामी क्रियो का महत्व।


 2 विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियो के क्षेत्र।


3 विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाएं।


4 पाठ्य सहगामी क्रियो की सीमाएं।


 5 क्रियो के विकास हेतु सुझाव।




पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्व


पाठ्य सहगामी क्रियाओं के विकास हेतु पाठ्य सहगामी क्रियाओं का पाठ्यचर्या में विशेष स्थान है। पटसरिया चाहे किसी भी स्तर की हो उसमें पाठ्य सहगामी क्रियाओं की आवश्यकता एवं महत्व होता ही है। शिक्षा का लक्ष्य केवल विद्यार्थियों को पढ़ना और लिखना ही नहीं सिखाना होता है बल्कि विद्यार्थियों के जीवन के हर पक्ष का विकास करना होता है। जीवन के संघर्षों के लिए तैयार करना भी शिक्षा का उद्देश्य होता है। किस प्रकार के मानव निर्माण हेतु पाठ्यचर्या में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का उपयोग करना अति आवश्यक हो जाता है। जैसे




शारीरिक विकास।


 नागरिकता के गुणों का विकास। 


अनुशासित जीवन का विकास करना।


 छात्रों की रूचि यों का महत्व। 


अच्छी आदतों का विकास करना पूर्णविराम सामाजिकता का विकास करना।



विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं के क्षेत्र

शारीरिक। 

साहित्यिक। 

सामाजिक

शैक्षणिक। 


सामाजिक। 

कला क्षेत्र। 

और मनोरंजन क्षेत्र।


Q.1)पाठ्यचर्या क्या है ?

पाठ्यचर्या का अर्थ पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संस्थानों में करवाई जाने वाली सहगामी क्रिया कलाप जैसे एनसीसी स्काउट खेल आदि का जोड़ ही पाठ्यचर्या कहलाता है।

Q. 2) पाठ्यचर्या अर्थ और परिभाषा

पाठ्यचर्या का अर्थ इस प्रकार है पढ़ने और पढ़ाने योग्य विषय वस्तु (पाठ्यक्रम) और सीखने और सिखाने  सहगामी क्रियाकलाप( जैसे शिक्षण संस्थानों में स्काउट, गाइड, खेल गतिविधि आदि) ।


Q.1) पाठ्यचर्या की परिभाषा क्या है?


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