समकालीन भारत |
समकालीन भारत में शिक्षा
Paper-2
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Unite-1
स्वदेशी:- अर्थ अवधारणा और प्रकृति
स्वदेशी का अर्थ
स्वदेशी का अर्थ है अपने देश का।
अपने देश से संबंधित या भारतीय
या भारतीय था। भारतीयता से
तात्पर्य उच्च विचार या भाव से है
जिसमें भारत से जुड़ने का बोध होता है।
या भारतीय तत्वों की झलक हो या
जो भारतीय संस्कृति से संबंधित हो।
भारत शब्द केवल एक भूमि के बाद
विशेष को दर्शाता है लेकिन भारतीय
शब्द जो है उसका अर्थ है भारत भूमि
के रहने की जीवन व्यवस्था में शामिल होना। भारतीय एक भाव है जो भारत की सीमाओं के अंतर्गत रह रहे उन लोगों से है जो इससे सामाजिक सांस्कृतिक और संवैधानिक तीनों क्षेत्रों से जुड़ना है। भारतीय होने के लिए यह आवश्यक है कि कोई नागरिक वैधानिक रूप से भारतीयता की स्वीकृति के साथ भारत की सीमाओं में रहकर भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक वह राजनीतिक तीनों तरह के बाहों के साथ देश के प्रति कर्तव्य की भागीदारी जाति भाषा रहन-सहन आदि तत्वों से भी भावनात्मक रूप से जुड़ना है।
भारतीयता या स्वदेशी की विशेषताएं या प्रकृति
स्वदेशी या भारतीयता की निम्न विशेषताएं हैं।
भौगोलिक क्षेत्र या भारत की सीमा में निवास करता है।
भारतीय संविधान की पालना करता है।
भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा का सम्मान करता है।
भारत की संस्कृति का सम्मान व संरक्षण करता है।
भारत में बसी हुई या रहने वाली किसी एक जाति से संबंधित है।
वेशभूषा या पहनावा अपने देश की गरिमा के अनुकूल है।
शतक सात्विकता को।
अंतरण की प्रवृत्ति का हो।
विविधता में एकता हो।
विश्व बंधुत्व की भावना हो।
सर्वधर्म सम्मान का भाव।
सहिष्णुता की भावना हो।
आध्यात्मिकता का भाव।
त्याग की भावना हो।
सभी संस्कृतियों के प्रति संभाव्य हो।
आतम गौरव की भावना हो।
शिक्षा का अर्थ
एजुकेशन या शिक्षा का अर्थ सीखना । एजुकेशन लेटिन भाषा की 3 शब्दों से मिलकर बना है जो निम्न है
1 Educatom
2 Educare
3 Edushare
शिक्षा के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द एजुकेशन की उत्पत्ति लेटिन भाषा के 3 शब्दों से मानी गई है
Educatom का अर्थ है शिक्षण की क्रिया
Educare का अर्थ है शिक्षा देना या ऊपर उठाना।
Edushare का अर्थ है आगे बढ़ाना।
सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि शिक्षा का अर्थ है प्रशिक्षण संवर्धन और पथ प्रदर्शन कार्य। इस प्रकार एजुकेशन का सर्वमान्य अर्थ हुआ बालक की जन्मजात शक्तियों या गुणों को विकसित करके उसका सर्वांगीण विकास करना है।
शिक्षा का संप्रत्यय या शिक्षा की परिभाषाएं
शिक्षा का दार्शनिक संप्रत्यय
दार्शनिकों का विचार केंद्र मनुष्य होता है।
सुकरात के अनुसार
शिक्षा का अर्थ है मनुष्य के मस्तिष्क में विद्यमान सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना।
एडिशन के अनुसार
शिक्षा मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं वह उसके प्रत्येक गुण को पूर्णता में लाकर व्यक्त करती है।
फ्रोबेल के अनुसार
शिक्षा वह प्रक्रिया जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियां प्रकट होती है।
टिपी नन के अनुसार
शिक्षा व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है जिससे कि व्यक्ति अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार मानव जीवन को योगदान दे सके।
पेस्टलोजी के अनुसार शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्ति का स्वभाविक सामंजस्य सील विकास है।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा शब्द का प्रयोग दो रूपों में होता है व्यापक रूप में और संकुचित रूप में। शिक्षा व्यापक अर्थ में आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है दूसरे शब्दों में व्यक्ति अपने जन्म से मृत्यु तक जो कुछ सीखता है और अनुभव करता है शिक्षा का व्यापक अर्थ है। शिक्षा का संकुचित अर्थ में बालकों को स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा है दूसरे शब्दों में बालक को एक निश्चित योजना के अनुसार निश्चित समय और निश्चित विधियो से एक निश्चित प्रकार का ज्ञान देना है।
शिक्षा की प्रकृति
सतत प्रक्रिया या आजीवन प्रक्रिया। व्यवस्थित प्रक्रिया वातावरण, वातावरण से अंतः क्रिया, अंतः क्रिया से अनुभव, अनुभव से अधिगम यही शिक्षा है।
विकास की प्रक्रिया:- व्यक्ति और समाज का विकास ही शिक्षा है इसे सामाजिक विकास की प्रक्रिया कहा जाता है।
शिक्षा व्यवहार में परिमार्जन या संशोधन है। यहां परिमार्जन अर्थात सुधार या मंजन से बना शब्द है।
शिक्षा उद्देश्य पूर्ण होती है। शिक्षा एक प्रशिक्षण है।
सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता अर्थ अवधारणा और शिक्षा पर उनके प्रभाव
विविधता का अर्थ
विविध या अलग होने की स्थिति या भाव या किसी भी अन्य से अलग होने का भाव विविधता कहलाती है। जैसे वह गोली इतिहास विचारधारा नस्ल भाषा लिंग या संस्कृति आदि।
सामाजिक विविधता
सामाजिक विविधता का अर्थ है कि एक समूह के लोग एक समूह के लोगों का अपनी जाति सभ्यता आदि विभिन्न दृश्यों से दूसरे समूह से भिन्न होना
सामाजिक विविधता के अंतर्गत निम्न विशेषताएं हैं
- जातिगत विविधता।
- व्यवसायिक विविधता।
- सामाजिक वर्गों की विविधता।
- धार्मिक विविधता।
सांस्कृतिक विविधता
एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति से अलग होने का भाव सांस्कृतिक विविधता कहलाता है।
भारत में अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते हैं यह समुदाय सांस्कृतिक चिन्हों जैसे भाषा धर्म पंथ प्रजाति या जाति दूसरों द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। सांस्कृतिक विविधता मूल रूप से एक समाज में विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों को एक साथ जोड़ रही है।
शिक्षा पर इसका प्रभाव
धनात्मक प्रभाव
संगठन में एकता का निर्माण या भाव संगठन का निर्माण नई पृष्ठभूमि नवीन कौशल नए विचार या दृष्टिकोण का विकास आपसी सहयोग की भावना का विकास सक्षमता और सुदृढ़ता का विकास। अनेक भाषाओं के ज्ञान से विश्व स्तर पर या सार्वभौमिक स्तर पर सुदृढ़ता।
ऋण आत्मक प्रभाव
हिंसा की संभावना बनाना विश्वास व रूढ़िवादिता को जन्म देना विभिन्न सांस्कृतिकयो के प्रति सामाजिक की कमी।
नई सामाजिक व्यवस्थाओं के निर्माण में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका
प्राचीन सामाजिक व्यवस्था निम्न आधारों पर आधारित थी
दार्शनिक आधार और संगठनात्मक आधार
दार्शनिक आधार
दार्शनिक आधार भी अनेक आधारों पर टिका होता है जो निम्न है
1) पुरुषार्थ
प्राचीन समय में चार पुरुषार्थ ऊपर सामाजिक व्यवस्था आधारित थी।
धर्म अर्थ काम और मोक्ष।
धर्म
नैतिक कर्तव्य का पालन।
अर्थ
सभी साधन जिनके माध्यम से भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है इन सभी पुरुषार्थ ओं की प्राप्ति के लिए अर्थ की आवश्यकता होती है।
काम
काम से अभिप्राय केवल यौन संतुष्टि ही नहीं है बल्कि धर्म कार्यों के लिए उत्तम संतानों के जन्म की प्रक्रिया है समाज और सृष्टि की निरंतरता के लिए काम आवश्यक है।
मोक्ष:-
यह सर्वोत्तम पुरुषार्थ है। धर्म अर्थ और काम इसके साधन है। मोक्ष जैविक लौकिक और अलौकिक आधारों से परे हैं।
2)कर्म और पुनर्जन्म
प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में कर्म और पुनर्जन्म पर आधारित थी पूर्णविराम व्यक्ति जैसा कर्म करेगा वैसा ही पुनर्जन्म में उसका जीवन होगा जो कर्म व्यक्ति आज करेगा उसका आने वाला जीवन उसके वर्तमान कर्मों पर आधारित होगा।
3)ऋण और यज्ञ
देव ऋण
पूजा पाठ करना अपने धर्म का पालन करना।
ऋषि ऋण:-
जीवन में जिस भी गुरु से हमने कुछ भी सीखा उसका जीवन पर्यंत आदर सम्मान करना। प्राचीन समय में गुरु दक्षिणा दी जाती है।
पित्र ऋण:-
संतानोत्पत्ति के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना। पुत्र के माध्यम से पित्र ऋण वितरण किया जाता है। माता पिता के प्रति कर्तव्य का पालन किया जाता है।
अतिथि ऋण-
किसी अतिथि के घर आने पर उसका आदर सम्मान करना।
भूत ऋण:-
प्राणी जगत के सभी जीव जंतुओं के प्रति दया करुणा का भाव रखना।
संस्कार :-
शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। भारतीय शास्त्रों में 16 सस्कारों के माध्यम से व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाने का प्रयास किया जाता है। इन संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति का सामाजिक मानसिक व नैतिक परिमार्जन होता है।
#2संगठनात्मक आधार
प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में निम्न संगठनात्मक आधार थे
1)वर्ण व्यवस्था:-
वर्ण व्यवस्था का उद्देश्य सामाजिकता में संतुलन बनाए रखना था। प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था के संगठन की आधारशिला वर्ण व्यवस्था होती थी। चार प्रकार की वर्ण व्यवस्था जो निम्न है
ब्राह्मण:- ब्रह्मा के मुख से।
क्षत्रिय:- ब्रह्मा की भुजाओं से
वैश्य:- ब्रह्मा की जांघों से।
शूद्र:- ब्रह्मा के पैरों से।
2) आश्रम व्यवस्था
आश्रम व्यवस्था का उद्देश्य मानव जीवन में संतुलन बनाए रखना। आश्रम चार प्रकार के होते थे। जो निम्न
ब्रह्मचारी आश्रम:- 1 से 25 वर्ष।
गृहस्थाश्रम:- 25 से 50 वर्ष।
वानप्रस्थाश्रम:- 50 से 75 वर्ष।
सन्यास आश्रम :- 75 से 100 वर्ष
3)जाति व्यवस्था:-
वर्ण व्यवस्था आगे जाकर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। सामाजिक व्यवस्था का आधार जाति व्यवस्था हो गई।
4)संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार सामाजिक जीवन का प्रमुख अंग संगठनात्मक आधार था। संयुक्त परिवार जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी रक्त संबंध हो।
नवीन सामाजिक व्यवस्था बनाने में शिक्षण संस्थानों की भूमिका
सामाजिक व्यवस्था सामाजिक नियंत्रण है जो संस्थागत साधनों जैसे परिवार समाज धार्मिक संस्थाएं राष्ट्र के रूप में रहता है जिनके द्वारा मानदंडों की पालना और मूल्यों का संरक्षण किया जाता है। सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
विद्यालयों की भूमिका
वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य भावी पीढ़ी को इस योग्य बनाना है जिससे वह नवीन ज्ञान और कौशल अर्जित कर सकें एवं अगली पीढ़ी को स्थानांतरित कर सकें।
प्राचीन समाज में संस्कृति के स्थानांतरण और संरक्षण और नवीनीकरण का जो कार्य औपचारिक संस्थाएं करती थी वे सभी दायित्व विद्यालय पर आ गया है।
आज शिक्षा को लोकतांत्रिक समाज व्यवस्था हेतु संस्कृति के संरक्षण हेतु और सामाजिक परिवर्तन लाने हेतु आवश्यक है अतः विद्यालयों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
विद्यालय का अर्थ एवं परिभाषा
विद्यालय शब्द विद्या और अन्य शब्दों का योग है। विद्या शब्द विद धातु से बना है जिसका अर्थ है ज्ञान अतः विद्यालय का तात्पर्य है जहां बालकों को ज्ञान प्रदान किया जाता है। जहां बालकों के शारीरिक मानसिक और नैतिक गुणों का विकास होता है। विद्यालय अंग्रेजी के स्कूल शब्द का हिंदी रूपांतरण है स्कूल शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द schole से हुई है जिसका अर्थ है अवकाश।
प्राचीन यूनान में अवकाश काल को ही आतम विकास का काल समझा जाता था जिसका अभ्यास अवकाश नामक स्थान पर करते हैं। धीरे-धीरे यही अवकाश कल स्कूल बन गए।
जॉन डीवी के अनुसार
विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है जहां बालक के वांछित विकास की दृष्टि से उसे विशेष क्रियाओं तथा व्यवस्थाओं की शिक्षा दी जाती है अतः कहा जा सकता है कि विद्यालय एक ऐसी आधारभूत संस्था है जिसका बालक के शैक्षिक जीवन में विशेष महत्व होता है। क्योंकि इसी संस्था में रहते हुए विभिन्न प्रकार के संस्कार एवं ज्ञान प्राप्त करता है और समाज के लिए उपयोगी सदस्य बनता है।
विद्यालय का कार्य
बालक की मानसिक योग्यता का विकास ,
संतुलित व्यक्तित्व का विकास ,
संस्कृति का संरक्षण व स्थानांतरण पूर्ण विकास आर्थिक कुशलता का विकास।
नागरिकता का विकास। नैतिकता और चारित्रिक गुणों का विकास।
समाज और शिक्षा
समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप होती है शिक्षा।
सामाजिक आकांक्षाएं निम्न पदों के आधार पर होती है। धार्मिक स्थिति। सामाजिक संरचना। राजनीतिक स्थिति। आर्थिक स्थिति। भौगोलिक स्थिति। सामाजिक परिवर्तन। सांस्कृतिक परिवर्तन।
विद्यालय प्रबंधन समिति या smc अर्थात स्कूल मैनेजमेंट कमिटी
गठन की आवश्यकता:- जन सहभागिता और स्वामित्व बढ़ाने के लिए।
RTE 2009 की धारा 21 वें राज्य अधिकार धारा 3 व4 के तहत गठन
Aसाधारण सभा
इसमें अभिभावक इसके सदस्य होंगे। विद्यालय के आसपास के सभी जनप्रतिनिधि जैसे सरपंच पार्षद विधायक सांसद आदि। समस्त अध्यापक। बैठक विवरण 3 महीने में एक बार जुलाई से मार्च। 25% हो तो गौरवपूर्ण कम हो तो बैठक स्थगित 7 दिन बाद वापस।
B कार्यकारिणी समिति (school management committee)
साधारण सदस्यों में से चयनित। 16 सदस्य या 75% अभिभावक या अभिभावक:- 11 इनमें से एक अध्यक्ष और एक और उपाध्यक्ष। सचिव:- एक होगा पदेन हेड मास्टर। वार्ड का पंच या पार्षद पदेन। 2 सदस्य मनोनीत उदाहरण के तौर पर विधानसभा सदस्य द्वारा। बैठक अमावस्या को होगी। एवं:- 25% या 4 सदस्य। नोट:- कार्यकारिणी समिति में 50% महिलाएं होनी चाहिए। जिसमें से एक sc और एकst की महिलाएं होनी चाहिए
Smc या कार्यकारिणी समिति के कार्य
विद्यालय के शैक्षणिक और भौतिक कार्यों क देखरेख। प्राप्त हुई सहायता राशि
कहां खर्च हुई उनका संचालन करना।
अन्य उनको दी गई कार्यों का संचालन।
विवाद की स्थिति में बीईओ द्वारा रेफर किए जाने पर d.e.o. का निर्णय मान्य होगा।
डीईओ अर्थात ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर अर्थात जिला शिक्षा अधिकारी।
BEO-ब्लॉक एजुकेशन ऑफीसर।
शैक्षिक प्रशासन या एजुकेशन एडमिनिस्ट्रेशन
प्रशासन शब्द administration का हिंदी रूपांतरण है। यह शब्द minister से बना है जिसका अर्थ सदैव दूसरों के हित में कार्य करने वाला। अर्थात प्रशासन का सामान्य अर्थ है कार्यों को संपादन करने वाला या कार्य की व्यवस्था करना। शैक्षिक प्रशासन:- शिक्षा की व्यवस्था को संपादन करना ही मुख्य अर्थ है।
Posdcorb के अनुसार प्रशासन के अंग:-
योजना का निर्माण करना:-
कार्य की संरचना योजना के द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
संगठन का निर्माण करना:- दो या दो से अधिक समान उद्देश्यों का समूह संगठन कहलाता है। संगठन निर्माण अति आवश्यक है जिसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
कर्मचारियों का चयन:- कर्मचारियों के चयन के लिए कई प्रणालियों के माध्यम से निर्धारित किए जा सकते हैं।
दिशा निर्देशन प्रदान करना:- एक नेतृत्व वाले व्यक्ति के अनुसार निर्णय और निर्देश दिए जा सकते हैं ताकि कार्य सुचारू रूप से चलाया जा सके।
समन्वय स्थापित करना:- कर्मचारियों के आपसी व्यवहार में सहयोग और समन्वय की भावना होनी चाहिए ताकि प्रशासन अपना कार्य संचालित कर सके।
रिपोर्ट या अभिलेख तैयार करना:- प्रशासन के प्रत्येक कार्य की रिपोर्ट बनाकर प्रतिपूर्ति प्राप्त करके कार्य आसानी से चल सके यानी कि मूल्यांकन पेश करना।
बजट तैयार करना:- आय और व्यय का लेखा जोखा रखना और प्रत्येक संसाधनों को कार्यशील रखना प्रमुख घटक है।
निष्कर्ष:- शैक्षिक प्रशासन कला और विज्ञान दोनों है क्योंकि इसमें कौशल के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होती है जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की गुणवत्ता में वृद्धि की जाती है। शैक्षिक प्रशासन सर्वाधिक उत्तरदायित्व वाला प्रशासन है जो छात्रों के लिए सांस्कृतिक सामाजिक वैज्ञानिक आर्थिक एवं धार्मिक सभी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था करता है।
सर्वशिक्षा अभियान या SSA
हमारे संविधान के अनुच्छेद 45 में स्पष्ट निर्देश है कि सभी राज्य संविधान के लागू होने के 10 वर्ष के अंदर 14 वर्ष के सभी छात्रों या बालकों की निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था कर लें।
प्रारंभिक शिक्षा की अनिवार्य एवं निशुल्क व्यवस्था करने में सरकार ने बहुत ही योजनाएं लागू की परंतु हम उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए अतः सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नवंबर 2000 में सर्व शिक्षा अभियान को मंजूरी दी।
इस की शुरुआत 2001 में की गई इसे राष्ट्रीय योजना के रूप में सभी जिलों में समान रूप से लागू किया गया इस अभियान को उद्देश्य 2010 तक 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराना था।
सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य
1) प्रारंभिक शिक्षा:-
8th तक की शिक्षा अर्थात 6 से 14 वर्ष के बालक
प्राथमिक शिक्षा:- कक्षा 1 से 5 तक।
उच्च प्राथमिक शिक्षा:- कक्षा 6 से 8 तक।
सबको अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा देना इसका उद्देश्य था।
2)प्राकृतिक वातावरण
6 से 14 वर्ष तक की आयु के बालकों को स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्रदान करना। अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करना। बालकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन हेतु शिक्षा प्रदान करना।
3)मूल्य आधारित शिक्षा
सामाजिकता नैतिकता राष्ट्रीयता और भाईचारे आदि नैतिक मूल्यों का विकास।
4)सामाजिक क्षत्रियों लैंगिक असमानता को समाप्त करना
जाति और क्षेत्र तथा लिंग के आधार पर शिक्षा प्रदान न करके सर्वहितकारी शिक्षा प्रदान करना।
सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य
सन 2003 तक प्राथमिक शिक्षा को सरल और झूला बनाना। सन 2003 तक सभी बच्चों को प्राथमिक और विद्यालय शिक्षा गारंटी के अंदर वैकल्पिक विद्यालय बैक टू स्कूल शिविर कैंप के माध्यम से शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए। सन 2007 तक सभी बच्चे 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर ले। 2010 तक सभी बच्चे आठवीं कक्षा पास कर लें और सभी बच्चों को स्कूल में बनाए रखें। और प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना।
सर्व शिक्षा अभियान की योजनाएं
शिक्षा गारंटी योजना :- अप्रैल 2001 में दूरदराज के क्षेत्रों में जहां 25 बच्चे हो जाएं वहां शिक्षा गारंटी के केंद्र स्थापित करें शिक्षा प्रदान की जाए अर्थात अलग से अध्यापक भेजकर।
ऑपरेशन श्यामपट्ट योजना
इस योजना का शुभारंभ 1986 में हुआ और इसे 2003 में एसएसए अर्थात सर्व शिक्षा अभियान में शामिल कर दिया गया।
इस योजना के अंतर्गत सभी जगह स्कूल भवन निर्माण करना। दो बड़े कमरे और एक बरामदा करना। दो अध्यापक और पठन सामग्री प्रदान करना।
जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम या डीपीपी
यह कार्यक्रम 1994 में शुरू 2009 में इसे ऐसे से या सर्व शिक्षा अभियान में शामिल कर दिया गया।
जिला विशेष पर लागू जो शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं जिनमें लागू करके मुख्यधारा में लाया जाए
कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय योजना
स्त्री शिक्षा बढ़ाने के लिए। केंद्र सरकार द्वारा 2004 में लागू। सन 2007 को सर्व शिक्षा अभियान में शामिल किया गया।
मिड डे मील योजना
इसकी शुरुआत 15 अगस्त 1995 में की गई। इसको 2007 में सर्व शिक्षा अभियान में शामिल कर लिया गया। दोपहर को पौष्टिक आहार प्रदान करना इसका मुख्य उद्देश्य था अर्थात बच्चे खाने की वजह से विद्यालय ना छोड़े।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
14 से 18 वर्ष की आयु के सभी युवाओं के लिए अच्छी गुणवत्ता युक्त माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मार्च 2009 में प्रारंभ की गई मुख्य योजना है। वर्ष 2013-14 में केंद्रीय प्रायोजित योजना स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी बालिका छात्रावास समावेशी शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा को रमसा में शामिल कर दिया गया। रमसा या RAMSA अर्थात राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान।
रमसा भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसको माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने तथा इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए जारी किया गया है।
रमसा का दृष्टिकोण:-
वर्ष 2017 तक सकल नामांकन दर 100% करना है। प्रत्येक बालक बालिका के लिए 5 किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक एवं 7 से 10 किलोमीटर तक के दायरे में उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना करना। वर्ष 2020 तक 100% ठहराव सुनिश्चित करना। आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों को माध्यमिक शिक्षा सर्व सुलभ करवाना।
रमसा के लक्ष्य और उद्देश्य
शिक्षा को ऐसा माहौल पैदा करना जिससे आर्थिक सामाजिक असमानता के लिंग भेद समाप्त हो। माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुरूप स्कूलों में सभी प्रकार की भौतिक सुविधाएं एवं योग्य स्टाफ की सुनीता। यह सुनिश्चित कराना कि माध्यमिक स्तर की शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण हो जिससे बच्चों के बौद्धिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक ज्ञान में वृद्धि हो।
भारतीय संविधान में शिक्षा संबंधी प्रावधान
जन्म से 6 वर्ष तक के शिशु की देखभाल और शिक्षा की व्यवस्था।
अनुच्छेद 45 में कहा गया है कि राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अंदर 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करें।
सन 2002 में 86 वा संविधान संशोधन हुआ जिसमें अनुच्छेद 45 में यह परिवर्तन किया गया कि राज्य सभी बच्चों को जब तक कि वह 4 वर्ष की आयु प्राप्त कर लें उसकी देखभाल और शिक्षा की व्यवस्था करेगा।
साथ ही संशोधन यह भी किया गया कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह माता-पिता या अभिभावक के रूप में अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।
शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के समान अधिकार संविधान के अनुच्छेद 29(2) यह व्यवस्था की गई है कि राज्य द्वारा घोषित हुआ राजनीति द्वारा सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षा संस्थानों में किसी भी नागरिक को धर्म वंश अथवा जाति के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
स्त्री शिक्षा की विशेष व्यवस्था
संविधान के अनुच्छेद15(3) मैं यह व्यवस्था की गई है कि राज्य को महिलाओं और बालकों के लिए कोई उपबंध बनाने में कोई वादा नहीं होगी।
समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था
संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया उसके बाद अनुच्छेद 46 न्याय व्यवस्था की गई की राज्य जनता के कमजोर वर्गों की शिक्षा की विशेष सावधानी से उन्नति करेगा और सामाजिक अन्याय तथा अन्य प्रकार के शोषण से उनका संरक्षण करेगा।
अल्पसंख्यकों की शिक्षा की विशेष व्यवस्था
संविधान के अनुच्छेद 30 एक के अनुसार धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा। संविधान के अनुच्छेद 30(2 )के अनुसार शिक्षा संस्थानों को सहायता दिन में राज्य किसी विद्यालय के विरुद्ध इस आधार पर भेद नहीं करेगा कि वह किसी विशेष धर्म या भाषा पर आधारित है।
मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा
संविधान के अनुच्छेद 350 के अनुसार प्रत्येक राज्य और स्थानीय प्राधिकारी का यह दायित्व है कि वह भाषा की दृष्टि से अलग संख्याओं के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मात्रिभाषा के माध्यम से शिक्षा की समुचित सुविधाएं उपलब्ध करवाएं।
धार्मिक शिक्षा पर रोक
सविधान के अनुच्छेद 28 के अनुसार पूर्ण रूप से राज्य नीति द्वारा पोषित किसी भी शिक्षा संस्थान में बच्चों को किसी धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
विधि के समक्ष समानता
अनुच्छेद 14 के नागरिकों को विधि के समक्ष समानता का अधिकार दिया गया है इसका तात्पर्य यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए समानता का कानून बनाए और लागू करें शिक्षा के संदर्भ में भी यही प्रावधान लागू होता है।
बाल अधिकारों पर संवैधानिक प्रावधान
बालकों को किसी भी प्रकार के खतरे में जोखिम की स्थिति में सुरक्षा का अधिकार है अंतरराष्ट्रीय नियम के मुताबिक बालक का मतलब जो व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है।
बाल अधिकार के तहत वह व्यक्ति जो 18 साल से कम उम्र का है उसे देखभाल और आरक्षण की आवश्यकता है और वह राज्य से ऐसी सुविधा प्राप्त करने का अधिकारी है
भारतीय संविधान के प्रावधान अनुच्छेद 21 क में 6 से 14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा प्रदान करना।
अनुच्छेद 24:- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जोखिम कार्य से सुरक्षा प्रदान करना।
अनुच्छेद39 ( घ) :- आर्थिक जरूरतों की वजह से जबरन ऐसे कामों में भेजना जो बच्चे की आयु और क्षमता के उपयुक्त नहीं है से सुरक्षा प्रदान करना।
अनुच्छेद 39 च मैं बालकों को स्वतंत्र एवं गरिमा में माहौल में स्वस्थ विकास के अवसर व सुविधाएं मुहैया करवाना और शोषण से बचाना।
इनके अलावा बालकों को पुरुष और महिलाओं के बराबर समान अधिकार प्राप्त हैं
बाल संरक्षण कानून
यह कानून 2006 में लाया गया। 1 नवंबर 2007 से लागू हुआ। इस अधिनियम के उद्देश्य बाल विवाह के आयोजन पर रोक लगाने का है। बाल विवाह अधिनियम 2006 को बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम 1929 के स्थान पर लाया गया।
बाल श्रम संशोधन अधिनियम 2016
बाल श्रम अधिनियम 1986 को संशोधित किया गया है इसके तहत 14 साल से कम उम्र के बालकों से मेहनत मजदूरी जैसा शारीरिक कार्य करवाना जुर्म माना गया है। इस संशोधन के बाद 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के पारिवारिक उद्यमों में काम करने को वैध माना गया है।
14 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए खतरनाक घोषित किए गए क्षेत्रों में काम करना निषेध किया गया है। बाल मजदूरी के आरोप में पहली बार पकड़े जाने पर 20000 से ₹50000 तक का जुर्माना या 6 माह से 3 वर्ष तक के दिया दोनों का प्रावधान है। दूसरी बार पकड़े जाने पर सीधे 1 साल या 3 साल तक की कैद का प्रावधान है।
बालिका शिक्षा फाऊंडेशन
इसकी स्थापना 30 मार्च 1995 को हुई। इसका उद्देश्य बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना है। इसमें पैसे 204 करोड रुपए वर्तमान में खर्च किए गए हैं और आरंभ में एक करोड रुपए सरकार द्वारा दिए गए थे।
गार्गी पुरस्कार
यह कक्षा 10 व 12 के लिए है। यह कक्षा 10 के लिए 1998 में शुरुआत की गई। राजस्थान बोर्ड में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को प्रदान किया जाता है। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय बीकानेर द्वारा दिए जाते हैं। गार्गी पुरस्कार के तहत कुल ₹6000 दिए जाते हैं 3000 + 3000 दो किस्त में।
कक्षा 12 के लिए 2008-9 में शुरुआत की गई। कक्षा 12 में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को दिया जाता है। इस पुरस्कार में ₹5000 दिए जाते हैं। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय बीकानेर द्वारा दिए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन दिए जाते हैं।
आपकी बेटी योजना
शुरुआत इसकी 2004-5 में हुई है। उन बालिकाओं को प्रदान किया जाता है जो बीपीएल श्रेणी में हो और माता-पिता में से एक ना हो या अनाथ हो। कक्षा 1 से 8 तक ₹2100 प्रति वर्ष दिए जाते हैं और कक्षा 9 से 12 तक ₹2500 प्रतिवर्ष दिए जाते हैं।
इंदिरा प्रदर्शनी पुरस्कार
2,019-20 में शुरुआत। जिले मेरिट में आने वाली छात्राओं के लिए दिए जाते हैं। कक्षा 8 10 व 12 की बालिकाओं को दिया जाता है। जिला मुख्यालय पर समारोह है आयोजन के दौरान दिए जाते हैं। कक्षा 8 के लिए ₹40000 प्रदान किए जाते हैं। कक्षा 10 के लिए ₹75000 प्रदान किए जाते हैं। कक्षा 12 के लिए ₹100000 प्रदान किए जाते हैं।
इंदिरा गांधी के जन्मदिवस पर 19 नवंबर को पैसे बालिका शिक्षा फाउंडेशन द्वारा दिए जाते हैं।
मुख्यमंत्री हमारी बेटी योजना
2015-16 में शुरुआत राजकीय विद्यालय में अध्ययनरत जिले की 4 बालिकाओं को 75% से अधिक अंक प्राप्त करने पर दिए जाते हैं।
कक्षा 10 में प्रथम स्थान और दूसरा स्थान प्राप्त करने वाली लड़कियों को दिया जाता है और जिला मेरिट में होनी चाहिए और बीपीएल और अनाथ होनी चाहिए।
कक्षा 11 व 12 में अध्ययन करने के लिए 15000 रुपए दिए जाते हैं। स्नातक की शिक्षा हेतु ₹225000 दिए जाते हैं। प्रतिवर्ष
विदेश में स्नातक योजना
बालिकाओं को कक्षा 10 की प्रथम तीन बालिकाओं को बालिका के माता-पिता की सहमति से स्नातक राशि अधिकतम 2500000 रुपए प्रति वर्ष दिए जाते हैं। इन सभी योजनाओं के पैसे वहां बालिका शिक्षा फाउंडेशन द्वारा किया जाता है।
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