गणित
About
इस इकाई में हम गणित की प्रकृति और कार्यक्षेत्र , अर्थ और गणित की परिभाषा , गणित शिक्षण का दायरा, गणित शिक्षण का इतिहास और गणितज्ञों के योगदान के संदर्भ में भास्कर आचार्य आर्यभट्ट रामानुजन यूक्लिड पाइथागोरस आदि। साथी गणित के उद्देश्यों और उद्देश्यों का महत्व शिक्षण। गणितीय
प्रस्ताव की प्रकृति सत्य मूल्य योगिक प्रस्ताव आदि के बारे में विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।
paper-8
 |
गणित
|
Unite-1
गणित का अर्थ प्रकृति अवधारणा और कार्य क्षेत्र, गणित शिक्षण का दायरा और गणित शिक्षण का इतिहास, गणितज्ञों का योगदान के संदर्भ में आर्यभट्ट, रामानुजन, पाइथागोरस, यूक्लिड विभाजन, भास्कर, गणित का उद्देश्य और उद्देश्यों का महत्व शिक्षण में गणितीय प्रस्ताव की प्रकृति और सत्य मूल्य, योग प्रस्ताव
Unite-2
स्कूल में गणित पढ़ने का उद्देश्य, और अवधारणा, प्रकृति, अवधारणा निर्माण और अवधारणा अलिमिलेशन, कॉन्सेप्ट mapping, गणित शिक्षण के उद्देश्य और सामान्य, ब्लूम का डिजिटल वर्गीकरण स्कूली शिक्षा के उद्देश्य की तुलना में, गणित में विभिन्न समग्र क्षेत्र जैसे बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति आदि के विशिष्ट उद्देश्य, और शिक्षक बिंदुओं को लिखना ,गणित शिक्षक के दृष्टिकोण जैस विश्लेषणात्मक, सिंथेटिक, आगमनात्मक, निगमनात्मक ,अनुमानी, अवधारणा, मानचित्र, परियोजना और प्रयोगशाला, गणित पढ़ने की विभिन्न तकनीक जैसे मौखिक, लिखित, ड्रिल, असाइनमेंट , पर्यवेक्षित अध्ययन और प्रोग्राम्ड लर्निंग का प्रयोग करना।
Unit-4
गणित में शिक्षण अधिगम संसाधन
प्राथमिक और माध्यमिक स्रोतो के प्रकार और क्षेत्र, पाठ्य सामग्री पत्रिका, समाचार पत्र आदि से डाटा, माध्यमिक स्रोतों और संदर्भ सामग्री जैसे शब्दकोश और विश्वकोश के लिए पुस्तकालय का उपयोग करना, गणित प्रयोगशाला ऑनलाइन संसाधन
इकाई और पाठ योजना
Unite-5
आकलन और मूल्यांकन
उपलब्धि परीक्षण और नैदानिक परीक्षण, उपचारात्मक परीक्षण के अर्थ, अवधारणा और निर्माण
ब्लूप्रिंट का अर्थ, अवधारणा, निर्माण और आवश्यकता
सतत और व्यापक मूल्यांकन का अर्थ, अवधारणा, महत्व और सीमाएं
गणित का अर्थ(Meaning of Mathematics)
गणित बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है।
उदाहरण के लिए कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कोई संख्याओं का तथा कोई स्थान का विज्ञान तथा
कोई मापन मात्रा तथा माप तोल का विज्ञान भी कहते हैं।
लेकिन वास्तव में गणित का शाब्दिक अर्थ
होता है वह शास्त्र जिसमें घटनाओं की
प्रधानता हो इस प्रकार गणित के संबंध में
दी गई मान्यताओं के आधार पर कहा जा
सकता है गणित शास्त्र अंक अक्षर चिन्नादी संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाप, दिशा तथा स्थान का बोध होता है ।
गणित विषय का आरंभ
गिनती से ही हुआ है। और संख्या पद्धति इसका एक विशेष क्षेत्र है। जिसकी
सहायता से गणित की अन्य शाखाओं को विकसित किया गया है।
गणित की प्रकृति
विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए जाने वाले
प्रत्येक विषय के उद्देश्य तथा विषय की प्रकृति
निश्चित होती है। गणित विषय की संरचना अन्य
विद्यालय विषयों की अपेक्षा अधिक मजबूत तथा
शक्तिशाली होती है जिसके कारण गणित अन्य
विषय वस्तुओं से अधिक स्थाई एवं महत्वपूर्ण
विषय है। किसी विषय की संरचना जैसे-जैसे
कमजोर होती है उस समय की सत्यता मान्यता
तथा पूर्व कथन की क्षमता भी उसी क्रम में
घटती जाती है। इसी निश्चित ढांचे या संरचना
के आधार पर प्रत्येक विषय की प्रकृति का
निर्धारण किया जाता है तथा उसको पाठ्यक्रम
में स्थान दिया जाता है। सभी विषयों की प्रकृति
एक समान नहीं होती है। गणित विषय की अपनी
एक अलग प्रकृति है। जिसके आधार पर उसकी
तुलना किसी अन्य विषय से कर सकते हैं।
किन्हीं दो या दो से अधिक विषय की तुलना का आधार उन विषयों की प्रकृति ही है जिससें उन विषयों की जानकारी प्राप्त करते हैं
गणित की परिभाषाएं
मार्शल एच स्टोन के अनुसार
गणित ऐसी अमुक्त व्यवस्था का
अध्ययन है जो की अमूर्त तत्वों से
मिलकर बनी है इन तत्वों को
मूर्त रूप में परिभाषित किया गया
है।
Wartend के अनुसार
गणित एक ऐसा विषय है जिसमें यह भी नहीं जानते हैं कि हम
किसके बारे में बात कर रहे हैं और ना ही यह जान पाते हैं
कि हम जो कर रहे हैं वह सत्य है।
गैलीलियो के अनुसार
गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने संपूर्ण जगत
या ब्रह्मांड को लिख दिया है।
जॉन लॉक के अनुसार
गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा विद्यार्थियों के मन या मस्तिक तर्क करने की आदत विस्थापित होती है।
उपयुक्त परी भाषाओं के आधार पर गणित के
संबंध में सारांश रूप में कहा जा सकता है कि:-
गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है। गणित गणना का विज्ञान है।
गणित माप तोल मात्रा तथा दिशा का विज्ञान है।
गणित विज्ञान की क्रमबद्ध संगठित अर्थात शाखा है। इसमें मात्रात्मक तथ्यों और संबंधों का अध्ययन किया जाता है। तार्किक विचारों का विज्ञान है। गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तरक्की करने की आदत
को विस्थापित किया जाता है। यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है। गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
गणित का महत्व
गणित की जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण उपयोगिता है। आधुनिक मानव जीवन गणित से अछूता रहकर जीवित रहना संभव नहीं परंतु कठिन अवश्य है। अगर कोई प्राणी बिना गणित के ज्ञान के जीवित रहना चाहे तो उसका मनुष्य समाज में जीना जाना पूर्णतया संभव है। इसकी उपयोगिता जीवन के न्यू विभिन्न पक्षों में निम्न प्रकार हो सकती है:-
- विचार व्यक्त करने में महत्व।
- दैनिक जीवन में महत्व।
- आर्थिक सामाजिक प्रगति में महत्व।
- बौद्धिक प्रवणता में।
- परिणाम की निश्चित और आत्मनिर्भरता में।
गणित शिक्षण के उद्देश्य
सामान्यतः गणित के 6 उद्देश्य जाने जाते हैं:-
- गणित की उपयोगिता का उद्देश्य।
- अनुशासनात्मक उद्देश्य।
- सांस्कृतिक संरक्षण का उद्देश्य।
- मानसिक और बौद्धिक विकास का उद्देश्य।
- आनंद की प्राप्ति के उद्देश्य।
- अन्य विषयों से संबंध का उद्देश्य।
ब्लूम का डिजिटल वर्गीकरण-
1.संज्ञानात्मक या ज्ञानात्मक
2.भावात्मक
3.क्रियात्मक
1.ज्ञानात्मक:-
गणित शिक्षण में सहायक सामग्री
मूल वास्तु,प्रतिमूर्ति,चित्र,रेखाचित्र और चार्ट,ग्राफ, मानचित्र,संग्रहालय,बुलेटिन बोर्ड,श्यामपट्ट, रेडियो, चलचित्र, टेलीविजन, ग्रामोफोन तथा लिगवा फोन चित्र विस्तारक, जादू की लालटेन, टेप रिकॉर्डर, स्लाइडर से फिल्म से तथा प्रोजेक्ट आदि।
गणित अध्यापक के गुण एवं कर्तव्य
गणित अध्यापक के गुना को दो भागों में बांटा जा सकता है।
पहला व्यक्तिक गुण और दूसरा k
व्यक्तिक के गुण
- उत्तम स्वास्थ्य।
- संवेगात्मक संतुलन।
- प्रजातांत्रिक नेतृत्व।
- रुचियां उत्साह पूर्ण।
- धैर्यवान एवं सहनशील।
- प्रेम एवं सहानुभूति वाला।
- पक्षपात रहित कार्य करना ।
- अपने देश की वेशभूषा पहनना।
- आवाज तेजस्वी होना।
- भाषा में शुद्धता एवं तेज होना।
- आत्मविश्वास एवं दृढ़ इच्छा शक्ति होना।
- चरित्रवान होना।
- नैतिकता होना।
- आदर्श जीवन दर्शन वाला होना चाहिए।
- मौलिक विचार होने चाहिए।
- तर्क शक्ति दृढ़ होनी चाहिए।
गणित अध्यापक के व्यवसायिक गुण
- अपने विषय का ज्ञात होना चाहिए।
- बुद्धिमान एवं विचारक होना चाहिए।
- आधुनिक मनोविज्ञान का ज्ञात होना चाहिए।
- बालकों की प्रकृति का ज्ञात होना चाहिए।
- व्यावसायिक निष्ठा होनी चाहिए।
- पाठ्य सहगामी क्रियो में रुचि होनी चाहिए।
- संस्कृति के संरक्षण का ज्ञान होना चाहिए।
- कक्षा में उचित व्यवहार करता हो।
- कक्षा नियंत्रण की दक्षता होनी चाहिए।
- शिक्षण विधियां का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
- व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं का ज्ञात होना चाहिए।
- समय का पाबंदी होना चाहिए।
- उत्तम संगठन करता होना चाहिए।
- आधुनिक मूल्यांकन पत्तियों में निपुण होना चाहिए।
- दृश्य सर्वे सामग्री का गणित में उचित स्थान पर प्रयोग करता हो।
आगमन विधि
सोपान या स्टेप्स:-
इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है
1) विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण
2) निरीक्षण करना।
3) सामाजिकरण करना।
4)परीक्षण एवं सत्यापन करना।
1)विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण:-
इस सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के समक्ष एक ही प्रकार के कई
उदाहरणों को प्रस्तुत किया जाता है। तथा विद्यार्थियों की सहायता से
उन उदाहरणों को प्राप्त कर लिया जाता है।
2) निरीक्षण या ऑब्जर्वशन:-
प्रस्तुत उदाहरणों का हल ज्ञात करने के पश्चात विद्यार्थी उनका निरीक्षण करते हैं तथा शिक्षक के सहयोग से इसी परिणाम या निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।
3) नियमीकरण् सामाजिकरण:-
प्रस्तुत किए गए उदाहरणों का निरीक्षण करने के पश्चात
शिक्षक तथा विद्यार्थी तक पूर्ण ढंग से विचार-विमर्श करके
किसी सामान्य पूर्ण ढंग से नियम को निर्धारित करते हैं।
4) परीक्षण एवं सत्यापन:-
किसी सामान्य सूत्र सिद्धांत या नियम का निर्धारण करने के
पश्चात विद्यार्थी अन्य उदाहरणों अथवा समस्यात्मक प्रश्नों की
सहायता से निर्धारित नियमों का परीक्षण एवं सत्यापन करते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त सोपान ओं का अनुसरण करते हुए तथा
उनकी विभिन् माननीय शक्तियों का विकास करते हैं।
आगमन विधि का प्रयोग
उदाहरण एक साधारण ब्याज की समस्याओं को हल करके
सूत्र की स्थापना करना।
प्रथम सोपान:- कक्षा में शिक्षक विद्यार्थियों के समक्ष साधारण ब्याज से संबंधित कई उदाहरण प्रस्तुत करेगा तथा उसका हल
एक आंकिक नियम द्वारा ज्ञात करवाएगा जिसकी सहायता से
साधारण ब्याज करने के सूत्र का निर्धारण किया जा सकता है जैसे:-
प्रश्न 1) ₹700 का 8% ब्याज की दर से 3 वर्ष का ब्याज ज्ञात कीजिए।
उत्तर:- 700 ×8×3÷100
=24×7
=168
आगमन विधि के गुण और विशेषताएं
यह एक वैज्ञानिक विधि है क्योंकि इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान प्रत्यक्ष तथ्यों पर आधारित है। इस विधि द्वारा विद्यार्थी को निम्न सूत्र का निर्धारण एवं सामान्य करण की प्रक्रिया का ज्ञान हो जाता है।
इस विधि में विद्यार्थी स्वयं उदाहरण निरीक्षण और परीक्षण द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं। इसलिए इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई होता है
आगमन विधि द्वारा विद्यार्थियों की आलोचना में आत्मक निरीक्षण एवं तर्क शक्तियों का विकास होता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।
इस विधि द्वारा विद्यार्थियों को स्वयं कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। जिससे उनमें आत्मविश्वास एवं आत्म निरीक्षण में वृद्धि होती है।
इस विधि की सहायता से गणित के विभिन्न नियमों सिद्धांतों एवं संबंधों तथा नवीन सूत्रों आदि का प्रतिपादन करने में सहायता मिलती है यह छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी एवं उपयुक्त विधि है। इसके द्वारा विद्यार्थियों में गणित के प्रति उत्सुकता एवं रुचि बनी रहती है। इस विधि में विद्यार्थी उदाहरणों की सहायता से स्वयं ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा नवीन ज्ञान की प्राप्ति उत्सुक बने रहते हैं। नवीन ज्ञान प्राप्त करने की उपयुक्त विधि है।
N o t e :- नया टॉपिक पढ़ने में आगमन विधि प्रयोग में ली जाती है।
आगमन विधि दोस् या सीमाएं
इस विधि की गति अत्यंत धीमी है जिससे इसके द्वारा ज्ञान प्राप्ति में समय और परिश्रम अधिक लगता है इस विधि का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त बुद्धि सोच समझ की आवश्यकता होती है अतः सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए इसके द्वारा ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है। यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है क्योंकि उच्च कक्षाओं में पाठ्यक्रम इतना विस्तृत होता है कि इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम को पूर्ण करना संभव नहीं है। अनुभवी व योग्य अध्यापक ही इस विधि का प्रयोग सफलता पूर्व कर सकते हैं। सामान्य करण के लिए प्रत्यक्ष उदाहरणों का शिक्षक शिक्षार्थियों के लिए आसान बना देता है। इस विधि द्वारा पर्याप्त परिणाम पूर्णतया सत्य नहीं होते उनकी सत्यता इन बातों पर निर्भर करती है कि वह परिणाम कितने उदाहरणों पर आधारित है। क्योंकि कोई भी परिणाम जितने अधिक विशिष्ट उदाहरणों पर होता है उनकी विशेषता व विश्वसनीयता उतनी ही अधिक होती है।
 |
| आगमन विधि की प्रक्रिया का फ्लो चार्ट |
निगमन विधि
निगमन विधि आगमन विधि के विपरीत है निगमन विधि का प्रयोग मुख्यतः बीजगणित रेखा गणित अर्थात त्रिकोणमिति में किया जाता है क्योंकि गणित के इन उप विषयों के विभिन्न संबंधों नयमों और सूत्रों में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
निगमन विधि की कार्य विधि
निगमन विधि में सूक्ष्म से स्कूल की ओर सामान्य से विशिष्ट की ओर तथा प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर या नियम से उदाहरण की ओर अग्रसर होते हैं। इस विधि में विद्यार्थियों के सम्मुख सूत्रों नियमों निष्कर्षण तथा संबंधों आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत किया जाता है। बताए गए नियमों एवं सूत्रों को सिद्धांतों को विद्यार्थी याद कर लेता है। सामान्यतः शिक्षक विद्यार्थियों को निम्न प्रकार के सूत्र या निष्कर्ष बताते हैं जैसे पाइथागोरस पर में साधारण ब्याज के सूत्र चक्रवर्ती ब्याज के सूत्र सर्वसमिकाएं पृष्ठीय व समतलीय आकृतियों का क्षेत्रफल और आयतन आदि।
निगमन विधि के सोपान या कार्यविधि या क्रियाविधि
निगमन विधि में निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है:-
1) सूत्र या नियम की परिभाषा देना:-
यह निगमन विधि का प्रथम चरण है इस विधि में अध्यापक सर्वप्रथम विद्यार्थी को पहले से ज्ञात सर्वमान्य नियम या सिद्धांत बता देता है या श्यामपट्ट पर लिख देता है।
2) नियम से संबंधित प्रयोग या उदाहरण देना:-
नियम को बताने के बाद नियम के सूत्र या सत्यापन हेतु प्रयोग या कार्य किए जाते हैं तथा उसके विभिन्न उदाहरण दिए जाते हैं।
3) निष्कर्ष निकालना:
प्रयोगों में उदाहरणों के द्वारा विद्यार्थी निष्कर्ष निकालते हैं।
4) सत्यापन कर पुन: नियम स्थापना:-
उदाहरण 1) एक आयत की लंबाई 8 मीटर तथा चौड़ाई 6 मीटर है तो आयत का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
उत्तर:- आयत का क्षेत्रफल =लंबाई ×चौड़ाई
=8×6
=48
निगमन विधि के गुण व विशेषताएं
इस विधि के प्रयोग से गणित का कार्य अत्यंत सरल एवं सुविधाजनक हो जाता है। निगमन विधि द्वारा विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति विकसित होती है क्योंकि इस विधि का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों को अनेक सूत्र याद करने पड़ते हैं इस विधि द्वारा ज्ञान अर्जन की गति तीव्र होती है क्योंकि विद्यार्थी समस्या हल करते समय सीधे सूत्र का प्रयोग करते हैं। जब समय का अभाव हो उन परिस्थितियों में इस विधि का प्रयोग करना चाहिए। रेखा गणित व कर्मियों अंक गणित में पहाड़े आदि को पढ़ने के लिए इसी विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि का प्रयोग करने पर शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों को कम परिश्रम करना पड़ता है। इस विधि द्वारा नियमों सिद्धांतों एवं सूत्रों की स्थापना तथा सत्यता की जांच आसानी से की जा सकती है इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थी अभ्यास कार्य शीघ्रता एवं आसानी से कर सकते हैं। यह विधि संक्षिप्त होने के साथ साथ व्यवहारिक भी है।
निगमन विधि की सीमाएं
यह विधि मनोविज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत है क्योंकि यह समृद्धि केंद्रित विधि है। यह विधि खोज करने की अपेक्षा रखने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है। इस विधि में विद्यार्थी यंत्र वक्त कार्य करते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नहीं होता कि अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं। इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट एवं अस्थाई होता है। क्योंकि उसे वह अपने स्वयं के प्रयासों से प्राप्त नहीं करते हैं। यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न सूत्रों नियमों एवं सिद्धांतों को समझना कठिन होता है। इस विधि में तर्क चिंतन एवं अन्वेषण जैसी शक्तियों का विकास करने का अवसर नहीं मिलता है। इस विधि के प्रयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती है। इस विधि द्वारा विद्यार्थियों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।
आगमन विधि तथा निगमन विधि में अंतर
आगमन विधि में विशिष्ट से सामान्य उदाहरण से नियम तथा स्थूल से सूक्ष्म की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
जबकि निगमन विधि में सामान्य से विशिष्ट नियम से उदाहरण तथा सूक्ष्म से स्थूल की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
आगमन विधि में विद्यार्थी एक अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है तथा स्वयं सक्रिय रहकर नियम या सूत्र ज्ञात करता है।
जबकि निगमन विधि में नियम या सूत्र पहले ही बता दिए जाते हैं विद्यर्थी खोजे गए नियम या सूत्रों की पुष्टि मात्र ही कर पाता है।
इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में खोज प्रवृत्ति का विकास होता है जबकि निगमन विधि में विद्यार्थियों को खोज उन्नति विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।
आगमन विधि अध्यापन या टीचिंग की श्रेष्ठ विधियां जबकि निगमन अध्ययन या अधिगम की श्रेष्ठ विधि है।
आगमन विधि छोटी कक्षाओं के लिए बहुत उपयोगी है जबकि निगमन विधि उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी है।
इस विधि में विद्यार्थी स्वयं नियम एवं सूत्रो का निर्धारण करते हैं जिससे उसमें आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का विकास होता है जबकि निगमन विधि में सूत्रों को पहले ही बता दिया जाता है जिससे विद्यार्थी में आत्मविश्वास की कमी रहती है।
यह विधि नवीन ज्ञान की खोज करने में सहायक है जबकि निगमन विधि मैं विद्यार्थी दूसरों द्वारा दिए ज्ञान का ही प्रयोग करते हैं। आगमन विधि एक वैज्ञानिक विधि है जिससे विद्यार्थी में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है जबकि निगमन विधि मैं वैज्ञानिक दृष्टि को विकसित होने के अवसर नहीं मिलते हैं।
आगमन विधि फोजिया अनुसंधान का मार्ग है। जबकि निगमन विधि अनुकरण का मार्ग है क्योंकि विद्यार्थी बताए गए नियमों या सूत्रों का अनुकरण करता है। आगमन विधि में शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही सक्रिय रहते हैं अतः विद्यार्थी केंद्रित विधि है। जबकि निगमन विधि में शिक्षक ही अधिक सक्रिय रहता है विद्यार्थी एक मुख श्रोता होता है अतः यह अध्यापक केंद्रित विधि है। आगमन विधि मौलिक एवं रचनात्मक कार्यों पर बल देती है जबकि निगमन विधि समस्या समाधान पर अधिक बल देती है। आगमन विधि द्वारा अध्ययन की प्रक्रिया रुचिकर हो जाती है। जबकि निगमन विधि में अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया नीरस हो जाती है। आगमन विधि में प्रत्येक पद या सोपान का महत्व होता है तथा विद्यार्थी उनको लिखना सीख जाते हैं। जबकि निगमन विधि में विद्यार्थी बहुत से पदों को लिखना नहीं सीख पाते हैं। आगमन विधि की गति धीमी होती है जिससे परिश्रम व समय अधिक लगता है जबकि निगमन विधि की गति तीव्र होती है जिससे परिश्रम वह समय कम लगता है। आगमन विधि एक वैज्ञानिक विधि है जो कि अवबोध तथा स्मृति केंद्रित है जबकि निगमन विधि अपेक्षाकृत वैज्ञानिक विधि है।
विश्लेषण विधि
विश्लेषण अर्थात बांटना।
यह विधि विश्लेषण प्रक्रिया पर आधारित है गणित की समस्याओं के विश्लेषण में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। यह विधि रेखा गणित में अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है। इस विधि की सहायता से किसी भी समस्या के कठिन भाग को विश्लेषण करके यह ज्ञात किया जाता है कि इस समस्या का हल किस प्रकार किया जाए। इस प्रकार समस्याओं के विभिन्न भागों का विच्छेदन करने को ही विश्लेषण कहते हैं। इस विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर तथा निष्कर्ष से ज्ञात तथ्यों की ओर अग्रसर होते हैं इस विधि में जो ज्ञात करना होता है या सिद्ध करना होता है उससे आरंभ करते हैं कि इसे ज्ञात करने के लिए या सिद्ध करने के लिए पहले क्या ज्ञात करना चाहिए। इस प्रकार ज्ञात करते-करते जो कुछ दिया होता है उन तक पहुंच जाते हैं। जटिल समस्याओं को हल करने के लिए इस विधि का ही प्रयोग करते हैं। क्योंकि इस विधि द्वारा उस समस्या को छोटे-छोटे भागों में बांट देते हैं। जिसके कारण इस समस्या का हल ढूंढना संभव हो जाता है मुख्यतः इस विधि का प्रयोग अगर लिखित विधियों में किया जाता है:-
1)किसी परमें को हल करना।
2)जब रेखा गणित में किसी रचना का कार्य करना हो।
3)जब अंकगणित में किसी नवीन समस्या को हल करना हो।
आगमन विधि उदाहरण
1) ₹700 8% ब्याज पर 3 वर्ष के लिए दिए जाते हैं ?
उत्तर ₹100 का 1 वर्ष का ब्याज= 8 रुपए
₹1 का 1 वर्ष का ब्याज =8 ÷100
₹700 का 1 वर्ष का ब्याज =8÷100×700
₹700 का 3 वर्ष का ब्याज=8÷100×700×3
= मूलधन× ब्याज× समय÷100
विश्लेषण विधि उदाहरण
ac+ 4b 2/bc=c 2+4bd/dc
acd+4b2d=bc2+4b 2d
Ad= bc2
Ad =bc
a/b
a/b =c/d
विश्लेषण विधि के गुण
इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में अन्वेषण करने की क्षमता और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
इस विधि में विद्यार्थियों में तर्क शक्ति विचार शक्ति तथा विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है।
इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई होता है। तथा विद्यार्थी नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहता है।
यह विधि वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है इस विधि में बालक स्वयं अपनी समस्याओं के समाधान के लिए हल ढूंढ सकता है। किसी पर में की उत्पत्ति तथा रचना इस विधि द्वारा ही समझी जा सकती है।
विश्लेषण विधि के दोष या सीमाएं
यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए कम उपयोगी है क्योंकि उस समय उनकी तरफ शक्ति तथा विश्लेषण की क्षमता अधिक विकसित नहीं होती है।
इस विधि द्वारा शिक्षण करने पर पाठ्यक्रम को निर्धारित समय में पूरा नहीं किया जा सकता।
इस विधि द्वारा समस्या को हल करने में अधिक समय लगता है। क्योंकि विश्लेषण की प्रक्रिया तथा तार्किक प्रक्रिया लंबी होती है।
विश्लेषणात्मक विधि का प्रयोग तभी संभव है जब हमें ज्ञात तथ्य तथा अज्ञात निष्कर्षण क जानकारी हो।
प्रत्येक अध्यापक इस विधि का प्रयोग करने में सफल नहीं हो सकता।
संश्लेषण विधि
यह विधि संश्लेषण कार्य पर आधारित है। संश्लेषण का अर्थ है अलग-अलग भागों को जोड़ना यह विधि विश्लेषणात्मक विधि के विपरीत है। इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर जाते हैं। जब कोई समस्या आती है तो सबसे पहले दी गई समस्त सूचनाओं को एकत्र करते हैं।
संश्लेषण विधि की कार्यविधि
संश्लेषण विधि इस प्रकार कार्य करती है:- जो दिया है उससे आरंभ करते हैं जो सिद्ध करना है उस पर पहुंचते हैं। इस विधि में जो दिया हुआ है उसे क्रम वाद कड़ी में जोड़ना होता है। तथा यह जुड़ी हुई जानकारी हमें वहां तक पहुंचाती है जहां से अज्ञात जानकारी सत्य हो जाती है।
उदाहरण 1) यदि a/b=c/d तो सिद्ध कीजिए
उत्तर दिया गया है
a/b=c/d समीकरण एक
समीकरण एक के दोनों पक्षों में 4b ÷c से जोड़ने पर
4b ÷c + a/b=c/d +4b ÷c
ac+4b2/bc =c2+4b d/c d
संश्लेषण विधि के गुण
इस विधि में विद्यार्थियों में निपुणता गति और काम करने की शक्ति पैदा होती है।
यह सरल तथा समय बताने वाली विधि है ।
अभ्यास के लिए यह विधि उपयोगी है।
यह विधि संश्लेषण कार्य पर आधारित है।
संश्लेषण का अर्थ है अलग-अलग भागों में जोड़ना।
यह विधि विश्लेषणात्मक विधि के विपरीत है।
संश्लेषण विधि के दोष या सीमाएं
यह विधि विद्यार्थियों के मन में संकाय उत्पन्न करती हैं और उनके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं देती है। इस विधि द्वारा विषय की समझ पूरी तरह से नहीं हो पाती है। इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में सोचने समझने की शक्ति का विकास नहीं हो पाता है। इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में मूल लिखता और नए तथ्यों को खोजने की शक्ति का विकास नहीं हो पाता है। यह विधि रखने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है। यह विधि विद्यार्थी को क्रियाशीलता नहीं रखती है।
विश्लेषण विधि तथा संश्लेषण विधि में अंतर
विश्लेषण विधि में विद्यार्थियों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के अवसर मिलते हैं
जबकि संश्लेषण विधि में विद्यार्थियों को पहले से तैयार सामग्री उपलब्ध हो जाती है जिससे उन्हें अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है।
विश्लेषण विधि में विद्यार्थियों के आत्मविश्वास से आत्मनिर्भरता का विकास होता है जबकि संश्लेषण विधि में आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास की कमी रहती है क्योंकि विद्यार्थी समस्याओं का हल स्वयं नहीं खोजते हैं।
विश्लेषण विधि में समस्याओं को शीघ्र एवं स्वच्छता से हल करना नहीं सीख पाते हैं। जबकि संश्लेषण विधि में समस्याओं को शीघ्रता एवं स्वच्छता तथा स्पष्टता के साथ हल करने की दृष्टि से एक उपयोगी विधि है।
विश्लेषण विधि द्वारा इस बात का उत्तर स्पष्ट मिलता है कि रचना का कोई पद या परमे का कोई पद क्यों लिया गया है। जबकि संश्लेषण विधि में केवल यह प्रदर्शित किया जाता है की प्रमेय रचना का प्रत्येक पद सही है यह बात स्पष्ट नहीं होती है
विश्लेषण का अर्थ किसी समस्या के उसके विभिन्न भागों में विभाजित करना है
जबकि संश्लेषण का अर्थ समस्या के विभिन्न छोटे-छोटे भागों को एकत्रित करके निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ना है।
विश्लेषण विधि द्वारा खोज करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है जबकि संश्लेषण विधि में खोजे गए तथ्यों को संक्षेप में लिखा जाता है।
विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर चलते हैं।
जबकि संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर चलते हैं तथा समस्या में दी गई बातों को आधार मानकर निष्कर्ष प्राप्त करते हैं।
विश्लेषण विधि में विद्यार्थी को अपना मानसिक शक्तियों का उपयोग करने का पूर्ण अवसर मिलता है। जबकि संश्लेषण विधि में विद्यार्थियों की मानसिक शक्ति के उपयोग का अवसर नहीं मिलता है तथा विद्यार्थियों में रखने की प्रवृत्ति या आदत बढ़ती है।
विश्लेषण विधि में शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही सक्रिय रहते हैं। जबकि संश्लेषण विधि में विद्यार्थी निष्क्रिय तथा शिक्षक का चिंतन क्रियाशील रहता है।
विश्लेषण विधि एक दीर्घ विधि है। जबकि संश्लेषण विधि एक सूक्ष्म विधि है।
विश्लेषण विधि में समय तथा परिश्रम अधिक लगता है। जबकि संश्लेषण विधि में समय तथा परिश्रम कम लगता है।
प्रोग्राम्ड लर्निंग का इतिहास
क्रमादेशित शिक्षण पहली बार 1950 के दशक में उभरा और बीएफ स्किनर द्वारा इसका समर्थन किया गया। वह एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने तर्क दिया कि विषय वस्तु को छोटी इकाइयों में तोड़कर सीखने को एक मशीन की तरह प्रोग्राम किया जा सकता है। वह संचालक कंडीशनिंग के सिद्धांतों का उपयोग करता है। सीखने के लिए कार्यक्रम "फ़्रेम" या "कार्ड" दृष्टिकोण का उपयोग करके विकसित किए गए थे, जहां प्रत्येक फ़्रेम एक प्रश्न या अभ्यास के साथ नई जानकारी का एक चरण प्रस्तुत करता था जिसे शिक्षार्थी को आगे बढ़ने से पहले पूरा करना होता था।
प्रोग्राम्ड लर्निंग के सिद्धांत
- स्व-गति - शिक्षार्थी बिना दबाव के अपनी गति से आगे बढ़ते हैं।
- छोटे कदम - नई जानकारी छोटे वृद्धिशील चरणों में प्रस्तुत की जाती है।
- संकीर्ण शाखा-शिक्षार्थी प्रत्येक चरण में 2 या 3 विकल्पों में से चयन करते हैं।
- सक्रिय प्रतिक्रिया - शिक्षार्थी प्रश्नों या अभ्यासों के माध्यम से प्रत्येक चरण में सक्रिय रूप से जुड़ते हैं।
- तत्काल प्रतिक्रिया - प्रत्येक प्रतिक्रिया के तुरंत बाद प्रतिक्रिया प्रदान की जाती है।
- पुनरावृत्ति और पूर्वाभ्यास- सुदृढीकरण के लिए प्रत्येक नए चरण के साथ अवधारणाओं को दोहराया जाता है।
- सफलता-उन्मुख - छोटी-छोटी सफलताएँ शिक्षार्थियों को कार्यक्रम पूरा करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं।
- छात्र नियंत्रण - शिक्षार्थी कार्यक्रम के माध्यम से गति और प्रगति को नियंत्रित करते हैं।
- आंतरिक प्रेरणा पर निर्भरता - प्रेरणा शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं और रुचियों से आती है।
- आकस्मिक प्रबंधन- शिक्षार्थियों की प्रतिक्रियाओं को आकार देने के लिए पुरस्कार और दंड का उपयोग।
- उत्तेजना नियंत्रण और संकेत - शिक्षार्थियों में सही प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करने के लिए संकेत प्रदान करें।
- ग़लत उत्तरों को ख़त्म करना - शिक्षार्थियों के ग़लत उत्तरों को बढ़ावा न दें।
प्रोग्राम्ड के type:-
रैखिक प्रोग्रामिंग: जानकारी क्रमिक रूप से प्रस्तुत की जाती है, जिसमें शिक्षार्थी कार्यक्रम के माध्यम से रैखिक रूप से आगे बढ़ता है।
ब्रांचिंग प्रोग्रामिंग: शिक्षार्थियों को विकल्प दिए जाते हैं और उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर कार्यक्रम के भीतर विभिन्न मार्गों पर निर्देशित किया जाता है।
आंतरिक प्रोग्रामिंग: शिक्षार्थी सामग्री सीखने के लिए अपनी आंतरिक प्रेरणा के आधार पर कार्यक्रम के माध्यम से आगे बढ़ते हैं।
बाहरी प्रोग्रामिंग: शिक्षार्थियों को बाहरी पुरस्कार और दंड के माध्यम से प्रेरित किया जाता है।
सतत सुदृढीकरण प्रोग्रामिंग: शिक्षार्थियों को प्रत्येक प्रतिक्रिया के बाद प्रतिक्रिया प्राप्त होती है।
आंशिक सुदृढीकरण प्रोग्रामिंग: शिक्षार्थियों को रुक-रुक कर प्रतिक्रिया मिलती है, हर प्रतिक्रिया के बाद नहीं।
परिशुद्ध शिक्षण: विशिष्ट, मापने योग्य व्यवहार संबंधी उद्देश्यों को परिभाषित किया जाता है और शिक्षार्थी एक समय में एक चरण में सामग्री में महारत हासिल करते हैं।
कंप्यूटर-आधारित प्रोग्रामिंग: इंटरैक्टिव अभ्यास और त्वरित प्रतिक्रिया के साथ प्रोग्राम कंप्यूटर पर सॉफ़्टवेयर के माध्यम से वितरित किए जाते हैं।
मल्टीमीडिया प्रोग्रामिंग: प्रोग्राम की गई सामग्रियों के भीतर टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और एनिमेशन जैसे मीडिया के संयोजन का उपयोग।
अनुकूलित प्रोग्रामिंग: व्यक्तिगत शिक्षार्थियों की विशिष्ट आवश्यकताओं, रुचियों और क्षमताओं के अनुरूप कार्यक्रम।
सीखने में निपुणता: पूर्ण समझ सुनिश्चित करने के लिए शिक्षार्थियों को अगली इकाई पर आगे बढ़ने से पहले एक इकाई में निपुणता प्रदर्शित करनी चाहिए।
अनुसंधान की अवलोकन विधि पर लेख यहां देखें !
एडगर डेल त्रि-शंकु
Unite -4
शिक्षण सहायक सामग्री
ऐसे विशेष उपकरण जो सीखने को रोमांचक और समझने योग्य बनाते हैं जैसे मॉडल चित्र दृश्य सुनने वाली सामग्री
शिक्षण सहायक सामग्री के 6 प्रकार
- दृश्य सामग्री
- ऑडियो सामग्री
- स्पर्श सहायक सामग्री
- इंटरएक्टिव सामग्री
- वास्तविक जीवन में सहायता
- शिक्षक निर्मित सामग्री
शिक्षण सहायक सामग्री का महत्व
सीखने को मनोरंजन पूर्वक बनाना जटिल अवधारणा को समझना सिमरन शक्ति को बढ़ाना रचनात्मक और जिज्ञासा को बढ़ाना मन और शरीर को व्यस्त रखना
पाठ योजना और इकाई योजना
इकाई योजना क्या है?
एक इकाई में कई पाठ होते हैं और इसमें अधिक समय लगता है; उदाहरण के लिए, एक सेमेस्टर . इस प्रकार किसी पाठ की योजना बनाने की तुलना में किसी इकाई की योजना बनाना एक लंबी प्रक्रिया है। यह आमतौर पर अनुभागीय प्रमुख या विभाग प्रमुख द्वारा किया जाता है। लेकिन इसमें शिक्षकों के साथ चर्चा शामिल है।
Tq
जवाब देंहटाएं