आगमन और निगमन विधि (Aagman Aur Nigaman Vidhi)- अर्थ,परिभाषा,विशेषता,सोपान उदाहरण और दोष
आगमन विधि
आगमन विधि में सर्वप्रथम विषय वस्तु से संबंधित उदाहरण पेश किए जाते हैं और उदाहरण के माध्यम से नियम स्थापित किए जाते हैं। आगमन विधि विद्यार्थी केंद्रित विधि है। यह विधि ज्ञात से एक ज्ञात की ओर चलती है। मूर्त से अमूर्त की,स्थूल से सूक्ष्म की ओर आगमन विधि व्याकरण शिक्षक के लिए सर्वोत्तम विधि है।
आगमन विधि की परिभाषा
किसी अध्यापक द्वारा उदाहरण के माध्यम से विषय वस्तु को स्पष्ट करते हुए किसी नियम या सूत्र तक पहुंचा जाता है। इसे आगमन भी दिखाते हैं। आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर चलते हैं। विशिष्ट से सामान्य की ओर चलते है।
आगमन विधि की विशेषताएं
- यह एक वैज्ञानिक विधि है क्योंकि इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान प्रत्यक्ष तथ्यों पर आधारित है।
- इस विधि द्वारा विद्यार्थी को निम्न सूत्र का निर्धारण एवं सामान्य करण की प्रक्रिया का ज्ञान हो जाता है।
- इस विधि में विद्यार्थी स्वयं उदाहरण निरीक्षण और परीक्षण द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं। इसलिए इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई होता है
- आगमन विधि द्वारा विद्यार्थियों की आलोचना में आत्मक निरीक्षण एवं तर्क शक्तियों का विकास होता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।
- इस विधि द्वारा विद्यार्थियों को स्वयं कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। जिससे उनमें आत्मविश्वास एवं आत्म निरीक्षण में वृद्धि होती है।
- इस विधि की सहायता से गणित के विभिन्न नियमों सिद्धांतों एवं संबंधों तथा नवीन सूत्रों आदि का प्रतिपादन करने में सहायता मिलती है यह छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी एवं उपयुक्त विधि है।
- इसके द्वारा विद्यार्थियों में गणित के प्रति उत्सुकता एवं रुचि बनी रहती है। इस विधि में विद्यार्थी उदाहरणों की सहायता से स्वयं ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा नवीन ज्ञान की प्राप्ति उत्सुक बने रहते हैं।
- नवीन ज्ञान प्राप्त करने की उपयुक्त विधि है।
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आगमन विधि के सोपान:-
इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है
1) विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण
2) निरीक्षण करना।
3) सामाजिकरण करना।
4)परीक्षण एवं सत्यापन करना।
1)विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण:-
इस सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के समक्ष एक ही प्रकार के कई
उदाहरणों को प्रस्तुत किया जाता है। तथा विद्यार्थियों की सहायता से
उन उदाहरणों को प्राप्त कर लिया जाता है।
2) निरीक्षण या ऑब्जर्वशन:-
प्रस्तुत उदाहरणों का हल ज्ञात करने के पश्चात विद्यार्थी उनका निरीक्षण करते हैं तथा शिक्षक के सहयोग से इसी परिणाम या निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।
3) नियमीकरण् सामाजिकरण:-
प्रस्तुत किए गए उदाहरणों का निरीक्षण करने के पश्चात
शिक्षक तथा विद्यार्थी तक पूर्ण ढंग से विचार-विमर्श करके
किसी सामान्य पूर्ण ढंग से नियम को निर्धारित करते हैं।
4) परीक्षण एवं सत्यापन:-
किसी सामान्य सूत्र सिद्धांत या नियम का निर्धारण करने के
पश्चात विद्यार्थी अन्य उदाहरणों अथवा समस्यात्मक प्रश्नों की
सहायता से निर्धारित नियमों का परीक्षण एवं सत्यापन करते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त सोपान ओं का अनुसरण करते हुए तथा
उनकी विभिन् माननीय शक्तियों का विकास करते हैं।
आगमन विधि का उदाहरण
एक साधारण ब्याज की समस्याओं को हल करके
सूत्र की स्थापना करना।
प्रथम सोपान:- कक्षा में शिक्षक विद्यार्थियों के समक्ष साधारण ब्याज से संबंधित कई उदाहरण प्रस्तुत करेगा तथा उसका हल
एक आंकिक नियम द्वारा ज्ञात करवाएगा जिसकी सहायता से
साधारण ब्याज करने के सूत्र का निर्धारण किया जा सकता है जैसे:-
प्रश्न 1) ₹700 का 8% ब्याज की दर से 3 वर्ष का ब्याज ज्ञात कीजिए।
उत्तर:- 700 ×8×3÷100
=24×7
=168
आगमन विधि के दोष
- इस विधि की गति अत्यंत धीमी है जिससे इसके द्वारा ज्ञान प्राप्ति में समय और परिश्रम अधिक लगता है
- इस विधि का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त बुद्धि सोच समझ की आवश्यकता होती है
- अतः सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए इसके द्वारा ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है।
- यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है क्योंकि उच्च कक्षाओं में पाठ्यक्रम इतना विस्तृत होता है कि इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम को पूर्ण करना संभव नहीं है।
- अनुभवी व योग्य अध्यापक ही इस विधि का प्रयोग सफलता पूर्व कर सकते हैं।
- सामान्य करण के लिए प्रत्यक्ष उदाहरणों का शिक्षक शिक्षार्थियों के लिए आसान बना देता है।
- इस विधि द्वारा पर्याप्त परिणाम पूर्णतया सत्य नहीं होते उनकी सत्यता इन बातों पर निर्भर करती है कि वह परिणाम कितने उदाहरणों पर आधारित है।
- क्योंकि कोई भी परिणाम जितने अधिक विशिष्ट उदाहरणों पर होता है उनकी विशेषता व विश्वसनीयता उतनी ही अधिक होती है।
निगमन विधि
निगमन विधि आगमन विधि के विपरीत है निगमन विधि का प्रयोग मुख्यतः बीजगणित रेखा गणित अर्थात त्रिकोणमिति में किया जाता है क्योंकि गणित के इन उप विषयों के विभिन्न संबंधों नयमों और सूत्रों में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
निगमन विधि का अर्थ
निगमन विधि में सूक्ष्म से स्थूल की ओर सामान्य से विशिष्ट की ओर तथा प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर या नियम से उदाहरण की ओर अग्रसर होते हैं। इस विधि में विद्यार्थियों के सम्मुख सूत्रों नियमों निष्कर्षण तथा संबंधों आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत किया जाता है। बताए गए नियमों एवं सूत्रों को सिद्धांतों को विद्यार्थी याद कर लेता है। सामान्यतः शिक्षक विद्यार्थियों को निम्न प्रकार के सूत्र या निष्कर्ष बताते हैं जैसे पाइथागोरस पर में साधारण ब्याज के सूत्र चक्रवर्ती ब्याज के सूत्र सर्वसमिकाएं पृष्ठीय व समतलीय आकृतियों का क्षेत्रफल और आयतन आदि।
निगमन विधि के सोपान
निगमन विधि में निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है:-
1) सूत्र या नियम की परिभाषा देना:-
यह निगमन विधि का प्रथम चरण है इस विधि में अध्यापक सर्वप्रथम विद्यार्थी को पहले से ज्ञात सर्वमान्य नियम या सिद्धांत बता देता है या श्यामपट्ट पर लिख देता है।
2) नियम से संबंधित प्रयोग या उदाहरण देना:-
नियम को बताने के बाद नियम के सूत्र या सत्यापन हेतु प्रयोग या कार्य किए जाते हैं तथा उसके विभिन्न उदाहरण दिए जाते हैं।
3) निष्कर्ष निकालना:
प्रयोगों में उदाहरणों के द्वारा विद्यार्थी निष्कर्ष निकालते हैं।
4) सत्यापन कर पुन: नियम स्थापना
उदाहरण 1) एक आयत की लंबाई 8 मीटर तथा चौड़ाई 6 मीटर है तो आयत का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
उत्तर:- आयत का क्षेत्रफल =लंबाई ×चौड़ा
=8×6
=48
निगमन विधि के गुण
- इस विधि के प्रयोग से गणित का कार्य अत्यंत सरल एवं सुविधाजनक हो जाता है।
- निगमन विधि द्वारा विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति विकसित होती है क्योंकि इस विधि का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों को अनेक सूत्र याद करने पड़ते हैं
- इस विधि द्वारा ज्ञान अर्जन की गति तीव्र होती है क्योंकि विद्यार्थी समस्या हल करते समय सीधे सूत्र का प्रयोग करते हैं।
- जब समय का अभाव हो उन परिस्थितियों में इस विधि का प्रयोग करना चाहिए। रेखा गणित व कर्मियों अंक गणित में पहाड़े आदि को पढ़ने के लिए इसी विधि का प्रयोग किया जाता है।
- इस विधि का प्रयोग करने पर शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों को कम परिश्रम करना पड़ता है।
- इस विधि द्वारा नियमों सिद्धांतों एवं सूत्रों की स्थापना तथा सत्यता की जांच आसानी से की जा सकती है
- इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थी अभ्यास कार्य शीघ्रता एवं आसानी से कर सकते हैं। यह विधि संक्षिप्त होने के साथ साथ व्यवहारिक भी है।
निगमन विधि की सीमाएं
यह विधि मनोविज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत है क्योंकि यह समृद्धि केंद्रित विधि है। यह विधि खोज करने की अपेक्षा रखने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है। इस विधि में विद्यार्थी यंत्र वक्त कार्य करते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नहीं होता कि अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं। इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट एवं अस्थाई होता है। क्योंकि उसे वह अपने स्वयं के प्रयासों से प्राप्त नहीं करते हैं। यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न सूत्रों नियमों एवं सिद्धांतों को समझना कठिन होता है। इस विधि में तर्क चिंतन एवं अन्वेषण जैसी शक्तियों का विकास करने का अवसर नहीं मिलता है। इस विधि के प्रयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती है। इस विधि द्वारा विद्यार्थियों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।
आगमन विधि तथा निगमन विधि में अंतर
आगमन विधि में विशिष्ट से सामान्य उदाहरण से नियम तथा स्थूल से सूक्ष्म की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। जबकि निगमन विधि में सामान्य से विशिष्ट नियम से उदाहरण तथा सूक्ष्म से स्थूल की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
आगमन विधि में विद्यार्थी एक अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है तथा स्वयं सक्रिय रहकर नियम या सूत्र ज्ञात करता है। जबकि निगमन विधि में नियम या सूत्र पहले ही बता दिए जाते हैं विद्यर्थी खोजे गए नियम या सूत्रों की पुष्टि मात्र ही कर पाता है।
इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में खोज प्रवृत्ति का विकास होता है जबकि निगमन विधि में विद्यार्थियों को खोज उन्नति विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।
आगमन विधि अध्यापन या टीचिंग की श्रेष्ठ विधियां जबकि निगमन अध्ययन या अधिगम की श्रेष्ठ विधि है।
आगमन विधि छोटी कक्षाओं के लिए बहुत उपयोगी है जबकि निगमन विधि उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी है।
इस विधि में विद्यार्थी स्वयं नियम एवं सूत्रो का निर्धारण करते हैं जिससे उसमें आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का विकास होता है जबकि निगमन विधि में सूत्रों को पहले ही बता दिया जाता है जिससे विद्यार्थी में आत्मविश्वास की कमी रहती है।
यह विधि नवीन ज्ञान की खोज करने में सहायक है जबकि निगमन विधि मैं विद्यार्थी दूसरों द्वारा दिए ज्ञान का ही प्रयोग करते हैं। आगमन विधि एक वैज्ञानिक विधि है जिससे विद्यार्थी में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है जबकि निगमन विधि मैं वैज्ञानिक दृष्टि को विकसित होने के अवसर नहीं मिलते हैं।
आगमन विधि फोजिया अनुसंधान का मार्ग है। जबकि निगमन विधि अनुकरण का मार्ग है क्योंकि विद्यार्थी बताए गए नियमों या सूत्रों का अनुकरण करता है। आगमन विधि में शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही सक्रिय रहते हैं अतः विद्यार्थी केंद्रित विधि है। जबकि निगमन विधि में शिक्षक ही अधिक सक्रिय रहता है विद्यार्थी एक मुख श्रोता होता है अतः यह अध्यापक केंद्रित विधि है। आगमन विधि मौलिक एवं रचनात्मक कार्यों पर बल देती है जबकि निगमन विधि समस्या समाधान पर अधिक बल देती है। आगमन विधि द्वारा अध्ययन की प्रक्रिया रुचिकर हो जाती है। जबकि निगमन विधि में अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया नीरस हो जाती है। आगमन विधि में प्रत्येक पद या सोपान का महत्व होता है तथा विद्यार्थी उनको लिखना सीख जाते हैं। जबकि निगमन विधि में विद्यार्थी बहुत से पदों को लिखना नहीं सीख पाते हैं। आगमन विधि की गति धीमी होती है जिससे परिश्रम व समय अधिक लगता है जबकि निगमन विधि की गति तीव्र होती है जिससे परिश्रम वह समय कम लगता है। आगमन विधि एक वैज्ञानिक विधि है जो कि अवबोध तथा स्मृति केंद्रित है जबकि निगमन विधि अपेक्षाकृत वैज्ञानिक विधि है।
आगमन और निगमन विधि के जनक-
Ques – आगमन और निगमन विधि के जनक कौन हैं ? Ans – आगमन और निगमन – दोनों विधि के जनक अरस्तु हैं
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