सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
Paper-7
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सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का परिचय एवं इतिहास
1 अप्रैल 2010 से स्टार्ट कक्षा 9 से सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रक्रिया सीबीएसई के द्वारा 2009-10 में स्टार्ट की गई ।
राजस्थान में 1 अप्रैल 2010 से अलवर व जयपुर से अलवर के 10 और जयपुर के बीच विद्यालयों में शुरू किया गया।
सीसीई का प्रावधान शिक्षा के अधिनियम 2009 की धारा 29 मैं किया गया है इसका उद्देश्य बच्चों में परीक्षा के प्रति भय दूर करना वह शिक्षा में गुणवत्ता लाना है। सर्वांगीण विकास करना है बालकों में ठहराव लाना है और नामांकन बढ़ाना है।
सतत
निरंतर मूल्यांकन करना की योजना द्वारा मूल्यांकन करना इकाई योजना द्वारा पृष्ठ पोषण या फीडबैक द्वारा मूल्यांकन करना यह सभी सतत मूल्यांकन में आते हैं जो कि नियमित रूप से साप्ताहिक,दैनिक और मासिक आंकलन है।
व्यापक मूल्यांकन
व्यापक मूल्यांकन दो तरीके से होता है शैक्षिक और दूसरा सह शैक्षिक
शैक्षिक मूल्यांकन में कक्षा शिक्षण विषय वस्तु से संबंधित होता है।
जबकि सह शैक्षणिक मूल्यांकन अनुशासन खेलकूद सांस्कृतिक ए प्रार्थना व्यवहार से इनका मूल्यांकन किया जाता है।
शैक्षिक और शह शैक्षिक के दोनों को मिलाकर व्यापक मूल्यांकन कहलाता है।
मूल्यांकन के प्रकार
मूल्यांकन के तीन प्रकार होते हैं
1 आधार रेखा मूल्यांकन ।
2 रचनात्मक मूल्यांकन
a)निदानात्मक और b)उपचारात्मक
3 योगात्मक मूल्यांकन।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य या आवश्यकता या महत्व
बच्चों में ज्ञानात्मक भावनात्मक और कौशल आत्मक अभिरुचि आत्मक विकास करना।
मूल्यांकन को अध्यापन अधिगम का अविभाज्य हिस्सा बनाना।
उपचारात्मक शिक्षण के बाद उपलब्धि व अधिगम क्षमता को बढ़ाना।
अध्यापन और अधिगम प्रक्रिया को छात्र केंद्रित बनाना।
विद्यार्थी की प्रकृति को जानना।
विवादित परिवर्तन जाना ना।
उद्देश्यों की प्राप्ति की जानकारी करना।
छात्रों में रुचि योग्यता का अध्ययन करना।
भयमुक्त परीक्षण करना।
अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना।
रुचि योग्यता का अधिगम करना।
बच्चों को यथोचित निर्देश देना।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं
स्कूल आधारित मूल्यांकन जिसमें सभी पक्षों को शामिल किया जाता है।
निरंतर मूल्यांकन करना।
शिक्षा के प्रारंभ से लेकर औपचारिक व अनौपचारिक आकलन करना।
शैक्षिक व सह शैक्षिक घटकों को शामिल करना।
अभिवृत्ति या एटीट्यूड
थर्सटन के अनुसार परिभाषा
किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव ही अभिवृत्ति है।
फ्रीमैन के अनुसार परिभाषा
किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति स्वाभाविक प्रक्रिया है।
अभिवृत्ति के प्रकार
1 सकारात्मक अभिवृत्ति।
2 नकारात्मक अभिवृत्ति।
3 सुनने अभिवृत्ति।
4 सामान्य अभिवृत्ति।
5 विशिष्ट अभिवृत्ति।
सकारात्मक अभिवृत्ति
विश्वास, प्रेम ,खुशी ,आनंद में रहना ,कर्तव्य दायित्व दोनों का ज्ञान होना ,सफलता वह सफलता दोनों का मूल्यांकन करना, निरंतरता की भावना रखना आदि सकारात्मक अभिवृत्ति है
नकारात्मक अभिवृत्ति
नकारात्मक अभिवृत्ति मे दृष्टिकोण अविश्वास नफरत भय की भावना कार्य से दूर भागना आदि का भाव है।
अभिवृत्ति की विशेषताएं
अनुभव के आधार पर अर्जित होती है।
यह परिवर्तनशील है।
यह संवेग से संबंधित होती है।
इसके एबीसी 3 घटक होते हैं।
पहला घटक ज्ञानात्मक दूसरा घटक भावनात्मक तीसरा घटक क्रियात्मक होता है।
वातावरण का प्रभाव ज्यादा होता है।
इसमें शारीरिक मानसिक सामाजिक विद्यालय मित्र आदि का प्रभाव रहता है।
विचार विश्वास मूल्यों से संबंध रहता है। पूर्वाग्रह रूढ़िवादी धारणा अभिवृत्ति का नकारात्मक रूप है।
अभिवृत्ति के पक्ष
कार्य शक्ति।
परम सीमा।
सरल या जटिल।
केंद्रीयता।
अभिवृत्ति मापन
रुचि या Interest
यह लैटिन भाषा के interesse से बना है जिसका अर्थ होता है महत्वपूर्ण लगाओ या अंतर होना
जेम्स ड्ररेवर के अनुसार परिभाषा
रुचि हमारे अनुभव का क्रियात्मक रूप है।
क्रो एंड क्रो के अनुसार परिभाषा
रुचि एक प्रेरक शक्ति है जो किसी कार्य को करने की प्रेरणा देती है।
कनिंघम के अनुसार परिभाषा
किसी भी कार्य को जारी रखने वह ललिनता के साथ कार्य करना रुचि है।
रुचि के पक्ष
ज्ञानात्मक भावनात्मक और क्रियात्मक
रुचि के प्रकार
रुचि के दो प्रकार होते हैं
जन्मजात रुचि और दूसरी अर्जित रुचि
सुपर ने 1962 में चार प्रकार की रूचि बताई और क्राइस्ट ने इनका समर्थन किया। जो निम्नलिखित है
अभिव्यक्ति रुचि:- शब्द।
प्रकृत रुचि:- व्यवहार।
प्रपत्र रुचि:- लिखित।
परीक्षण रुचि:- प्रश्नावली
बुद्धिमता
1910 में अंग्रेज वैज्ञानिकों की सभा हुई 1921 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक की सभा हुई 1923 में विश्व मनोवैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय परिषद हुई इस परिषद में यह निश्चित नहीं कर सके की बुद्धि में समृद्ध कल्पना भाषा योग्यता
संवेदना सम्मिलित है या नहीं।
वुडवर्ड के अनुसार बुद्धिता
बुद्धि कार्य करने की एक विधि।
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