ज्ञान का अर्थ

         Paper- 6A


(  ज्ञान     एवं    पाठ्यचर्या  ) 



ज्ञान का अर्थ
ज्ञान का अर्थ


About

ज्ञान          की          उत्पत्ति ,         ज्ञान   

का         अर्थ ,         अवधारणा       या 

कंसेप्ट       और      प्रकृति।


   
districts               between              data 

knowledge           information        and 

skill        teaching      and            training

 knowledge      and        information 

reason      and           belief



(डेटा      ज्ञान     जानकारी       और       कौशल 

शिक्षण      और      प्रशिक्षण      ज्ञान         और 

सूचना            कारण         और           विश्वास 

के        बीच       भेद) 



जान        की        उत्पत्ति           की     

प्रक्रिया       साझा         करना    और 

अभ्यास       करना। 


समाज        विज्ञान       की         विभिन्न  

संरचना        और          उनके       संबंध

और रिश्ता

Unit- 1

ज्ञान

ज्ञ       धातु     से      बना   शब्द      है    

 जिसका          अर्थ        है        जानना।

जो     सूचनाएं      व्यक्ति    पर       प्रभाव 


डालती    हैं    वह   स्थाई     ज्ञान       में 

सम्मिलित          होती         हैं।        ज्ञान 

मीमांसा    में       ज्ञान       से         संबंधित 

प्रश्नों      के     उत्तर       प्राप्त      होते     हैं।



प्राचीन        काल       में       उच्च        कोटि 

 के         ज्ञान         के          विकास        के

 दर्शन         और         उच्च         कोटि       के   

  विद्या        अनुरागी         को        दार्शनिक        ने   
 
 कहा     जाता      था।


ज्ञान   की   प्रकृति


ज्ञान     सत्य      तक     पहुंचने       का   


साधन    है।


ज्ञान       को       जितना    प्राप्त    करते     हैं   

उतना     अधिक    प्राप्त    करने    की    इच्छा   


होती      है।       जिज्ञासा      के       अनुसार

ज्ञान     को    जानने     के    लिए      अनुभव 

करने     की      आवश्यकता      होती       है।

ज्ञान प्रेम तथा मानव की स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित है।

 अर्थात ज्ञान व्यापक अर्थ के रूप में है

प्राप्त ज्ञान जीवन पर्यंत मनुष्य के जीवन को रोशनी प्रदान करता है।

तथ्य और मूल्य, ज्ञान का आधार है।

ज्ञान जीवन पर्यंत प्राप्त किया जा सकता है।

ज्ञान अनुभव से प्राप्त होता है।

ज्ञान का स्रोत सूचनाएं हैं।

ज्ञान शक्ति है।

ज्ञान दूसरों को प्रदान करने के लिए विद्यमान रहता हैं।


 

ज्ञान का संप्रत्यय या परिभाषाएं 


रसेल     के      अनुसार


ज्ञान      वह    है     जो      मनुष्य      के  

मन     को       प्रकाशित     करता      है।


विलियम    जेम्स     के    अनुसार


ज्ञान      व्यवहारिक      प्राप्ति        और 


सफलता     का     दूसरा       नाम      है।


प्रो जोड के अनुसार


जान      हमारी      उपस्थिति    जानकारी


 और        अनुभव      के      भंडार     में 


वृद्धि     का     नाम      है।





सुकरात     के    अनुसार


ज्ञान      सर्वोच्च      सद्गुण     है।




वस्तु आदि दर्शन के अनुसार


ज्ञान वस्तु का ज्ञान है।



प्रत्ययवादी


ज्ञान     आदर्श     का     ज्ञान     है।

होबस     के     अनुसार

ज्ञान     शक्ति     है।



ज्ञान के प्रकार


1)आगमनात्मक ज्ञान

2)प्रयोगमुल्क ज्ञान

3) परागअनुभव ज्ञान


भारतीय दर्शन के अनुसार ज्ञान दो प्रकार का होता है 

  1.  परा विद्या
  2. अपरा विद्या


परा विद्या

इस प्रकार का ज्ञान जो हमें अपनी इंद्रियों से प्राप्त हो तथा तर्क के द्वारा प्राप्त हो पर विद्या कहलाता है।अपरा विद्या

अपरा विद्या

ज्ञान प्राप्त करने का अंतिम उद्देश्य परमात्मा को जानना है अर्थात प्रकृति में आध्यात्मिक जानकारी प्राप्त होना ही  अपरा विद्या हैं।, अर्थात अपरा विद्या आध्यात्मिक  ज्ञान को कहते हैं।


ज्ञान के स्रोत


 

मनुष्य सदैव स्त्रोत के माध्यम से ही कुछ न कुछ सीखता है। ज्ञान की निम्न स्रोत हैं:-


1  पुस्तक 

2 प्रकृति

3 इंद्रिय अनुभव

4 तर्क बुद्धि

5 संवाद

6 अभ्यास

7 जिज्ञासा

8 अंतर्ज्ञान 

9  अनुकरणीय ज्ञान

10 अंतर्दृष्टि द्वारा ज्ञान 

11  साक्ष्य



ज्ञान   के    तीन   रूप   हैं।



1) सूचना। 


2) जानना। 


3) बुद्धिमता।



सूचना या इंफॉर्मेशन



•  निम्न स्तर पर ज्ञान।


•  वर्णन और व्याख्यान के माध्यम से।


•  वस्तु स्थान व्यक्ति घटनाओं   समय


 पर्यावरण     आर्थिक       सांख्यिकी 


एवं व्यापारिक सूचनाओं को एकत्रित करना। 



•  शिक्षित होना अनिवार्य नहीं है।




जानना


सूचना से उच्च स्तर पर ज्ञान।


प्रतिमान के माध्यम से प्राप्त ।


अतुल व सूक्ष्म तत्व की जानकारी 


तथ्यों के आधार पर आवश्यक है 


यह प्रथम श्रेणी का ज्ञान है।



बुद्धिमता या इंटेलिजेंस



सबसे उच्च स्तर पर ज्ञान।



वास्तविकता के माध्यम से प्राप्त।



यह वास्तविक अनुभवों से संबंधित है।



बुद्धिमता का विकास बौद्धिक विकास व अनुभव से होता है।



यह ज्ञान का उच्च स्तर है।










ज्ञान     और    सूचना

(  knowledge   and  

    information) 




 सूचना


सूचना       शब्द        को      संचारित          संगठित 

और     संशोधित       डाटा       रूप         में    वर्णित

 किया       गया     है।     जिसे    संदर्भ  में प्रस्तुत 

किया     जाता    है।      जो        उसे      उस 

व्यक्ति         के      लिए          प्रासंगिक            और 

उपयोगी           बनाता           है।         डाटा        का 

मतलब         कच्चे          तथ्यों          और        लोगों 

स्थानों           या        किसी          अन्य           चीज 

से        संबंधित      आंकड़े      है।



ज्ञान    एक    विशेष    उद्देश्य    को    प्राप्त

 करने     की     क्षमता      है।    और   साथ-

साथ एक इकाई के आत्मविश्वास

 पूर्ण सिद्धांति किया व्यवहारिक 

समझ को दर्शाता है। सूचना

 अनुभव और अंतर्ज्ञान से ज्ञान 

  प्राप्त होता है।


ज्ञान

ज्ञान        का     अर्थ     किसी     व्यक्ति   


स्थान        घटनाओं         विचारों       मुद्दों 


चीजों         को        करने       के       तरीकों 


 या        अन्य       चीजों        की      परिचित 


 था        और          जागरूकता       से        है 


जो           सीखने        विचार      करने       या 


खोज      करने      के     माध्यम   से      इकट्ठा 

  

किया        जाता        है।      यह    अवधारणाएं 


अध्ययन        और      अनुभव      की     समझ 


के     माध्यम     से       संज्ञान     के    साथ   कुछ 


जानने      की     स्थिति     है।



ज्ञान और सूचनाएं में अंतर



ज्ञान अनुभव के माध्यम से प्राप्त प्रासंगिक 

और  उद्देश्य  संबंधी जानकारी को संदर्भित

 करता है। जबकि सूचनाएं प्राप्त किए गए 

तथ्यों को एक दिए गए संदर्भ में व्यवस्थित 

रूप से प्रस्तुत करना ही सूचना या जानकारी है।



ज्ञान     उपयोगी     सूचना     है। 

जब की सूचना परिष्कृत उत्तर है।


ज्ञान सूचना अनुभव व अंतर्ज्ञान का संयोजन है।

जब की सूचना डाटा और संदर्भ है।



ज्ञान से समझ विकसित होती है।

सूचना से सामान्य जानकारी मिलती है।




ज्ञान सीखने की आवश्यकता है। 

जब की सूचना आसान स्थानांतरणिय है।


ज्ञान सुगमता को बढ़ाता है। जबकि 

सूचना प्रतिनिधित्व में सुधार करता है।


शिक्षण और प्रशिक्षण में अंतर


शिक्षण ज्ञान प्रदान करना है। जबकि प्रशिक्षण कौशल विकसित करना है।


शिक्षण सिद्धांत इक होता है जबकि प्रशिक्षण व्यावहारिक होता है।


शिक्षक छात्रों को नए ज्ञान का प्रावधान करता है। जब की प्रशिक्षण


 शिक्षार्थियों में मौजूद ज्ञान का अनुप्रयोग  विशेष विधियों से सीखना है।


शिक्षण ज्ञान देता है। जबकि प्रशिक्षण  कौशल और क्षमताएं देता है।


शिक्षा के वभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त करना है।


 जबकि प्रशिक्षण विशेष क्षेत्र में ज्ञान की गहराई को प्राप्त करना है।


Unit- 3



राष्ट्रीय     पाठ्यचर्या   प्रारूप

 2005     

             या 

NCF   -   2005    और

 NCTE  -  2010




राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्रारूप 2005


NCERT  के द्वारा डॉ यशपाल की अध्यक्षता में 38 सदस्यों की समिति बनी  

NCERT Full form-National Council of Educational Research and Training

NCERT के तत्कालीन निर्देशक:- प्रोफेसर कृष्ण कुमार इनके नेतृत्व में 21 आधार पत्रों के द्वारा 2005 एनसीएफ तैयार किया गया। इस दस्तावेज में कुल 5 अध्याय हैं -

1) परिप्रेक्ष्य परिचय रूपरेखा पुनर्विलोकन मार्गदर्शी सिद्धांत गुणवत्ता के आयाम शिक्षा का सामाजिक संदर्भ शिक्षा के लक्ष्य:- सर्वांगीण विकास होना। सामाजिक शिक्षा के साथ अंतर्संबंध।

2) अधिगम और ज्ञान।

3) पाठ्यचर्या के क्षेत्र स्कूल की अवस्थाएं और आकलन। 

4)विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण।

5) व्यवस्थागत सुधार

भौतिक संसाधनों की पूर्ति होना:- भवन और अन्य सामग्री।

 माननीय संसाधनों की पूर्ति होना:- शिक्षण व्यवस्था को बनाने वाले।

NCF-2005 के सिद्धांत


1) विद्यालय में अर्जित ज्ञान को विद्यालय के भारी जीवन से जोड़ना। वद्यालय से बालक का सामाजिकरण होता है औपचारिक शिक्षा के माध्यम से। 
विद्यालय में मिले ज्ञान को वह व्यवहार में लाए और समाज में संप्रेषण के साथ ही बार में लाता है।

 एनसीएफ के अनुसार पाठ्यक्रम में ही वही विषय वस्तु जोड़ें जो उसके बाहरी वातावरण याद जीवन से संबंधित हो। ताकि वह अपने बाहर जीवन में प्रयोग करके।


2) पढ़ाई को रटअंत प्रणाली से दूर रखना:- रटकर जो भी बालक याद करता है तो वह उस कंसेप्ट में अपने व्यवहारिक जीवन में उपयोग नहीं कर सकता। 
रटअंत पद्धति में ज्ञान का स्थायीकरण नहीं होता है। और ज्ञान का स्थायीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। ncf-2005 ने  रटअंत पद्धति पर बहुत कम ध्यान देने को कहा है।

3) पाठ्यक्रम:- पाठ्यपुस्तक केंद्रित ना रह जाए। पाठ्यक्रम केवल पाठ्य पुस्तक पर आधारित नहीं होना चाहिए जबकि उसके बाहरी या व्यवहारिक ज्ञान से संबंध रखने वाला होना चाहिए।

पाठ्यक्रम में से  शैक्षणिक  गतिविधियां भी शामिल होनी चाहिए।




4)पाठ्यक्रम को कक्षा कक्ष गतिविधियों से जोड़ना

Ncf-2005 के अनुसार पाठ्यक्रम को कक्षा कक्ष से जोड़कर पढ़ाने की विधिया का प्रयोग किया जाना चाहिए।

5) राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करना।

6) पाठ्यक्रम में माननीय और नैतिक मूल्यों का उचित स्थान होना।

7) राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता संबंधी विषय वस्तु का समावेश होना।

8) पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक छात्र एवं अभिभावकों की रूचि का ध्यान रखना।

9) पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को स्थान देना (मानवता नैतिकता सामाजिकता आदर्शवादीता समन्वयता आदि) 

10)माननीय मूल्यों को प्रमुख स्थान देना।


NCF 2005 के प्रमुख सुझाव

बालक सक्रिय है:-
 बिना बोझ के शिक्षा देने की प्रक्रिया करना। 
स्वयं से जानना। 
जोड़-तोड़ करके सीखना। 
बालक के द्वारा गलती किया जाना।

 सीखना सक्रिय और सामाजिक गतिविधि है। 
सीखने में यांत्रिक  डर और अनुशासन। 
भाषा और संस्कृति।
 प्राथमिक स्तर। 
त्रिभाषा सूत्र। 
बहुभाषी कक्षा कक्ष। 
मातृभाषा का प्रयोग। 
भाषा के चार कौशल हैं:- NCF-2005 के अनुसार LSRW- सुनना बोलना पढ़ना लिखना।

Listening speaking reading writing. 




Ncf-2005 की समस्याएं

भाषाओं की समस्याएं ।

 शिक्षक संबंधी समस्याएं।

 धर्म संबंधी समस्याएं धन संबंधी समस्याएं।

 संसाधनों की कमी की समस्याएं। 

राजनीतिक समस्याएं।

 वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव।

Ncf-2005 के समाधान

भाषा की एक सूत्रीय व्यवस्था। 

शिक्षक में आत्मविश्वास व कर्तव्य पालन का दृष्टिकोण विकसित करना। 

मानव कल्याण में विकास की भावना का विकास। 

पर्याप्त धन। 

उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप पाठ्यचर्या का निर्माण।

 राजनीतिज्ञ एवं धार्मिक संगठनों में जागरूकता उत्पन्न करना।

 नैतिक मूल्य का वातावरण विकसित करना। 

बच्चों का बाहरी जीवन तनाव मुक्त होना। 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं में अभिभावकों को जोड़ना।

 बच्चों की अभिव्यक्ति मात्री भाषा में। 

दंड व पुरस्कार की भावना सीमित। 

छात्रों को अंतः क्रिया के अधिक अवसर देना। 

तर्क व कल्पना पर आधारित मौलिक लेखन को प्रोत्साहन।

 सांस्कृतिक कार्यक्रम में मनोरंजन से ज्यादा सौंदर्य बोध को बढ़ाना। 

शिक्षक प्रशिक्षण को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाना।

 छात्रों का सतत मूल्यांकन।






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