Educational Aspects of the Geeta

 Educational Aspects of the Geeta ( गीता के शैक्षिक पहलू) 

 गीता का परिचय(introduction of Geeta) 

Educational Aspects of the Geeta


• सामान्य धारणा  और विचार.

• गीता शिक्षा की आवश्यकता, महत्व एवं संकल्पना।

• गीता शिक्षा के विभिन्न पहलू।

• गीता के शैक्षिक उद्देश्य एवं स्थान।

• गीता में जीवन दर्शन।

• शैक्षिक तत्व - शिक्षक, विद्यार्थी, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम।

दार्शनिक पहलू

• ईश्वर, मनुष्य, प्रकृति, ब्रह्मांड।

• मानव जीवन एवं कर्तव्य।

• आत्मा, ज्ञान और विज्ञान।

• धर्म, नैतिकता और निष्काम कर्म (निस्वार्थ सेवा)

सामाजिक पहलुओं

• मनुष्य और उसकी सामाजिक प्रकृति.

• सामाजिक कर्तव्य, समझ और समन्वय।

• लोक संग्रह (सार्वजनिक संग्रह) की अवधारणा और महत्व।

• वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में गीता का महत्व।



• सामाजिक जीवन कौशल और प्रबंधन।

मनोवैज्ञानिक पहलू

• मनुष्य का स्वभाव - सात्विक, राजसी और तामसी।

• गीता में बुद्धि का स्वरूप, प्रकार और स्वरूप।

• गीता में मन की अवधारणा।

• गीता में मार्गदर्शन एवं प्रेरणा।

गीता के बहुआयामी पहलू एवं वर्तमान महत्व

• योग एवं अध्यात्मवाद।

• धर्म, धार्मिक - धर्मनिरपेक्षता, शांति और अहिंसा।

• सार्वभौमिक मूल्य और निर्णय लेने की प्रणाली (कनविक्शन)।

• गीता में लौकिक व्यवस्था एवं प्रतीकवाद, सभी धर्मों का विस्तार

सहानुभूति।

• पर्यावरण संरक्षण।

श्रीमद्भगवद्गीता का परिचय

 

‘‘शट्षतानि सविंषानि श्लोकानां प्राह केषव:।

अर्जुन: सप्तपंचाषं सप्तशश्ठि च संजय:।।

धृतराष्ट्र: श्लोकमेकं गीताया: मानमुच्यते।’’

गीता संस्कृत साहित्य काल में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व का अमूल्य ग्रन्थ है। यह भगवान श्री कृष्ण के मुखारबिन्द से निकली दिव्य वाणी है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इसके संकलन कर्ता महर्षि वेद ब्यास को माना जाता है। आज गीता का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। गीता में ज्ञान योग, कर्मयोग, और भक्ति योग का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना के अन्तर्गत गीता के 18 अध्यायों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है।


श्रीमद्भगवद्गीता का परिचय 

भगवदगीता संस्कृत महाकाव्य का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में अत्यन्त समादर प्राप्त ग्रन्थ है। इसमें भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध में दिया गया दिव्य उपदेश है यह गीता वेदान्त दर्शन का सार है। यह ग्रन्थ महाभारत की एक घटना के रूप में प्राप्त होती है। महाभारत में वर्तमान कलियुग तक की घटनाओं का विवरण मिलता है। इसी युग के प्रारम्भ में आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को यह गीता सुनाई थी।

श्रीमद्भगवद्गीता का रचनाकाल

गीता के रचनाकाल के सम्बन्ध में डा0 रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने चर्तुव्यूह को आधार मानकर सिद्ध किया है कि भगवदगीता की रचना सात्तवत या भागवत सम्प्रदाय की सुव्यस्थित होने के पूर्व हुई है उनके मत में इसका 

काल चौथी ई0पू0 का आरम्भ है तथा यह भक्ति सम्प्रदाय या ऐकान्तिक धर्म की प्राचीनतम व्याख्या है। यद्यपि गीता के काल निर्णय के बारे में भिन्न-भिन्न प्रकार की गवेशणाए भी हैं और आज भी हो रही है।


इसलिये गीता को महाभारत के भीष्म पर्व पर आधारित मानना उचित है महाभारत के भीष्म पर्व के 25 से 42 अध्याय के अन्तर्गत भगवदगीता आती है फिर शान्तिपर्व और अश्वमेधपर्व में भी गीता का कुछ प्रसंग उल्लिखित मिलता है।


भगवदगीता भागवत धर्म पर आधारित द्विव्य ग्रन्थ है इसकी रचनाकाल और सन्देश के विषय में विद्वानों में मतभेद है। पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि गीता में परस्पर विरोध विचारों का सामन्जस्य है। जो यह सिद्ध करता है कि एक व्यक्ति द्वारा रचित होना सम्भव नहीं है। बल्कि विभिन्न व्यक्तियों ने विभिन्न समयों में लिखा होगा। परन्तु भारतीय विचारक एवं चिन्तक मानतें है कि भागवत धर्म का अभ्युदयकाल ई0सन् के 1400 वर्ष पहले रहा होगा और गीता कुछ शताब्दियों के बाद प्रकाश में आयी होगी मूल भागवत धर्म भी निष्काम कर्म प्रधान होते हुये भी आगे चलकर भक्ति प्रधान स्वरूप धारण कर विशिष्टा द्वैत का समावेश कर लिया तथा प्रचलित हुआ।


गीता महाभारत का ही अंश है और यदि महाभारत काल निर्धारण है तो गीता का भी उसी आधार पर सहज ही लगाया जा सकता है महाभारत लक्ष श्लोकात्मक ग्रन्थ है और शक् के लगभग 500 पूर्व अस्तित्व में था- गार्वे के अनुसार ‘‘मूल गीता की रचना 200 ई0पू0 के लगभग हुई होगी जब विष्णु और कृष्ण का तादात्म्य स्थापित किया जा चुका था। 

श्रीमद्भगवद्गीता की श्लोक संख्या

गीता की श्लोक संख्या को लेकर विद्वानों में प्राचीन काल से लेकर आज तक मतभेद विद्यमान है। आचार्य शंकर ने गीता पर अपना श्रीमदभगवद गीता शांकरभाश्य लिखा है और साथ ही श्लोकों की संख्या 700 मानकर गीता भाश्य की रचना की थी। परवर्ती भाष्यकार, टीकाकार और व्याख्याकारों ने शंकर के ही मत को स्वीकार किया है। महाभारत के भीष्मपर्व के 43 अध्याय के चौथे और पांचवें श्लोकों में वैषम्पायन ने भगवदगीता की प्रषंसा करते हुये कहा है-


अर्थात् गीता में श्री कृष्ण के द्वारा कथित श्लोंकों की संख्या 620 है, अर्जुन कथित 56 श्लोक है तथा संजय कथित 67 और धृतराश्ट्र कथित एक श्लोक है। इस प्रकार उपर्युक्त यदि सभी श्लोकों की संख्या परिगणित की जाय तो 745 हो जायेगी। आधुनिक विद्वानों में भी श्लोक संख्या को लेकर मतभेद उपस्थित है और आधुनिक लोग गीता के आकार को अपूर्ण मानते है। इस प्रकार कुछ लोग तो गीता की श्लोक संख्या 745 ही मानते किन्तु वर्तमान मे प्रचलित गीता की श्लोक संख्या 700 ही मानी जा रही है। 

महाभारत के भीष्मपर्व के 25 से 42 अध्याय की भगवदगीता भी 700 श्लोकों में पूर्ण है। कहीं-कहीं पर श्री भगवानुवाच, संजयउवाच, अर्जुनउवाच, धृतराश्ट्रउवाच आदि कुल 58 उक्तियों में श्लोक संख्या नहीं दी गयी हैं इसी प्रकार दुर्गा सप्तशती भी 700 श्लोंको में पूर्ण में है। उसमे मार्कण्डेयउवाच, वैश्यउवाच इत्यादि 56 उवाचात्मक वाक्यों को भी क्रमिक श्लोक संख्या के रूप में चण्डी के 700 श्लोंकों के अन्तर्गत लिया गया है।


महाभारत में वैशम्पायन की उक्ति के अनुसार गीता की श्लोक संख्या 745 होती है। और वह भी धृतराश्ट्रउवाच 9, अर्जुनउवाच-20, श्री भगवानुवाच-28 ऎसी कुल 58 उक्तियों को महाभारत के 700 श्लोंको के अन्तर्गत नहीं किया गया है, और इसी कारण गीता की श्लोक संख्या में कुछ भेद परिलछित होता है। यथार्थ में भी जो मूल महाभारत है उसमें भी 700 श्लोक ही प्राप्त होते हैं और मूल महाभारत श्लोकों के अवलम्बन से ही आचार्य शंकर ने अपने भाश्य की रचना की थी।

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