भौतिकी क्या है –
“भौतिकी” जिसे अंग्रेजी में “फिजिक्स” के नाम से जाना जाता है, मूलतः ग्रीक भाषा, के फिजिक (Physic) शब्द से बना है जिसका अर्थ “निसर्ग” अथवा “प्रकृति” होता है। यूनानियों के अनुसार भौतिकी एक प्राकृतिक दर्शनशास्त्र था जिसके अन्तर्गत प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने का प्रयत्न किया जाता था। उस काल में विज्ञान तथा गणित दोनों एक ही दर्शन के अंग माने जाते थे एवं “भौतिकी” जैसा कि आज है, उस रूप में, विज्ञान के एक अलग भाग के रूप में नहीं था। भौतिकी की प्रकृति को समझने एवं उसकी सार्वभौमिकता को परखने हेतु यह ऐतिहासिक तथ्य हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिये। बई वर्षों के अन्तराल के पश्चात भौतिकी को विज्ञान के एक भिन्न हिस्से के रूप में जाना जाने लगा। तभी से संभवतः विज्ञान के उस भाग को जिसमें प्राकृतिक प्रक्रिया में भाग लेने वाले निर्जीव द्रव्यों की प्रकृति न बदलती हो उसे भौतिकी एवं विज्ञान के उस भाग को जिसमें द्रव्यों की प्रकृति बदलती है उसे रसायन शास्त्र कहा गया है, लेकिन इस तरह का अन्तर अब सिर्फ यान्त्रिकी, ध्वनि जैसे भौनिकी के कुछ हिस्सों पर ही लागू होता है। यहाँ तक कि उष्मा-गतिकी अथवा उष्मीय भौतिकी के सिद्धान्त भी रासायनिक एवं जैविक प्रक्रियाओं पर लागू होते हैं। और तो और नाभिकीय भौतिकी में तो द्रव्यों की रासायनिक प्रकृति तक बदलती है तथा उन्हें भौतिकी के अन्तर्गत ही पढ़ा एवं पढ़ाया जाता है।
जहाँ तक भौतिकी की परिभाषा का प्रश्न है, इस सन्दर्भ में यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भौतिकी अथवा विज्ञान की कोई परिभाषा विभिन्न धारणाओं की भाँति अपरिवर्तनीय नहीं हो सकती । भौतिकी के छात्र, अध्यापक तथा भौतिकी से जुड़े अन्य लोग भौतिकी को विभिन्न तरह से परिभाषित करते देखे जा सकते हैं। उदाहरणार्थ-“भौतिकविद जो कार्य करते हैं वह भौतिकी है” से लेकर “ग्रह तथा तारों का ज्ञान,मानव तथा मानव निर्मित कम्प्यूटर एवं माइक्रो-चिप को समझने हेतु जिस विज्ञान की जरूरत होती है, वह सब भौतिकी की परिभाषा के अन्तर्गत माना जा सकता है।” पर एक सर्वमान्य परिभाषा के रूप में हम भौतिकी को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं-
(“द्रव्यों एवं ऊर्जा की आपस में अन्तःक्रिया और द्रव्यों की अन्तिम संरचना के अध्ययन को भौतिकी कहते हैं।”
भौतिकी की प्रकृति
भौतिकी संबंधी विभिन्न विचारधाराओं के आधार पर भौतिकी की प्रकृति को निम्न पक्षों के आधार पर ठीक से समझा जा सकता है। ये पक्ष हैं-
(1) मानव के बाह्य तथा आन्तरिक जगत के सभी घटकों का व्यवस्थित अध्ययन ।
(2) अध्ययन हेतु संबंधित सिद्धान्तों,प्रयोगों तथा प्रतिदर्शों का प्रतिपादन और उनका वर्णन।
(3) आज के सन्दर्भ में प्राचीन सिद्धान्तों की सापेक्षिक सार्थकता।
(4) नये विचारों के प्रति खुलापन।
(5) वैज्ञानिक सहृदयता तथा बौद्धिक बहुमुखी प्रतिभाशीलता का विकास।
(6) सामान्य मान्यताओं के प्रति संसार की मनोवृत्ति तथा इसका विकास, एवं
(7) संसार के संबंध में उत्सुकता तथा उससे जुड़े प्रश्न एवं उनके समाधान।
भौतिकी, क्योंकि मूलतः एक विज्ञान ही है अतः उपरोक्त पहलू ही आज के विज्ञान की प्रकृति के भी पहलू हैं। तथा इस तरह हम कह सकते हैं कि भौतिकी अथवा विज्ञान की प्रकृति मानव स्वभाव का ही एक अंग है।
भौतिक विज्ञान के विकास का इतिहास
भौतिक विज्ञान का इतिहास पृथ्वी पर मानव जीवन के अस्तित्व से ही शुरू होता है। शुरू में मानव जानवरों की तरह ही एक प्राणी था। शुरू में मानव ने पत्थर से पत्थर रगड़ने से पैदा चिनगारी को देखकर आग पैदा करने की प्रेरणा ली। धीरे-धीरे मानव ने पत्थरों से नुकीले हथियार बनाना सीखा एवं इन हथियारों का उपयोग उन्होंने शिकार करने हेतु किया। इस युग को पाषाण युग के नाम से जाना गया।
आज से छ: हजार वर्ष पहले मानव ने ताँबे की खोज कर धातु के बारे में ज्ञान प्राप्त किया । ताँबे में टिन धातु को मिलाकर काँसा बनाया, इससे मानव ने मिश्र धातुओं की जानकारी प्राप्त की तथा इसी युग में ताँबा व काँसे (धातुओं) से निर्मित औजारों,घरेलू सामान, पहिये आदि का निर्माण हुआ। सिन्धु घाटी की सभ्यता, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, यूनान तथा चीन की प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष इसके प्रमाण की पुष्टि करते हैं।
आज से लगभग 3500 वर्ष पहले मानव को लौह धातु के बारे में ज्ञान हुआ तभी मनुष्य ने लोहे द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्माण किया। वैज्ञानिक, कुछ प्रमाणों तथा अनुमान के आधार पर पृथ्वी पर जबसे मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ इसी समय से भौतिक विज्ञान का प्रारम्भ मान सकते हैं। सुविधानुसार भौतिक विज्ञान के विकासक्रम को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
प्राचीन युग (1500-1780 ई.)- इस युग में प्रायोगिक आधार पर विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का विकास हुआ। फ्रांसिस बेंकन (1561-1626) के प्रायोगिक आधार की विचारधारा ने आधुनिक विज्ञान को नया आयाम प्रदान किया। इसी युग में पत्थरों से पैदा चिनगारी से ऊष्मा ऊर्जा का ज्ञान हुआ। पानी को सदैव नीचे की तरफ बहता देखकर तरल पदार्थों की प्रकृति का ज्ञान हुआ। वस्तुओं के आपस में टकराने से पैदा ध्वनि का ज्ञान वस्तुओं को उठाने पर वस्तुओं के भार संबंधी ज्ञान का आभास हुआ। इस युग के मुख्य अनुसंधान- जेम्सवाट द्वारा वाष्प इंजन, न्यूटन द्वारा गुरुत्वाकर्षण तथा गति के नियम गैलीलियो द्वारा सूक्ष्मदर्शी, बायल द्वारा गैसों के नियमों की जानकारी, ऐम्पीयर द्वारा विद्युत के नियमों की जानकारी को विश्व के सामने पेश किया।
इसी समय में ही प्रकाश तरंगें,प्रत्यास्थता,चुम्बकत्व,ताप की प्रकृति, पृथ्वी का चुम्बकत्व आदि वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी हुई। मुख्य उपकरण-दूरदर्शी,सूक्ष्मदर्शी, वाष्प इन्जन, वायुपम्प, थर्मामीटर, बैरोमीटर आदि । इस युग के मुख्य वैज्ञानिक हैं-जेम्सवाट, न्यूटन, गैलीलियो, ऐम्पीयर, हुक, रॉबर्ट बॉयल केपलर, गिलबर्ट, कोपरनिकस, हार्वे आदि।
मध्यकालीन युग (1780-1900 ई.)- इस युग में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण आविष्कार हुए; जैसे-मानव के विकासवाद का सिद्धान्त, बेतार का तार, एक्स किरणें, डायुनमो, विद्युत मोटर, विद्युत चुम्बकीय तरंगें, डीजल इंजन आदि । इस युग के मुख्य भौतिकशास्त्री थे-फैराडे,डाल्टन, डेवी, केल्विन, जूल, मैक्सवेल, मार्कोनी, हर्टज,रांजन, फैरनहाइट, लुई पाश्चर आदि।
वर्तमान युग (1900 ई. के बाद)- वर्तमान काल को भौतिक विज्ञान की प्रगति का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। इस शताब्दी में भौतिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण तथा अनूठे अन्वेषण बड़ी शीघ्रता से हुए हैं । मैक्सप्लांक द्वारा 1901 में क्वान्टम सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। आइन्सटीन द्वारा 1905 में दो महत्वपूर्ण सिद्धान्तों द्रव्य ऊर्जा समीकरण (E= mc^2 ) तथा सापेक्षवाद के सिद्धान्त के प्रतिपादन ने भौतिकी के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात किया। वैज्ञानिक बोर द्वारा बोर का सिद्धान्त एवं रदरफोर्ड द्वारा परमाणु संरचना की नवीन जानकारी प्राप्त हुयी। इसी युग में इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन, प्रोट्रॉन की खोज हुई! तापायनिक बाल्ब निर्मित हुए,जिनका उपयोग रेडियो आदि में हुआ। रेडियो एक्टिवता समस्थानिक परमाणु भट्टियों परमाणु बम, अन्तरिक्ष यान, चलचित्र, टेलीविजन, रडार, परमाणु ऊर्जा आदि द्वारा चलित जहाज, टीवी, कम्प्यूटर स्वचालित यन्त्र, जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें. भू-उपग्रह अन्तरिक्ष-विजय, नाभिकीय ऊर्जा, कैलकुलेटर, वीडियो आदि इस युग की महत्वपूर्ण तथा क्रांतिकारी उपलब्धियाँ हैं, जिनमें उत्तरोत्तर तेजी से वृद्धि हो रही है। इस युग के मुख्य भारतीय वैज्ञानिक हैं-डॉ. जे.सी. बसु, डॉ. सी. शेखर, वी. रमन एवं डॉ. एच.जे. भाभा आदि। आज भी मानव इस तरह के कई अन्वेषण कार्यों में लगा हुआ है, जिनमें एक न एक दिन सफलता जरूर प्राप्त होगी। यह सभी कार्य साधारण मानव की खोज से परे हैं।
भौतिकी का क्षेत्र
परम्परागत रूप से संगठित क्लासिकी तथा आधुनिक भौतिकी की मुख्य शाखाओं का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है-
यान्त्रिकी- यान्त्रिकी वस्तुओं की गति एवं आधारभूत भौतिक सिद्धान्तों द्वारा समझे जाने वाले उनके पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन है। इस दृष्टि से भौतिकी स्वयं यान्त्रिकी है। यान्त्रिकी को तीन संवर्गों-क्लासिकी, क्वाण्टम तथा सापेक्षिक में रखा गया है। क्लासिकी यान्त्रिकी को स्थिति विज्ञान, गति विज्ञान तथा द्रवस्थिति विज्ञान के रूप में जाना जाता है। इसमें मुख्य रूप से न्यूटन के गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण, संवेग तथा ऊर्जा की व्यापक प्रयुक्ति है।
द्रवगति विज्ञान तथा ऊष्मा- इसके अंतर्गत तापीय व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसमें द्रवगति विज्ञान के तीन नियमों तथा सांख्यिकीय यान्त्रिकी का अध्ययन शामिल है।
विद्युत तथा चुम्बक- इसको विद्युत-चुम्बकत्व भी कहते हैं। इसके अध्ययन का आधार उन कणों को पारस्परिक अन्तक्रियाएँ हैं जिनमें विद्युत प्रवाहित होता है।
प्रकाशिकी- इसमें प्रकाश ऊर्जा का अध्ययन सम्मिलित है। मूल रूप में यह क्षेत्र विद्युत-चुम्बकत्व की प्रयुक्ति है।
परमाणु भौतिकी- भौतिकी की इस शाखा में परमाणु का अध्ययन किया जाता है।
ठोस अवस्था भौतिकी– पूर्व में यह परमाणु भौतिकी का ही अंग था पर अब इसको भौतिकी की स्वतन्त्र शाखा माना जाता है। इसमें ठोस वस्तुओं के विद्युतीय, चुम्बकीय, प्रकाशीय तथा प्रत्यास्थ गुणों का अध्ययन सम्मिलित है।
नाभिकीय भौतिकी- इसमें नाभिकीय संरचना तथा अस्थायी नाभिकों से विकिरण का अध्ययन किया जाता है। इसमें नाभिकीय ऊर्जा का अध्ययन सम्मिलित है।
कणीय भौतिकी- आधुनिक भौतिकी की सीमा मौलिक कणों के अध्ययन तक है। ये कण पदार्थ के आधारभूत अंग हैं। भौतिकी की इस शाखा को उच्च ऊर्जा भौतिकी भी कहा जाता है। इसमें उन सत्ताओं के पारस्परिक साम्य संबंधों का अध्ययन सम्मिलित है जो आधारभूत सत्ताओं के संयोग नहीं माने जाते।
क्वाण्टम यान्त्रिकी- भौतिकी की यह शाखा क्वाण्टम सिद्धान्त पर आधारित है, जिसके विलक्षण अभिलाक्षणिक गुण अवरोध तथा वास्तविक अनिश्चितता हैं। इसके प्रतिपादक जर्मन भौतिकी विज्ञानी मैक्स प्लैंक हैं।
सापेक्ष यान्त्रिकी- इसका आधार सापेक्षता सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त को 1905 में आइन्सटीन ने प्रतिपादित किया था।
इनके अलावा भौतिकी की दो महत्वपूर्ण शाखाओं का विकास हो रहा है। ये शाखायें परिवर्तनरोधी नियम तथा आधारभूत बल एवं क्षेत्र हैं।
