स्थलाकृति

                               स्थलाकृति 

स्थलाकृति
स्थलाकृति


स्थलाकृति विज्ञान :-  इसके अंतर्गत पृथ्वी की बाहरी परत की बनावट का अध्ययन किया जाता है।

स्थलाकृति विज्ञान


भूमि विज्ञान या पेडोलॉजी के अंतर्गत मिट्टी से संबंधित अध्ययन किया जाता है।

उच्चावच :- पृथ्वी के ऊपर खबर आकृति को उच्चावच कहते हैं इसे तीन श्रेणी में रखा जाता है। जो निम्नलिखित हैं 

प्रथम श्रेणी उच्चावच:- इसमें महाद्वीप तथा महासागर आते हैं।

द्वितीय श्रेणी के उच्चावच :- इसमें महाद्वीपों पर बनने वाली आकृतियों को रखते हैं जैसे पर्वत पहाड़ मैदान मरुस्थल इत्यादि


तृतीय श्रेणी के उच्चावच:- इसमें काट छांट या अपरदन से बनने वाली आकृतियों या स्थल आकृतियों को रखते हैं जैसे वी आकार की घाटी एस आकार की घाटी जलप्रपात लोएस इत्यादि।

अपक्षय या वेदरिंग:- चट्टानों का टूटना अपक्षय कहलाता है। बल तथा दाब के द्वारा टूटना भौतिक अपक्षय कहलाता है जबकि अमल या शहर के माध्यम से टूटना रासायनिक अपक्षय कहलाता है। चुना पत्थर पर भौतिक तथा रासायनिक दोनों अक्षय का प्रभाव पड़ता है।

अपरदन या इरोजन:- चट्टानों में गिरावट को अपरदन कहते हैं। अपरदन की क्रिया वायु नदी भूमिगत जल सागर बर्फ इत्यादि द्वारा संपन्ना होती है।

निक्षेपण:- अपरदन के फल स्वरुप निकाला गया गाद या कचरा जिस स्थान पर जमा हो जाता है उसे निक्षेपण कहते हैं निक्षेपण की क्रिया निचले डाल पर होती है।

नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृति या 

टोपोग्राफी


उद्गम:- नदियां किस स्थान से निकलती है उसे उद्गम कहते हैं।

 मुहाना:- नदिया जहां सागर में मिल जाती है उसे मुहाना कहते हैं।

नदियों की तीन अवस्थाएं होती है:-

युवावस्था:- इसमें नदियां पर्वतीय डाल पर होती हैं और केवल प्रदान करते हैं। 

नंबर दो प्रौढ़ावस्था विवरण:- इसमें नदियां मैदानी क्षेत्र में पाई जाती हैं और अपरदन के साथ-साथ निक्षेपण भी करती हैं। 

वृद्धावस्था:- इसमें नदियां अपने मुहाने तक पहुंच जाती हैं और ढाल कम होने के कारण केवल निक्षेपण करती हैं। 

प्रवणता या ग्रेडियंट:- किसी स्थल के समुंदर से ऊंचाई को प्रवणता कहते हैं। प्रवणता जितनी अधिक होगी ढाल उतना अधिक होगा नदियों को शक्ति उनकी प्रवणता से मिलती हैं।

क्षिप्रिका :- नदिया जब पर्वतीय क्षेत्र पर होती हैं तब मुलायम चट्टान को काट देती हैं। किंतु कठोर चट्टान को नहीं काट पाती हैं जिस कारण उबर खाबड़े आकृति का निर्माण करती है जिसे  क्षिप्रिका कहते है। 

वी आकार की घाटी :- नदिया जब दो पर्वतों के बीच से निकलती है तो वी आकार की घाटी का निर्माण करती है।

 गार्ज:- वी आकार की घाटी जब गहरी हो जाती है तो उसे गार्ज कहते हैं। उदाहरण सचिन तू सतलज तथा ब्रह्मपुत्र नदियों का निर्माण करने वाली प्रमुख नदियां हैं।

कैनियन या आई आकार की घाटी :- यह घर से भी गहरी होती है इसका ढाल बिल्कुल सीधा होता है सबसे गहरा कैनयन यूएसए में कोलोरेडो नदी पर स्थित ग्रांड केनियन है।

जलप्रपात या वाटरफॉल:- नदियों से पहुंचाई से नीचे की ओर गिरती है तो जलप्रपात का निर्माण करती हैं। यह पर्वतीय या पठारी क्षेत्र में ही पाए जाते है।


अवनमन कुंड:- जलप्रपात के अपमान से नदियां जब नीचे गिरती है तो एक गड्ढा या कुंड का निर्माण कर देती है जिसे आओ नमन कुंड कहते हैं। 
एस आकार की घाटी:- नदियां मैदानी क्षेत्र में मुलायम सत्तानों को काटकर तथा कठोर चट्टानों को छोड़ देती हैं। इस कारण ऐसा कार्य की घाटी बनती है इसे विसर्प भी कहते हैं।

 गोखरू झील:- आकार की घाटी जब सीधी हो जाती है तो वह गोखरू झील का निर्माण करती है इसे परी तत्व झील भी कहते हैं।

 तटबंध:- मैदानी क्षेत्र में नदियां अपने किनारों पर सिल्ट या कचरा या गांव को जमा कर देती हैं इसे तटबंध कहते हैं। 

तटबंध



नदी द्वीप:- जब नदियां अपने बीच मार्ग में ही सिल्ट को जमा कर देती है तो नदी द्वारा दीप का निर्माण होता है । विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली है जो ब्रह्मपुत्र नदी पर असम में है।

 नोट :- तटबंध तथा नदी द्वीप बहुत ही उपजाऊ होते हैं। वितरिका:- नदियां दमोह आने पर पहुंचती है तो डाल कम हो जाता है। जिससे हम नदियां कई शाखाओं में बंट जाती है। इन शाखाओं को वितरिका कहते हैं। 

डेल्टा:- दो वितरिका के बीच जगा दिया सिल्ट जमा हो जाता है तो वह त्रिभुज के समान आकृति बना लेता है जिसे डेल्टा कहते हैं। यह बहुत ही उपजाऊ होता है सबसे बड़ा डेल्टा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी का डेल्टा है जिसे सुंदरवन का डेल्टा कहते हैं 

नोट:- जब नदियों के वितरिका ओं की संख्या अधिक हो जाती है तो वह पक्षी के पैर के समान दिखने लगती है और इससे बनी डेल्टा को पक्षपात डेल्टा कहत हैं।

:- मिसिसपी नदी यूएसए पक्षपात डेल्टा बनाती है। उसका डेल्टा सबसे चौड़ा है ।
ज्वार नद या एस चुरी:- जब किसी नदी के मुहाने पर पर्वत खड़ा हो जाता है तो नदियां अपने शिल्पी या कचरे को जमा कर के किनारे में पत्रिका बनाकर नहीं निकल सकती है क्योंकि दोनों किनारों पर पर्वत होता है अतः यह सिर्फ को सागर में गिरा देती है जिसे स्टोरी कहते हैं। चुरिया ज्वारनदमुख से सागर का तक बड़ा हो जाता है गोवा का मार्मा गोवा बंदरगाह ज्वार नदी पर स्थित है। नर्मदा तथा ताप्ती पश्चिमी की ओर ज्वार नद बनाती है। जबकि दामोदर और गोदावरी पूर्व की ओर ज्वारनद बनाती है। नोट:- जब नदी के किसी एक छोड़ पर पर्वत खड़ा है तो जिस और पर्वत होता है उस और ज्वार नद बनता है और जिस और पर्वत नहीं हो उस और डेल्टा बनता है।


जवाहर नद




नोट:- गोदावरी नदी ज्वार नद एवं डेल्ट दोनों बनाती है
तथा स्थल को काट कर देती है तो उसे समप्राव्य मैदान कहते हैं। 

भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृतिया

भूमिगत जल द्वारा कलाकृति का निर्माण चून पत्थर की प्रधानता वाले क्षेत्रों में होता है
। जिस स्थान पर चूना पत्थर की अधिकता होती है उसे  कार्स्ट प्रवेश कहते हैं। यूरोप के युगोस्लाविया में तथा मध्य प्रदेश के हिमाचल पर्वत में कार्स्ट प्रवेश पाए जाते हैं। भूमिगत जल जब भूमि में प्रवेश कर जाता है तो वह अंदर एक गुफा या 15 का निर्माण करता है इन गुफाओं में कठोर चट्टाने भी पाई जाती है जो इन गुफाओं को गिरने से रोकती है गुफाओं के प्रारंभिक भाग को अंधी घाटी कहते हैं।धेलरंद्र:- यह कार्स्ट प्रदेश के ऊपरी भाग में बनती है इसके द्वारा स्तर पर छोटे-छोटे छिद्र हो जाते हैं। डओलाइन:- यह धेलरन्द्र के आकार में बड़ा होता है। तू वाला विवरण जेल यह है दो लाइन से बड़ा तथा गहरा भी होता है। पोलजे:- जब का राष्ट्र प्रवेश अत्यधिक अपरदन के कारण कटकर नीचे की ओर गिरने लगता है तो इसके हाल को पो लेजे कहते हैं। तेरा शेषा:- के कारण होता है। जिसमें चुना पत्थर के साथ-साथ लाल रंग की  डोला माइट चट्टाने भी होती हैं इनके निक्षेपण को टेरासेसा कहते हैं। स्टेलेटाइट:- कंदरा के ऊपर की ओर लटकी स्थलाकृति को स्टैलेक्टाइट कहते हैं। इसका निर्माण कम अपरदन के कारण होता है। स्टेरले माइट :- अधिक होता है तो नीचे की ओर चुना पत्थर का जमा हो जाता है जिसे स्टेले माइट कहते हैं। कंदरा स्तंभ:- जब स्टैलेक्टाइट तथा स्टेले माइट आपस में मिल जाते हैं तो उसे कंदरा स्तंभ कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण


स्थलाकृति चित्र विवरण



सागरीय जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति


सागरीय जल द्वारा तटों पर स्थलाकृति का निर्माण किया जाता है। सागरीय तरंगों की उत्पत्ति कौशलेश बल तथा पवनों के कारण होता है । समुद्री गुफा:- जब समुंदर पर पर्वत होते हैं समुद्री लहरें उस पर्वत को नीचे से काट देती है और गुफा का निर्माण कर देती है। मेहराब:- जब समुंदर में कोई पहाड़ी पाई जाती है तो उसमें भी गुफा का निर्माण होता है और जब यह गुफा आर पार ले जाती है तो उसे मेहराब कहते हैं। लैगून झील:- जब सागरीय तट पर सिल्ट के जमाव से झील का निर्माण होता है तो उसे लैगून झील कहते हैं। लैगून झील खारे पानी की होती है। लैगून झील को दयाल लिया से सागर झील भी कहते हैं। दंतुरित तट:- सागरीय तक जब कटा पिता या उबड़ खाबड़ होता है तो उसे दंतुरित तक कहते हैं यह बंदरगाह निर्माण में सहायक होते हैं। चित्र द्वारा विवरण:-
पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति चित्र 1
पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति चित्र दो
भू स्तंभ




सागरीय जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति1


पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति

पवनों द्वारा मरुस्थलीय क्षेत्र में स्थलाकृति का निर्माण होता है। घर्षण:- जब वायु किसी चट्टान से टकराती है घर्षण कहते हैं। अप घर्षण:- वायु में उपस्थित धूल कण जब किसी चट्टान से टकराते हैं तो उसे अब घर्षण कहते हैं। सनी घर्षण:- वायु में उपस्थित टूलकन जब आपस में टकरा कर टूटने लगते हैं तो उसे सनी घर्षण कहते हैं। क्षेत्र प शिला:- जब किसी बड़े चट्टान के नीचे मुलायम चट्टान पाई जाती है तो वायु मुलायम चट्टान को प्रतीत कर देती है। जिससे छात्रा के समान आकृति बनती है जिसे क्षेत्रप शीला कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण:-1

ज्युगेन:- इंसेल वर्ग को पवन ऊपर से काट देती है तो दबाव से डिब्बा के समान आकृति बनती है जिसे ज्युगेन कहते हैं।
डाई काउटर :- जब इंसेल वर्ग को हवाई चारों ओर से काट देती है तो चतुर फुल किया आकृति बन जाती है इन चतुश्लोकी आकृति को डाई काउंटर कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण:-2


भू स्तंभ:- जब किसी कठोर चट्टान को दोनों और मुलायम चट्टान पाई जाती है तो पवने मुलायम शैतान को अर्पित कर देती हैं जिससे स्तंभ की आकृति बन जाती है जिसे स्तंभ कहते हैं। थाई डेड:- जब कठोर तथा मुलायम चट्टाने समानांतर पाई जाती हैं तो भूकंप की एक कतार बन जाती है जिसे थार डेड कहते हैं। 
जालीदार सिला:- मरुस्थलीय क्षेत्र में पवने पहाड़ियों पर चित्र नुमा आकृति बना लेती हैं जिसे जालीदार शीला कहते हैं। वाता रंध्र:- मरुस्थलीय भूमि में गड्ढा का निर्माण करती है तो उसे वार्ता रंध्र कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण



वालसन झील :- मरुस्थलीय क्षेत्र में पर्वतों से गिरी हुई चीज को वॉल्सन झील कहते हैं। उदाहरण अजमेर का आना सागर बालसमंद झील जब सूख जाता है तो उसे... कहते हैं यह नमक का अच्छा स्रोत होता है। बरखान:- मरुस्थलीय क्षेत्र में अर्धचंद्राकार बालू के टीले को बरखान कहते हैं। बालुका स्तूप:- मरुस्थल क्षेत्र में बालू के चंद्राकार टीले को बालुका स्तूप कहते हैं । लोएस मैदान :- मरुस्थलीय क्षेत्र में बालू वायु द्वारा उड़ा कर ले जाती है और जिस स्थान पर इस निक्षेपित किया जाता है उसे लोएस का मैदान कहते हैं। लोएस का मैदान उपजाऊ होता है बड़ा लोएस का मैदान चीन में है। चित्र द्वारा विवरण


हिमनद द्वारा निर्मित स्थलाकृति


हिम्मत द्वारा अपरदन का कार्य नहीं होता है किंतु हिम्मत में चट्टान या लकड़ी की उपस्थिति हो तो वह अपरदन करने लगती है। यू आकार की घाटी:- बर्फीले क्षेत्र में दो पहाड़ों के बीच यू आकार को घाटी कहते हैं। लटकती घाटी:- जब किसी बड़े हिमनद से कोई छोटा हिमनद आकर जुड़ जाता है तो उसे लटकती घाटी कहत हैं। चित्र द्वारा विवरण

लटकती घाटी

 नाटक:- जब किसी छोटे हिमनद के ऊपर बड़ा हिमनद आ जाता है तो उसे नु नाटक कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण:-

सार्क:- हिम्मत क्षेत्र में बनने वाली गड्ढे को शार्क कहते हैं। एरिटी :- जब किसी चट्टान के दोनों और सारा का निर्माण हो जाता है तो उसे  एरिटी कहते हैं। 
गिरी श्रृंग:- जब  एक एरिटी श्रृंखला के रूप में होते हैं तो उसे गिरी श्रृंगार कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण 


फियोड तट:- बर्फीले क्षेत्र समुंदर के किनारे की खड़ी डाल को  फियोड तट कहते हैं। मोरेन:- फियोर्ड तट पर ऊपर के बर्फीले स्तर को मोरेन कहते हैं। चित्र द्वारा विवरण





रास मुटाने:- जब बर्फ को निक्षेपण भेड़ के बाल के समान हो जाता है तो उसे रास मोटाने कहते हैं। ड्रमलीन:- जब हिमनद के निक्षेपण उल्टा नाम के समान हो जाता है तो उसे ड्रमलीन  कहते हैं।
हिमोढ:- जब हिमानी का निक्षेपण एक चादर के समन समतल रूप में होता है तो उसे ही मोड कहते हैं
बहिर जात बल:- पृथ्वी स्तर पर उत्पन्न वह बल जो पृथ्वी के सताए को बरखा बनाने का प्रयत्न करता है बहिर जात बल कहलाता है। उदाहरण :- अपक्षय अपरदन तथा निक्षेपण इत्यादि अंतर जात बल:- यह पृथ्वी के अंदर से उत्पन्न होता है और पृथ्वी की ऊपरी सतह को बराबर करने का प्रयत्न करता है। उदाहरण:- भूकंप और ज्वालामुखी।


















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