पृथ्वी की आंतरिक संरचना

 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की आंतसंरचनारिक 


भूगर्भ विज्ञा:-  इसके अंतर्गत पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन करते हैं यह पृथ्वी के अंदर की जानकारी अप्रत्यक्ष रूप से देती है।

रॉक या चट्टान:- चट्टान पृथ्वी पर पाए जाने वाले कठोर पदार्थ को चट्टान कहते हैं चट्टान तीन प्रकार के होता है ।

1) अग्नेय चट्टान

2) अवसादी चट्टान

3) रूपांतरित चट्टान

1)आग्नेय चट्टान:- 

  इसका निर्माण लावा से होता है इन्हें प्राथमिक चट्टान कहा जाता है आग्नेय चट्टान कठोर होते हैं इन पर रासायनिक अपक्षय का प्रयोग नहीं पड़ता है इन पर भौतिक अपक्षय का प्रयोग पड़ता है अग्नि चट्टान को दो भागों में बांटते हैं बाहीय अग्नि चट्टान तथा आंतरिक अग्नि चट्टान

बाह्य आग्नेय चट्टान:-  

 यह तब बनता है जब लावा भूमि के ऊपर चला आए इसका रंग काला होता है इसके गिरावट से काली मिट्टी बनती है उदाहरण बेसाल्ट।

दक्षिण भारत में काली मिट्टी होने के मुख्य कारण बेसाल्ट चट्टान हैं।

आंतरिक आग्नेय चट्टान:- इसका निर्माण तब होता है जब लावा भूमि के अंदर रह जाए। यह दो प्रकार का होता है प तालिका तथा मध्यवर्ती।

 पातालीका :- यह बहुत ही गहराई में होता है ग्रेनाइट तथा गेवोरा इसके उदाहरण हैं।

मध्यवर्ती:- इसका निर्माण तब होता है जब लावा भूमि के सतह तक पहुंच जाए इसे आकार के अनुसार कई भागों में बांटते हैं जैसे नंबर 1 लैकोलिथ :- यह गुंबज के समान होता है।

२) लाइपोलिथ:- यह तस्तरी के समान होता है।

3) फैकोलिथ निरंजन यह उबर खबर संरचना में होता है।

4) सील:- यह क्षैतिज से लय रहता हैं

5) डाइक:- यह लोहा के समान खड़ा लंबवत रहता है।

, चित्र द्वारा विवरण
आग्नेय चट्टान



            अवसादी चट्टान :- 

यह आग्नेय चट्टान के टूटने से बनता है यह कई परसों से बनता है इसीलिए इसे परतदार चट्टान भी कहते हैं।

सभी इन धन की प्राप्ति अवसादी चट्टान से होती है अवसादी चट्टान को तल छठी चट्टान भी कहते हैं।      

अवसादी चट्टान को द्वितीय चट्टान तथा आग्नेय चट्टान को प्राथमिक चट्टान भी कहते हैं। प्राकृतिक गैस तथा पेट्रोलियम की प्राप्ति अवसादी चट्टान के ऊपर से होती है। उदाहरण:- बालू पत्थर:- चिकनी मिट्टी या चुना पत्थर।

भौतिक अपक्षय का प्रभाव आग्नेय तथा अवसदी दोनों पर पड़ता है जबकि रासायनिक अपक्षय का प्रभाव केवल अवसादी चट्टानों पर पड़ता है।      

Note::- चट्टानों में सर्वाधिक मात्रा में ऑक्सीजन तथा सिलिकॉन पाया जाता है।

   पृथ्वी की संरचना से संबंधित जानकारी

पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी अप्रत्यक्ष रूप से मिलती है पृथ्वी के अंदर जाने पर तापमान तथा घनत्व दोनों बढ़ता है। 32 मीटर की गहराई से जाने पर 1 डिग्री तापमान में वृद्धि हो जाती है।

• पृथ्वी के आंतरिक संरचना की जानकारी सर्वप्रथम एडवर्ल्ड सुरेश ने दिया। उन्होंने पृथ्वी को तीन भागों में बांटा:-

1) Sial( सियाल

2) Sima( सीमा

3) Nifa( नी फे

1) सियाल:- यह पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है। इसमें सिलिकॉन तथा एलुमिनियम की अधिकता है यह 50 किलोमीटर से 300 किलोमीटर तक गहरा है। रासायनिक रूप से यह अम्लीय है। इसी पर महाद्वीप तथा महासागर स्थित है।

2) सीमा:- यह पृथ्वी का मध्य प्रदेश में सिलिकॉन तथा मैग्नीशियम की अधिकता है। रासायनिक रूप से यह कार्य है ज्वालामुखी के दौरान मेघमा इसी बाग से निकलता है इसकी गहराई 100 किलोमीटर से 200 किलोमीटर है।

3) nifa:- यह परत पृथ्वी के आंतरिक परत जो तरल अवस्था में है इसमें निखिल तथा लोहे की अधिकता है इस परत का घनत्व सबसे अधिक होता है

स्वेस के अनुसार सियाल का घनत्व 25 ग्राम पर सेंटीमीटर स्क्वायर होता है। सीमा का घनत्व 4 ग्राम /cm3 हैं। 

Nifa का घनत्व11gm/cm3 होता है

पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5gm/cm3 होता है लगभग पृथ्वी का घनत्व 5.5 बताया जो कि सही है किंतु इसमें पृथ्वी के विभिन्न परसों को स्पष्ट नहीं किया स्वेस की अवधारणा करते हुए आधुनिक भूगोल वेताओं ने नई अवधारणा दी। 

जिसके तहत पृथ्वी के तीन भागों में बांटा गया:-

1) crust

2) mentle

3) core

1)crust भू परपटटी) :- यह पृथ्वी का सबसे बाहरी परत होता है कौन विराम प्राकृतिक रूप में यह अम्लीय होता है। महाद्वीप तथा महासागर इसी पर स्थित हैं इसकी गहराई 20 किलोमीटर से 40 किलोमीटर है। इस पृथ्वी के कुल आयतन के यह मात्र 1% है। इसे दो भागों में बांटते हैं। 

ऊपरी भूपर्पटी तथा निचली भू प्रॉपर्टी

ऊपरी भूपर्पटी:- ऊपरी भूपर्पटी अम्लीय है तथा निचली भूपर्पटी क्षा री य  है। चित्र द्वारा विवरण:- 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की आंतरिक संरचना का विवरण

भू प्रवाह(mentle) 

भू प्रवाह:- यह पृथ्वी के बीच वाला परत है जो अर्थदल है अर्थात प्लास्टिक के समान हैं ज्वालामुखी के दौरान तरल मैग्मा इसी पर से निकलता है इसे निम्न गति का मंडल भी कहते हैं क्योंकि इस परत में भूकंप तरंग की चाल घट जाती है। इसकी गहराई 900 किलोमीटर तक है यह पृथ्वी का सबसे बड़ा परत है पृथ्वी के कुल आयतन में इसका 83% योगदान है।

 इसे दो भागों में बांटते हैं। 

ऊपरी मेंटल तथा निचली मेंटल

Core( कोर) :- यह पृथ्वी का सबसे केंद्रीय भाग है इसका तापमान सबसे अधिक रहता है। यहां गुरुत्वाकर्षण क्षमता अधिक होने के कारण इसे गुरुत्वीय मंडल भी कहते हैं अतः इस मंडल को धात्विक मंडल भी कहते हैं इसे दो भागों में बांटते हैं ऊपरी कौर तथा निचली को यह पृथ्वी के कुल आयतन का 16% हिस्सा है।

पृथ्वी की उत्पत्ति

प्रारंभ में पृथ्वी धड़कता हुआ आग का गोला था कालांतर में इस में सिकुड़न उत्पन्न हुआ और इसका भारी बागची कृपया कुछ समय पश्चात पृथ्वी के भाग बन गए बाहरी भाग को तलाशा कहा गया तथा आंतरिक भाग को पेन जिया कहा गया आगे चलकर पेन जिया दो भागों में बंट गया। पंजिया का उत्तरी भाग अंगारा लैंड या लारेशिया कहलाय। 

जबकि दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड या जंबूद्वीप कहलाया वर्तमान में उत्तरी गोलार्ध के देश अंगारा लैंड के भाग हैं जबकि दक्षिणी गोलार्ध के देश गोंडवाना लैंड के भाग हैं भारत की उत्तरी भाग अंगारा लैंड तथा दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड का भाग है अंगारा तथा गोंडवाना लैंड के बीच में 33 सागर था पूर्णविराम जहां आज हिमालय पर्वत स्थित है महाद्वीपों के वर्तमान स्वरूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है। मेघनाथ ने महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत दिया। उत्तरी दुरु दुरु के समीप बिखरे हुए पे था  लासा का भाग है। 

पृथ्वी की उत्पत्ति


 

प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत

इस सिद्धांत को हरि हस ने दिया इसके अनुसार पृथ्वी बहुत मोटे प्लेट पर टिकी है। इन प्लेटों की मोटाई लगभग 100 किलोमीटर होती है महासागर के समीप यह प्लेट पतले होते हैं जबकि महाद्वीपों के समीप यह प्लेट मोटे होते हैं पृथ्वी पर कुल 7 बड़े तथा 20 छोटे प्लेट हैं।

7 बड़े प्लेट:- उत्तरी अमेरिका दक्षिण अमेरिका अंटार्कटिका अफ्रीका यूरेशिया इंडो ऑस्ट्रेलिया प्रशांत महासागर प्लेटो के अभिसरण या टकराव से भूकंप आते हैं अर्थात प्लेटों का किनारा भूकंप का कारण बनता है नवीन पर्वतों के नीचे भी भूकंप आते हैं। प्रशांत महासागरीय प्लेट सर्वाधिक प्लेटों स सीमा बनाती है जिस कारण प्रशांत महासागर में सर्वाधिक सर्वाधिक भूकंप आते हैं नेपाल यूरेशिया तथा इंडो ऑस्ट्रेलिया के सीमा पर हैं जिस कारण वहां भूकंप आता है अंटार्कटिका प्लेट किसी भी प्लेट के समीप नहीं है जिस कारण वहां भूकंप नहीं आते हैं ।

भूकंप या Earth Quick

भूकंप:- भूपर्पटी के अचानक दोलन या कंपन को भूकंप कहते हैं।

भूकंप से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली विवरण 

Focus या मूल :- पृथ्वी के अंदर जिस स्थान से भूकंप प्रारंभ होता है। उसे मूल कहते हैं।

अधिकेंद्र या एपी सेंटर:- पृथ्वी सतह का वह स्थान जहां भूकंपीय तरंगे सबसे पहले पहुंचती है अधिकेंद्र कहलाता है यह सर्वाधिक क्षति वाला स्थान होता है या सर्वाधिक क्षति अधिकेंद्र पर होती है।

भूकंपीय तरंगे:- भूकंप के दौरान तीन प्रकार के तरंग निकलती है 

1) p

2) S

3) L

Primary तरंग या पी तरंग:- इनकी चाल 6 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है अतः यह पृथ्वी पर सबसे पहले पहुंचती है जिस कारण इसे प्राथमिक तरंग कहते हैं पी अनु धैर्य होती है यह ठोस द्रव तथा गैस तीनों में चलती है। यह सबसे कम क्षति पहुंचाती है।

Secondary तरंग निर्णय इनकी चाल 3 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है यह भी तरंगों के बाद पहुंचती है अतः इसे द्वितीय तरंग कहते हैं यह अनुप्रस्थ होती है जिस कारण दरों में नहीं चल सकती है सुनामी के दौरान यह तरंग उत्पन्न नहीं होती है इससे क्षति पी की तुलना में अधिक होती है।

Love तरंगे:- इसकी खोज एचडी लव ने किया था इसलिए इन्हें लव तरंगे भी कहते हैं इन्हें धरातलीय तरंग भी कहते हैं इसकी चाल 1 पॉइंट 5 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है यह तीनों माध्य में चलती है अतः इसकी गति सबसे धीमी होती है इससे क्षति सबसे अधिक होती है।

भूकंप को सिस्मोग्राफ पर दर्शाया जाता है इसे मापने के लिए रिएक्टर स्केल का प्रयोग किया जाता है कि रिएक्टर स्केल पर जीरो से 9 तक अंक बने होते हैं प्रत्येक संख्या अपनी पहली संख्या से 10 गुनी खतरनाक होती है 7 तीव्रता से अधिक का भूकंप खतरनाक होता है भूकंप मापने के लिए पहले मर्केल इनस्केप का स्केल का प्रयोग किया जाता था जिसमें 1 से 12 अंक लिखे होते थे। चित्र द्वारा विवरण :-
  
सिस्मोग्राफ चित्र
सिस्मोग्राफ पैमाने का चित्र

सुनामी  या Tsunami

सुनामी:- यह जापानी भाषा का शब्द है इसका अर्थ होता है बहुत ही उनकी तरंगे जब भूकंप समुंदर के नीचे आता है तो सुनामी कहते हैं इससे तरंगों का आयाम या ऊंचाई बहुत बढ़ जाता है जापान में सार्वजनिक सुनामी आते हैं।

2004 में इंडोनेशिया में आई सुनामी से इंदिरा प्वाइंट डूब गया भारत ने सुनामी चेतावनी प्रणाली हैदराबाद में विकसित किया गया है।

ज्वालामुखी या वोल्केनो:- भारत के मेंटल से तरल  मैग्मा जिस क्रिया से बाहर आता है उसे ज्वालामुखी करते हैं। मेघमा जब ठंडा होता है तो उसे लावा कहते हैं जब मेघमा का जमाव पानी में हो जाए तो उसे  टफ कहते हैं। जब मेघमा का जमाव चना के समान हो जाए तो उसे चकोरिया कहते हैं। 

मेघमा जिस क्षेत्र से निकलता है उसे ज्वालामुखी चित्र कहते हैं जब ज्वालामुखी चित्र बड़ा हो जाता है तो उसे करैक्टर कहते हैं क्रेटर का आकार जब बड़ा हो जाता है तो उसे काल्डेरा कहते हैं जब रुक जाता है तो उसमें वर्षा का जल भर जाता है और उसे काल्डेरा झील या क्रेटर झील कहते हैं।

ऑस्ट्रेलिया में ज्वालामुखी नहीं है अंटार्कटिका में भूकंप नहीं है यूरोप में मरुस्थल नहीं है उत्तरी अमेरिका में एक भी स्थान वध देश नहीं है सऊदी अरब में नदी नहीं है ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं:-

1)मृत 2) सुषुप्त और 3) सक्रिय

मृत ज्वालामुखी:- इस ज्वालामुखी में कोई भी सपोर्ट नहीं होता है उदाहरण भारत:- नारकोंडम म्यानमार:- पोपा ईरान:- देवबंद को है ल सुल्तान। 

2) सुषुप्त ज्वालामुखी :-  इस ज्वालामुखी में विस्फोट नहीं होता किंतु कभी भी विस्फोट हो सकता है उदाहरण के लिए इटली का विश्व वीएस ज्वालामुखी और जापान का प्रयोग जी आमा और इंडोनेशिया का सीनाका क्रोकाटोवा

3) सक्रिय ज्वालामुखी:- इसमें हमेशा विस्फोट या उद्गार होते रहते हैं यह सबसे घातक होता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं:- भारत में बैरन इक्वाडोर में कोटोपैक्सी इटली में स्ट्रांबोली 89 यूएसए या अमेरिका में स्पर् रूस में विंजा मियामी इंडोनेशिया में सुमेरु तंजानिया में किलिमंजारो अंटार्कटिका में इरेबस 

ज्वालामुखी को पृथ्वी का सुरक्षा वाल्व कहते हैं ओजोन को पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहते हैं। ज्वालामुखी के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड तथा जलवाष्प तथा CO2 गैस निकलती है। सर्वाधिक ज्वालामुखी प्रशांत महासागर में है जिसे अग्नि वाले या फायर ऑफ रिंग कहते हैं। सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी कोटोपैक्सी जो कि इक्वाडोर में स्थित है सबसे ऊंचा वरिष्ठ ज्वालामुखी अमेरिका के हवाई द्वीप अवस्थित मौना लोआ ज्वालामुखी है। सबसे सक्रिय ज्वालामुखी इटली का स्ट्रोम बोली है इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ भी कहते हैं।

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