ब्रह्मांड क्या है
![]() |
| ब्रह्मांड क्या है |
ब्रह्मांड क्या है( what isf univers)
दिखाई पड़ने वाले समस्त आकाशीय पिंड को
ब्रह्मांड कहते हैं।
ब्रह्मांड का अध्ययन एस्ट्रोनॉमी या खगोलकी कहलाता है।
- • ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है ब्रह्मांड में सर्वाधिक संख्या तारों की है।
तारा:- वैसा आकाशीय पिंड जिसके पास अपनी उस्मा तथा प्रकाश हो तारा कहलाता है।
• तारा बनने से पहले विरल गैस का गोला होता है।
• जब विरल गैस केंद्रित होकर पास आ जाते हैं तो घने बादल के समान छा जाते हैं जिन्हें निहारिका कहते हैं।
• जब इन निहारिका या नेबुला में संलयन विधि द्वारा दहन
की क्रिया प्रारंभ हो जाती है तो वह तारों का रूप ले लेता है।
• तारे में हाइड्रोजन कौशल्या नियम में होते रहता है। तारों में इंधन प्लाज्मा अवस्था में रहता है।
• तारों का रंग उसके पृष्ठ ताप पर निर्भर करता है।
लाल रंग -निम्नतम ताप(6000°c)
सफेद रंग -मध्यम ताप
नीला रंग- उच्च ताप
तारों का भविष्य उसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
लाल दानव:- जब तारा या सूर्य का इंधन समाप्त होने लगता है तो वह लाल दानों का रूप ले लेता है और लाल दानों का आकार बड़ा होने लगता है।
Case-1 यदि लाल दानव का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1 . 44* से छोटा है तो वह श्वेत वामन बनेगा।
श्वेत वामन:- इसे जीवन तारा कहते हैं छोटा तारा अंतिम रूप से श्वेत वामन अवस्था में ही चमकता है।
काला बामन:- श्वेत वामन चमकना छोड़ देता है तो वह काला बामन का रूप ले लेता है उस प्रकार छोटे तारों का अंत हो जाता है
Case -2 यदि लाल दानों का प्रेमांशु जी के द्रव्यमान के 1 पॉइंट 4 4 * से बड़ा है तो वह अभिनव तारा का रूप लेगा।
अभिनव तारा या सुपरनोवा :-इसमें कार्बन जैसे हल्के पदार्थ लोहा जैसे भारी पदार्थ में परिवर्तित होने लगता है जिस कारण यह विस्फोट करने लगते हैं अतः इसे विस्फोटक तारा भी कहते हैं।
विस्फोट के बाद यह न्यूट्रॉन तारा का रूप ले लेता है ।
न्यूट्रॉन तारा:- न्यूट्रॉन तारा विस्फोट के बाद बनता है इसका घनत्व कुछ हो जाता है और आकार छोटा हो जाता है।
पल्सर विवरण यह तारा चमकता और बोलता रहता है इससे उस संख्या में विद्युत चुंबकीय तरंगे निकलती है।
क्वेश्चन:- यह तारों की लगभग अंतिम अवस्था होती है क्रेशर की चुंबकीय क्षमता अधिक होती है।
ब्लैक होल या कृष्ण विवर :- इसका घनत्व अति उच्च होता है यह प्रकाश को भी गुजरने नहीं देता है इसकी खोज चंद्रशेखर ने की थी जो भारतीय वैज्ञानिक थे
ब्लैक होल की चुंबकीय क्षमता भी अधिक होती है यह श्वेत वामन और काला बामन को भी अपनी ओर खींच लेता है अतः तारों का अंत ब्लैक होल के रूप में हो जाता है।
चंद्रशेखर सीमा:- सूर्य के द्रव्यमान के 1.5* 1.44 द्रव्यमान को चंद्रशेखर सीमा कहते हैं। लाल दानों के बाद तारों का भविष्य चंद्रशेखर सीमा पर निर्भर करता है। लाल दानों का आकार बहुत ही बड़ा हो जाता है सूर्य जब लाल दानव का रूप लेगा तो वह अपने समीप के चारों ओर के पिंडिया ग्रहों को जला देगा।
वाइट होल:- यह एक परिकल्पना है जिससे यह मान लिया जाता है कि सभी प्रकार एक ही बिंदु से आ रहा है।
![]() |
आकाशगंगा या गैलेक्सी:- ब्रह्मांड में तारों के असंख्य समूह को गैलेक्सी या आकाशगंगा कहते हैं।
आकाशगंगा का आकार सरपीलाआकार आकार होता है। तारे इस सर्किल आकार बुझा के किनारे पाए जाते हैं जैसे-जैसे तारों की आयु बढ़ती जाती है वह आकाशगंगा के मध्य में जाने लगता है आकाशगंगा के मध्य भाग को बलज कहते हैं। ब ल ज में ब्लैक होल पाए जाते हैं। ब्लज में तारों की संख्या अधिक होती है। आकाशगंगा का निर्माण आज से 12 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ था ब्रह्मांड में लगभग सौरभ आकाशगंगा ए हैं और प्रत्येक आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारे हैं।
सुपर फास्ट :- तीन आकाशगंगा ओं के समूह को सुपरक्लस्टर कहा जाता है हम जिस सुपरक्लस्टर में रहते हैं उसमें भी तीन आकाशगंगा ही हैं।
देवयानी या एंड्रोमेडा:- यह हमसे सबसे करीबी आकाशगंगा है यह हमारी आकाशगंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है दूसरा निकटतम आकाशगंगा एनजीसी m33 है।
सूर्य जिस आकाशगंगा में है उसे मंदाकिनी कहते है।
![]() |
| 🌌Universe |
मंदाकिनी या मिल्की वे:- हमारा अपना सूर्य जिस आकाशगंगा में है उसे मंदाकिनी कहते हैं इसे मिल्कीवे या दुग्ध मेखला भी कहते हैं मंदाकिनी का आकार सर पीला कार्ड या स्पाइरल है।
इसकी तीन घुलनशील भुजाएं हैं :-
नए तारे बाहरी भुजाओं पर रहते हैं तो सूर्य भी बाहरी बुझ पर रहता है
जब तारे लाल दानों की अवस्था में आ जाते हैं तो तारे मध्य वाली भुजा में चले जाते हैं तारे जब अपनी अंतिम अवस्था में जाते हैं तो वह केंद्र भुजा में प्रवेश कर जाते हैं।
मंदाकिनी के केंद्रीय भाग को ब्लज कहते हैं ब्लज में ब्लैक होल पाए जाते हैं यह ब्लैक होल श्वेत वामन तथा कलावा मन को भी खींच लेता है अतः तारों का अंत ब्लैक होल में ही जाकर होता है।
सूर्य अपनी मंदाकिनी का चक्कर एंटी क्लॉक वाइज लगाता है सूर्य 250 किलोमीटर प्रति सेकंड की चाल से मंदाकिनी का चक्कर लगाता है। उसे एक चक्कर पूरा करने में 25 करोड वर्ष लग जाते हैं इसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहा जाता है ।
सूर्य का सबसे करीबी तारा प्रेसिमा सेंचुरी है।
तारामंडल:- सूर्य से दूरी पर स्थित तारों के समूह के कारण बनने वाली विशेष आकृति को तारामंडल कहते हैं इसकी संख्या वर्तमान में 88 हैं।
सेंट्रो तथा हाइड्रा सबसे प्रमुख तारामंडल है सबसे बड़ा तारामंडल हाइड्रा है
ध्रुव तारा या पोलर स्टार:- यह सदैव उत्तर दिशा में दिखता है क्योंकि यह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर होता है।
प्राचीन काल में इसका प्रयोग दिशा ज्ञात करने में किया जाता था अतः इसे दिशा सूर्य सूचक कहते हैं।
साइरस या डे स्टार:- यह सबसे चमकीला तारा है इसे ओसियन के माध्यम से खोजा जाता है।
हैंटर तारामंडल :- यह शिकारी की तरह दिखता है इसे मरीज भी कहते हैं इसके बीच में तारों की अधिक संख्या है जिस के दक्षिण पश्चिम में सायरस तारा होता है।
सप्त ऋषि या अरसा मेजर:- यह 7 तारों का एक समूह है इसके ऊपरी तारे के ठीक सामने ध्रुव तारा अवस्थित रहता है।
लघु सप्त ऋषि या अरसा माइनर:- यह 7 तारों का एक समूह है किंतु यह सप्त ऋषि के उलटे आकार का होता है इस के सहयोग से भी ध्रुवतारा को ढूंढा जा सकता है ।
नक्षत्र:- सूर्य के समीप तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। इसकी संख्या 27 है सूर्य 1 महीने में 2.25 नक्षत्र को पार करता है भारतीय ज्योतिष इस पर पूरा का पूरा टीका है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत:- बेल्जियम के पादरी जो रोजे अरे ने महा विस्फोट या बिगबैंग का सिद्धांत दिया। इसके अनुसार 15 बिलियन वर्ष पहले एक अति उच्च गणित पर वाले तारे में महा विस्फोट हुआ। इसी विस्फोट के फलस्वरूप कई आवेशित कण जैसे इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन पॉजिटरों इत्यादि का निर्माण हुआ इसी विस्फोट के बाद से पेस का निर्माण हुआ तथा समय की गणना प्रारंभ हुई।
आपस में सेकेंडरी तो कर तारों का निर्माण कर लिए। कई तारे मिलकर आकाशगंगा का निर्माण कर लिए तीन आकाशगंगा मिलकर सुपरक्लस्टर का निर्माण कर लिया कई सुपरक्लस्टर मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करता है।
हब्बल नामक वैज्ञानिक ने बताया कि यह ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है अंतरिक्ष में छोड़े गए खबर नामक दूरदर्शी से इस विस्तार का पता चला।
विद्वानों का मानना है कि ब्रह्मांड को विस्तारित करके कोई शक्ति है जो इसे खींच रही है अतः जब यह शक्ति समाप्त होगी तो वह ब्रह्मांड पुणे सिकुड़ना चालू हो जाएगा और सिकुड़ कर तूने अपनी प्रारंभिक अवस्था में चला जाएगा तब इसे सुपर क्रेंस कहा जाएगा ।
एक तारा सिद्धांत या मोनोस्टार:- इस सिद्धांत के अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य के ही टुकड़ों से हुआ है इस सिद्धांत को दो विद्वानों ने दिया।
1) गैसीय सिद्धांत:- इसे कांट नामक वैज्ञानिक ने दिया इसके अनुसार सूर्य के घूर्णन गति के कारण सूर्य के बाहरी परत अलग हो गया तथा ठंडा होकर गुरुओ का निर्माण कर लिया इस सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया गया।
2) निहारिका सिद्धांत या नेबुला थ्योरी:- इसे लाप्लास ने दिया इसके अनुसार सूर्य की बाहरी परत ठंडी हो गई किंतु आंतरिक परत गर्म बनी रही जिस कारण इसका बाहरी भाग टूटकर अलग हो गया और इसी अलग हुए भाग से ग्रहों का निर्माण हुआ।
इन दोनों सिद्धांतों को नकार दिया गया क्योंकि ग्रह की संरचना सूर्य की संरचना से भिन्न पाई गई है।
द्वेद तारा सिद्धांत या डुअल स्टार थ्योरी:- इस सिद्धांत के अनुसार सौरमंडल का निर्माण 2 तारों से हुआ है इस सिद्धांत को दो विद्वानों ने प्रस्तुत किया।
1) चेंबर सीन:- इसके अनुसार सूर्य के समीप एक विशाल तारा था जिसके गुरुत्वाकर्षण के कारण सूर्य का ऊपरी भाग टूट गया और ऊपरी भाग अलग हो गया जिससे सौरमंडल का निर्माण हुआ
2) जींस:- इसके अनुसार सूर्य के समीप एक बहुत बड़ा तारा था जिसका गुरुत्वाकर्षण के कारण सूर्य के ऊपरी भाग को अलग कर दिया गया जब यह तारा सूर्य के समीप आया तो उसके बहुत बड़े भाग को सूर्य से अलग कर दिया गया जिससे बड़े घरों का निर्माण हुआ।
इन दोनों ही सिद्धांतों को नकार दिया गया क्योंकि ग्रहों की संरचना सूर्य से बिल्कुल ही भिन्न है।
3) डबल स्टार थ्योरी:- इस सिद्धांत के अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य के अतिरिक्त 2 तारों से हुआ है इस सिद्धांत को मिली लीटर ने दिया इसके अनुसार सूर्य के अतिरिक्त दो तारे और थे। जिसमें एक तारे में विस्फोट हो गया और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से रे सूर्य के समीप आ गए और उससे ग्रहों निर्माण हुआ जबकि दूसरा तारा ब्लैक होल में विलीन हो गया।
इस सिद्धांत को मान्यता प्राप्त है वर्तमान में गृह का स्वरूप उस विस्फोट तारा के समान है।
सौरमंडल या सोलर सिस्टम:- सूर्य तथा उसके आसपास के ग्रह उपग्रह तथा शुद्र ग्रह घूमकेतु उल्कापिंड उल्का के संयुक्त समूह को सौरमंडल कहते हैं।
सौर मंडल के केंद्र में सूर्य स्थित है। सौरमंडल में जनक तारा के रूप में सूर्य है सौर मंडल के सभी पिंड सूर्य का चक्कर लगाते हैं। सूर्य हमारा सबसे निकटतम तारा है सूर्य सौरमंडल के बीच में स्थित है। सूर्य की लगभग आयु 15 अरब वर्ष है जिसमें से वह पांच अरब जीत चुका है। सूर्य के अंदर हाइड्रोजन का हीलियम में जलन होता है अर्थात सूर्य में नाभिकीय संलयन अभिक्रिया संपन्न होती है और इंधन प्लाज्मा अवस्था में रहता है। आंतरिक संरचना के आधार पर सूर्य को तीन भागों में बांटते हैं:-
1) core:- यह सूर्य का मध्य भाग है इसका तापमान लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है। इसी में हाइड्रोजन का हीलियम में संलयन होना होता है यह प्लाज्मा अवस्था में रहता है।
2) विकिरण मंडल या Redative zone:- कोर में हुए संलयन के फलस्वरूप कई प्रकार की किरणें निकलती है जो विकिरण मंडल में दिखती है इसमें एक्स एक्स किरणें तथा फोटो नई जाते हैं।
3) संवहन मंडल या conveactive zone:- इसमें हाइड्रोजन के बने सेल पाए जाते हैं जो अंदर की ओर बड़े होते हैं तथा बाहर की और छोटे होते हैं।
सोरज वालों या सोलर फ्लेम:- जब कोर में बहुत अधिक उर्जा बन जाती है तो वह सूर्य की तीनो परतों को पार करके हाइड्रोजन की सेल को चीरती हुई सूर्य की सतह को छोड़कर सौरमंडल में प्रवेश कर जाती है। जिस ज्वाला के पास तापमान कम है उसके पास उर्जा भी कम रहती है और उसे सूर्य वापस खींच लेता है जिस जवाला के पास तापमान अधिक रहता है वह सौरमंडल में दूसरे ग्रुप तक पहुंच जाती है जब यह पृथ्वी के करीब से गुजरता है तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आकर पृथ्वी पर गिरने लगता है किंतु वायुमंडल इसे विचलित कर देता है और पृथ्वी को जलने से रोकता है इस कारण तीन घटनाएं उत्पन्न होती है:-
1) पृथ्वी पर संचार या फोन में बाधा आती है।
2) एक डोनी उत्पन्न होती है जिसे vaslur कहते हैं।
3) एक प्रकाश उत्पन्न होता है जिसे अरोरा कहते हैं। उत्तरी गोलार्ध में इस प्रकाश में अरोरा बोरीवली तथा दक्षिण गोलार्ध में इस प्रकाश को अरोरा ऑस्ट्रे सिस कहते हैं।
Solar spot or sun spot या सौर कलंक:- वह ज्वाला जिसका तापमान कम था और उसके पास उर्जा भी कम थी जिसे सूर्य गुरुत्वाकर्षण के कारण वापस खींच लेता है यह दो सेल के बीच के खाली जगह से अंदर प्रवेश करता है। इसका तापमान 4000 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि सौर ज्वाला का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस होता है अतः इसका तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। अतः यह एक धब्बा के सम्मान दिखता है जिसे सौर कलंक कहते हैं।
सौर कलंक चक्कर:- सौर ज्वाला सूर्य के विषुवत रेखा या 0 डिग्री से 40 डिग्री अक्षांश दोनों दिशाओं तक जाता है।
इसे जाने में 505 वर्ष तथा आने में भी 5 पॉइंट 5 वर्ष लगते हैं। अतः सन सपो ट साइकिल 11 वर्ष का होता है। 2013 में 23 साइकिल पूरा हुआ था। वर्तमान में 24 साइकिल चल रहा है। एक साइकिल में 11 वर्ष या 100 सोलर सपोर्ट होते हैं।
चुंबकीय चाप:- जब सूर्य दबा या सन सपोर्ट बनता है तो वहां की चुंबकीय क्षमता बढ़ जाती है। इन चुंबकीय किरणों को ध्रुव अपनी ओर खींच लेता है जिसे मैग्नेटिक आरक या चुंबकीय चाप कहते हैं
चित्र द्वारा विवरण:-
![]() |
| सोलर सिस्टम |
सूर्य की बाहरी परत:- सूर्य के बाहर उसकी तीन परत हैं
1)प्रकाश मंडल या photosphere:- यह सूर्य का दिखाएं पढ़ने वाला भाग है इस का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस होता है।
2) वर्ण मंडल या cromosphere:- यह बाहरी परत के आधार पर मध्य भाग है इसका तापमान 92400 डिग्री सेल्सियस होता है।
3) किरीट या मुकुट य कोरोना:- यह सूची की सबसे बाहरी परत है जो लपट के समान होती है। इसे केवल सूर्य ग्रहण के समय देखा जाता है। इसका तापमान 27 लाख डिग्री सेल्सियस होता है।
सूर्या मैं 75 परसेंट हाइड्रजन तथा 24 परसेंट हीलियम है
शेष तत्वों की मात्रा 1% में ही निहित है सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी से 332000 गुना है सूर्य का व्यास पृथ्वी से 109 गुना अधिक है सूर्य का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 28 गुना अधिक है सूर्य का घनत्व पृथ्वी से 20 गुना अधिक है सूर्य से प्रति सेकंड 10 की घात 26 जूल ऊर्जा निकलती है। सूर्य पश्चिम से पूरब रोटेशन करता है सूर्य का विषुवतीय रेखे भाग 25 दिन में * या रोटेशन कर लेता है। सूर्य का ध्रुवीय भाग 31 दिन में रोटेशन कर लेता है।
जोवियन या बाहिया ग्रह:- यह है बस पति से समानता रखते हैं। उनका आकार बड़ा होता है किंतु घनत्व कम होता है। यह जैसे अवस्था में पाए जाते हैं। इन के उपग्रहों की संख्या अधिक होती है।
प्लूटो या यम :- यह नवग्रह था जिसको 24 अगस्त 2006 को चेक गणराज्य की राजधानी प्राण में अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ की बैठक हुई जिसमें प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से निकालकर बौना ग्रह में डाल दिया गया। अभी प्लूटो का नाम 1949 40 है। प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से निकालने की मुख्य कारण निम्न है:- नंबर 1 इसका आकार अत्यधिक छोटा था नंबर दो इसकी कक्षा दीर्घ वृत्तीय नहीं थी नंबर 3 इसकी कक्षा वरुण की कक्षा को काटती थी।
उपग्रह या सैटलाइट
उपग्रह या सैटेलाइट:- इनके पास भी उस्मा और प्रकाश दोनों नहीं होते हैं यह अपने निकटतम तारा से उस्मा और प्रकाश ग्रहण करते हैं। किंतु यह चक्कर अपने निकटतम ग्रह का लगाते हैं। उपग्रह दो प्रकार के होते है:- नंबर एक प्राकृतिक उपग्रह जैसे चंद्रमा नंबर दो कृत्रिम उपग्रह यह मानव निर्मित होते हैं संसार तथा मौसम की भविष्यवाणी करता है।
पृथ्वी से दूरी के अनुसार ग्रह :- अर्थात पृथ्वी के सबसे नजदीक ग्रह शुक्र उसके बाद मंगल बुध बृहस्पति शनि अरुण वरुण सबसे दूर का ग्रह है ।
आकार के अनुसार ग्रहों का क्रम सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति है उसके बाद सनी है उसके बाद अरुण वरुण पृथ्वी और अंत में शुक्र मंगल और बुध सबसे छोटा ग्रह है।
नंगी आंखों से हम पांच घरों को देख सकते हैं विवरण चेंज बुध शुक्र मंगल बृहस्पति सनी
उल्टा घूमने वाले ग्रह:- अर्थात पश्चिम से पूर्व की ओर गति करने वाले या घूमने वाले ग्रह शुक्र और अरुण है।
सर्वाधिक घनत्व पृथ्वी का तथा कम घनत्व शनि का है। सबसे बड़ा उपग्रह बृहस्पति का गेनीमेड और सबसे छोटा उपग्रह मंगल का डिवोर्स है सबसे तेज रोटेशन बृहस्पति 9 पॉइंट 5 घंटे में दिन की अवधि। सबसे धीमा रोटेशन या * शुक्र 249 दिन
सबसे तेज परिक्रमण बुध की है जो 1 वर्ष केवल 88 दिन में पूर्ण करता है तथा सबसे धीमा शुक्र जिसका एक दिन 249 दिनों के।
Goldy lock zone:- अंतरिक्ष का वह स्थान जहां जीवन की संभावना पाई जाती है उसे गोल्डी लॉक जॉन कहते हैं।
केवल पृथ्वी पर जीवन संभव है। मंगल पर इसकी संभावना है जीवन की उत्पत्ति के लिए कपास का पौधा अंतरिक्ष पर भेजा गया है।
ग्रहों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी
Tags
India G.k











❤👌
जवाब देंहटाएं