Gender School and Society
(course-10)
Unite-3
Teaching learning material
शिक्षण सहायक सामग्री
(1) श्रव्य सामग्री
(2)दृश्य सामग्री
(3) श्रव्य दृश्य सामग्री
(4) शिक्षण सहायक सामग्री की विशेषता
(5) शिक्षण सहायक सामग्री की उपयोगिता
(6) कंप्यूटर
शिक्षण सहायक सामग्री teaching learning material
शिक्षण सहायक सामग्री शिक्षकों का साधन है जिसके माध्यम से वह अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को स्थाई एवं रोचक बनाने का कार्य करता है
T.l.m. के अंतर्गत छात्रों को चित्र ग्लोब चार्ट मॉडल आदि के अंतर्गत से पत्ते को समझाने का कार्य किया जाता है जिससे अधिगम प्रक्रिया में छात्र अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं शिक्षण सहायक सामग्री को TL M एवं TEACHING ADS के नाम से भी जाना जाता है यह शिक्षण को प्रभावशाली बनाने का एक उत्तम साधन है
शिक्षण सहायक सामग्री
भारतीय शिक्षा शिक्षण सहायक सामग्री
शिक्षण के क्षेत्र में अधिगम करने में सहायक तत्व को ही सामान्य शब्दों में शिक्षण सहायक सामग्री खाते हैं आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे कि शिक्षण सहायक सामग्री क्या है
शिक्षण सहायक सामग्री क्या है यह शिक्षण प्रक्रिया का एक भाग है जिसका उपयोग छात्रों को प्रकरण को समझाने के लिए किया जाता है इस महीने को श्रव्य सामग्री दृश्य सामग्री और सर्वेद से सांवरिया माध्यम से शिक्षा को प्रभावशाली बनाया जाता है जो इस प्रकार हैं
(1) श्रव्य सामग्री
यह वह सामग्री होती है जिसके माध्यम से छात्रों को सुनाकर ज्ञान प्रदान किया जाता है जैसे रेडियो टेप रिकॉर्डर
रेडियो
रेडियो के माध्यम से छात्रों के ध्यान को एकाग्र चित्त किया जाता है जिससे उनकी अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जाता है यह वही यंत्र है जिसके माध्यम से छात्रों को ऐसे लोगों की आत्मकथा एवं भाषण सुनाया जाते हैं जो उनके जीवन में बदलाव लाने का कार्य करते हैं यह छात्रों के व्यक्तित्व एवं उनके चरित्र निर्माण हेतु महत्वपूर्ण होता है यह सूचनाओं के प्रसारण का एक उत्तम मार्ग है जिसका उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है
टेप रिकॉर्डर
टेप रिकॉर्डर के माध्यम से संचालित की गई आवासों का प्रसारण के माध्यम से आवश्यकतानुसार किया जाता है जिसके माध्यम से छात्रों को किसी प्रकरण को स्पष्ट करने एवं शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव लाने हेतु किया जाता है जिससे कक्षा में छात्रों को सक्रिय कर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जाता है
2. दृश्य सामग्री
इस प्रकार की सामग्रियों के माध्यम से छात्रों को दिखाकर शिक्षा प्रदान की जाती है इसमें प्रकरण से संबंधित वस्तुओं को छात्र के सम्मुख रख शिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है इसकी सहायता से शिक्षण को रुचिकर बनाने का प्रयास किया जाता है जैसे ग्लोब चार्ट श्यामपट्ट मानचित्र मॉडल प्लेन बोर्ड बुलिटिन बोर्ड पावरप्वाइंट
ग्लोब
ग्लोब शिक्षण में व्याख्यान प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण साधन है जिसका उपयोग छात्रों को दिशाओं एवं स्थान का ज्ञान करवाने हेतु किया जाता है इसका अधिक उपयोग भूगोल की कक्षाओं हेतु किया जाता है यह शिक्षण सहायक सामग्री का एक महत्वपूर्ण भाग
चार्ट
चाट का उपयोग शिक्षण को रुचिकर एवं सरल बनाने के लिए किया जाता है इसके माध्यम से किसी जटिल प्रकरण को सरल बनाने के लिए चाट का प्रयोग किया जाता है
मॉडल
मॉडल का सर्वाधिक उपयोग विज्ञान भूगोल एवं पर्यावरण संरक्षित प्रकरण को समझाने हेतु किया जाता है इसके अंतर्गत प्रकरण के महत्वपूर्ण बिंदुओं का चयन कर कागज गद्दार अपराधी का उपयोग कर उसके जैसा दिखाने वाला रूप प्रदान किया जाता है जिससे छात्रों को की चिंतन शक्ति का विकास होता है और वह कक्षा में उत्तम एवं स्थाई अधिगम कर पाते हैं
फ्लैनल बोर्ड
प्ले नल बोर्ड का निर्माण एक कपड़े से चलता है जिसका आकार लिखने में लगभग श्यामपट्ट जैसा भी दिखाई देता है जिसमें अनेक छोटी-छोटी वस्तुओं को उस कपड़े में चिपकाकर कक्षा को रुचिकर बनाया जाता है फल बोर्ड का अत्यधिक उपयोग छोटे की वस्तुओं हेतु कर छात्रों का संज्ञानात्मक विकास किया जाता है
बुलेटिन बोर्ड
इस बोर्ड का उपयोग छात्रों को सूचना प्रदान करने हेतु किया जाता है इसमें महत्वपूर्ण सूचनाओं की चस्पा कर एवं महत्वपूर्ण सूचनाओं को अंकित कर छात्रों के ज्ञान में वृद्धि व सूचना प्रदान करने का कार्य करता है
पावर पॉइंट
पावर पॉइंट आधुनिक युग में नवीन उपयोग है इसमें स्लाइड का उपयोग कर छात्रों को नवीन मार्ग से शिक्षण प्रक्रिया हेतु उपाय किया जाता है यह छात्रों को एक आकर्षित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभात
(3) श्रव्य दृश्य सामग्री
इस प्रकार की शिक्षण सामग्री के माध्यम के रूप में ऐसी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है जिसके माध्यम से छात्रों का को आवाज के साथ साथ दृश्य दिखाकर शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है जैसे टीवी दूरदर्शन नाटक
टीवी
टीवी आधुनिक शिक्षण प्रक्रिया का विभाग है जो छात्रों का सर्वाधिक विकास करने में सहायक है टेलीविजन के माध्यम से छात्रों को प्रेरणा देने वाले भाषणों एवं वैश्विक सूचनाओं से अवगत होने के अवसर प्राप्त होते हैं
दूरदर्शन
दूरदर्शन के माध्यम से अनेकों सेक्स में के कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाता है जिसके माध्यम से छात्र घर बैठे अधिगम प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं दूरदर्शन चैनल के माध्यम से छात्रों का भावात्मक नैतिक चारित्रिक एवं ज्ञानात्मक विकास किया जाता है
नाटक
नाटक सह पाठयक्रम गतिविधियों के अंतर्गत आने वाला विभाग है जिसके माध्यम से छात्रों को सुरक्षित प्रक्रिया में सम्मिलित होकर नवीन तरीकों से ज्ञान प्राप्त करवाया जाता है इसमें प्रकरण से संबंधित पात्रों का निर्माण करें प्रकरण के आधार पर नाटक करवाया जाता है जो उस प्रकरण के महत्वपूर्ण बिंदुओं का स्मरण रखने में सहायता प्रदान करता है और यह छात्रों का भावात्मक एवं कल्पनात्मक विकास करता है
शिक्षण सहायक सामग्री की विशेषता
1. यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रभावशाली बनाता है
2. यह कक्षा में अधिगम संबंधित वातावरण का निर्माण करता है
3. यह कक्षा में छात्रों को सक्रिय एवं अनुशासित रखता है
4. इसके माध्यम से जटिल प्रकरणों को श्रद्धा से समझाया जा सकता है
5. इसके माध्यम सी कक्षा में उत्साह पूर्ण एवं रुचि पूर्ण वातावरण का निर्माण करता है
6. शिक्षण सहायक सामग्री की सहायता से शिक्षण अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को स्थायित्व प्रदान करता है
7. शिक्षण प्रक्रिया को अमूर्त से मूर्त रूप प्रदान करने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण भाग है
8. यह समस्त आइक्यू लेवल वाले छात्रों हेतु लाभदायक होता है
9. इसके माध्यम से छात्रों को कम समय में अधिक ज्ञान दिया जा सकता है
10. यह कक्षा में अध्यापक को सक्रिय रखने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
शिक्षण सहायक सामग्री की उपयोगिता
शिक्षा के क्षेत्र में एक उत्तम मार्ग है जिसके द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को विस्तारित व प्रदान किया जा सकता है यह छात्रों की स्मरण शक्ति का विकास करता है इसके माध्यम से ऐसे प्रकरणों को आसन समझाया जा सकता है जो अत्यंत जटिल एवं उलझन है
यह सामग्रियों ऐसे छात्रों के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होती है जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता फिर ऐसे छात्र जिनका बुद्धि स्तर बहुत निम्न है तब यह कक्षा में ऐसे छात्रों को सक्रिय एवं अनुशासित रखने का कार्य करता है जो कक्षा में अनुशासनहीनता का वातावरण करने का कार्य करते हैं
इस प्रक्रिया को क्रियान्वयन के समय अध्यापक सक्रिय रहता है जिससे अधिगम प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है और कक्षा में बैठा प्रत्येक छात्र उसमें अपनी सक्रिय भूमिका निभाता है यह अध्यापक को शिक्षण कार्यों के प्रति संतुष्टि प्रदान करने का कार्य करती है
संक्षेप में
शिक्षण सहायक सामग्री अध्यापक का वह साधन है जिसके माध्यम से वह अपने शिक्षण कार्य को रुचि पूर्ण एवं स्मरणीय बनाता है यह शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने का उत्तम मार्क है इसकी सहायता से कठिन प्रकरणों को सरलता से समझा जा सकता है शिक्षण अधिगम सामग्री तैयार करना या प्राप्त करना शिक्षण अधिगम सामग्री को विकलांग बच्चों के सीखने के कौशल को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए बढ़ाना चाहिए
शिक्षण अधिगम सामग्री को छात्रों और संकाय के बीच संपर्क को प्रोत्साहित करना चाहिए वास्तविकता और सहयोग विकसित करना चाहिए और सक्रिय सीखनी है त्वरित प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करना चाहिए कार्य पर समय पर जोर देना चाहिए उच्च उम्मीदों को संपर्क करना चाहिए और छात्रों में प्रतिभा और सीखने की विविधता का सम्मान करना चाहिए उपयोग की जाने वाली शिक्षण अधिगम सामग्री केवल बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिए बल्कि उनके अनुसार भी होनी चाहिए
बच्चे का बौद्धिक स्तर
बच्चे की उम्र
लिंग
संस्कृति
पारिवारिक पृष्ठभूमि
Teacher as an agent of change.(परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक)
शिक्षकों को समाज में परिवर्तन के एजेंट के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, जो अगली पीढ़ी के दिमाग, मूल्यों और व्यवहार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक का अर्थ है कि उनके पास छात्रों के शैक्षणिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को प्रभावित करने की शक्ति है।
आइए विस्तार से जानें कि शिक्षक परिवर्तन के एजेंट के रूप में कैसे काम कर सकते हैं:
शिक्षा और ज्ञान प्रसार: शिक्षक अपने छात्रों के बीच ज्ञान प्रदान करने और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और नवीनतम जानकारी प्रदान करके, शिक्षक छात्रों को उनके आसपास की दुनिया को समझने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से सशक्त बना सकते हैं। यह ज्ञान पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती दे सकता है, रूढ़िवादिता को ख़त्म कर सकता है और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा दे सकता है।
आलोचनात्मक सोच और पूछताछ को बढ़ावा देना: शिक्षकों के पास छात्रों में आलोचनात्मक सोच कौशल को विकसित करने का अवसर है। जानकारी और विचारों पर सवाल उठाने, विश्लेषण करने और मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित करके, शिक्षक स्वतंत्र विचार को बढ़ावा दे सकते हैं और छात्रों को कई दृष्टिकोणों से सामाजिक मुद्दों की जांच करने की क्षमता से लैस कर सकते हैं। यह छात्रों को यथास्थिति को चुनौती देने, सामाजिक मानदंडों के बारे में गंभीरता से सोचने और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
समावेशन और विविधता को बढ़ावा देना: शिक्षक कक्षा और स्कूल के वातावरण में समावेशन को बढ़ावा देने और विविधता को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे ऐसे समावेशी स्थान बना सकते हैं जो विविध पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और पहचान वाले छात्रों को महत्व और सम्मान दें। मतभेदों के लिए स्वीकृति, समझ और सराहना का माहौल बनाकर, शिक्षक भेदभाव और पूर्वाग्रह का मुकाबला कर सकते हैं, और अधिक न्यायसंगत और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
नागरिक सहभागिता और सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करना: शिक्षक छात्रों को अपने समुदायों में सक्रिय भागीदार बनने के लिए प्रेरित और प्रेरित कर सकते हैं। नागरिक सहभागिता, सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिक व्यवहार के महत्व पर जोर देकर, शिक्षक सहानुभूति, करुणा और दूसरों के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को स्थापित कर सकते हैं। यह छात्रों को सकारात्मक परिवर्तन का एजेंट बनने, सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने और समाज की बेहतरी में योगदान देने के लिए सशक्त बना सकता है।
सकारात्मक व्यवहार और मूल्यों का प्रतिरूपण: शिक्षक अपने छात्रों के लिए आदर्श के रूप में कार्य करते हैं। सत्यनिष्ठा, सहानुभूति, खुले विचारों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करके, शिक्षक छात्रों के दृष्टिकोण और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। जब शिक्षक सकारात्मक मूल्यों और नैतिक आचरण का मॉडल बनाते हैं, तो छात्रों में इन गुणों का अनुकरण करने और जिम्मेदार और दयालु व्यक्तियों के रूप में विकसित होने की अधिक संभावना होती है।
सुरक्षित और सहायक शिक्षण वातावरण बनाना: शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे सुरक्षित और सहायक शिक्षण वातावरण बनाएं जहां छात्र खुद को अभिव्यक्त करने और नए विचारों की खोज करने में सहज महसूस करें। खुले संवाद, सक्रिय रूप से सुनने और आपसी सम्मान को बढ़ावा देकर, शिक्षक सामाजिक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, छात्रों को अपने दृष्टिकोण साझा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और सहानुभूति और समझ की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं।
सहयोग और साझेदारी: शिक्षक परिवर्तन शुरू करने और लागू करने के लिए माता-पिता, प्रशासकों और सामुदायिक संगठनों सहित अन्य हितधारकों के साथ सहयोग कर सकते हैं। साझेदारी बनाकर, शिक्षक अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं और व्यापक सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने, स्कूल नीतियों में सुधार करने और शैक्षिक सुधारों की वकालत करने के लिए समर्थन का एक नेटवर्क बना सकते हैं।
शिक्षक शैक्षिक सेटिंग में लैंगिक मुद्दों को संबोधित करने में परिवर्तन के एजेंट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे शिक्षक लिंग के संबंध में परिवर्तन के एजेंट के रूप में काम कर सकते हैं:
लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देना: शिक्षक कक्षा के भीतर पारंपरिक लैंगिक रूढ़िवादिता को सक्रिय रूप से चुनौती दे सकते हैं और उन्हें बाधित कर सकते हैं। विविध रोल मॉडल को बढ़ावा देकर, लिंग मानदंडों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को प्रदर्शित करके, और गैर-पारंपरिक व्यवसायों या गतिविधियों में लोगों के उदाहरण प्रदान करके, शिक्षक छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक बना सकते हैं और उन्हें लिंग अपेक्षाओं पर सवाल उठाने और चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
समावेशी कक्षा वातावरण: शिक्षक एक समावेशी और सहायक कक्षा वातावरण बना सकते हैं जो सभी लिंगों का सम्मान और महत्व देता है। इसमें एक सुरक्षित स्थान को बढ़ावा देना शामिल है जहां छात्र अपनी लिंग पहचान या अभिव्यक्ति की परवाह किए बिना खुद को अभिव्यक्त करने में सहज महसूस करते हैं। शिक्षक समावेशी कक्षा नियम स्थापित कर सकते हैं, समान भागीदारी के अवसर सुनिश्चित कर सकते हैं और लिंग-संबंधी विषयों पर सम्मानजनक चर्चा को बढ़ावा दे सकते हैं।
पाठ्यक्रम और सामग्री: शिक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री का आलोचनात्मक मूल्यांकन और संशोधन कर सकते हैं कि वे लैंगिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं और विविध दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित करते हैं। इसमें लिंग-समावेशी भाषा को शामिल करना, साहित्य और संसाधनों को शामिल करना जो विविध लिंग पहचान और अनुभवों को चित्रित करते हैं, और विभिन्न विषय क्षेत्रों में लिंग-संबंधी विषयों को एकीकृत करना शामिल है।
लिंग-समावेशी भाषा और प्रथाएँ: शिक्षक लिंग-समावेशी भाषा और प्रथाओं के उपयोग को मॉडल और प्रोत्साहित कर सकते हैं। इसमें लिंग आधारित धारणाओं से बचना, उपयुक्त होने पर लिंग-तटस्थ शब्दों का उपयोग करना और छात्रों के पसंदीदा नामों और सर्वनामों का सम्मान करना शामिल है। शिक्षक स्कूल के माहौल में लिंग-समावेशी नीतियों, जैसे लिंग-तटस्थ शौचालय और ड्रेस कोड को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
लिंग-आधारित बदमाशी और उत्पीड़न को संबोधित करना: शिक्षक कक्षा और स्कूल के भीतर लिंग-आधारित बदमाशी और उत्पीड़न को सक्रिय रूप से संबोधित कर सकते हैं और रोक सकते हैं। इसमें ऐसे व्यवहारों के लिए शून्य-सहिष्णुता की नीति बनाना, सम्मानजनक रिश्तों और सहमति पर शिक्षा प्रदान करना और छात्रों के बीच सहानुभूति और समर्थन की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।
माता-पिता और परिवारों को शामिल करना: शिक्षक लिंग-संबंधी मुद्दों के बारे में बातचीत में माता-पिता और परिवारों को शामिल कर सकते हैं और एक सहायक और समावेशी शैक्षिक वातावरण बनाने के लिए उनके साथ सहयोग कर सकते हैं। लैंगिक समानता और समझ पर केंद्रित कार्यशालाओं, अभिभावक-शिक्षक बैठकों या पारिवारिक कार्यक्रमों का आयोजन करके, शिक्षक सकारात्मक बदलाव की दिशा में सामूहिक प्रयास को बढ़ावा दे सकते हैं।
व्यावसायिक विकास और प्रशिक्षण: शिक्षक लिंग-संबंधी विषयों पर व्यावसायिक विकास के अवसर और प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। यह लैंगिक मुद्दों के बारे में उनकी समझ को बढ़ा सकता है, उन्हें प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए रणनीतियों से लैस कर सकता है, और उन्हें नवीनतम शोध और सर्वोत्तम प्रथाओं पर अद्यतन रख सकता है।
अपनी कक्षाओं में लैंगिक मुद्दों को सक्रिय रूप से संबोधित करके, शिक्षक एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने में योगदान दे सकते हैं। वे छात्रों को रूढ़िवादिता को चुनौती देने, विविधता को अपनाने और सभी लिंगों के प्रति सम्मान बढ़ाने के लिए सशक्त बना सकते हैं। परिवर्तन के एजेंट के रूप में अपनी भूमिका के माध्यम से, शिक्षक एक ऐसी पीढ़ी को आकार देने में मदद कर सकते हैं जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है और लिंग-आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रहों को खत्म करने की दिशा में काम करती है।
Developing positive self concept and self esteem among girls.
एक सकारात्मक आत्म-अवधारणा का विकास करना
प्रत्येक युवा बच्चे में एक मजबूत आत्म-अवधारणा होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, उसे अपने बारे में अच्छा महसूस करने की ज़रूरत है; उसे खुद को पसंद करने और खुद को महत्व देने की जरूरत है - और अगर वह ऐसा नहीं करती है, तो वह पूरी तरह से दुखी होगी और उसमें आत्मविश्वास की कमी होगी। और जैसा कि आप पहले ही अपने बच्चों का पालन-पोषण करने या दूसरों का ध्यान रखने से सीख चुके होंगे, एक मजबूत आत्म-अवधारणा वाला बच्चा बाकियों से ऊपर खड़ा होता है।
वह वह है जो आत्मविश्वास के साथ नई चुनौतियों का बड़े उत्साह के साथ सामना करती है - ऐसा नहीं है कि वह मूर्ख या लापरवाह है, बस वह खुद पर विश्वास करती है और जो आवश्यक है उसे करने की अपनी क्षमता पर विश्वास करती है। वह अपने चेहरे पर मुस्कान रखने वाली भी है क्योंकि वह जीवन का पूरा आनंद लेती है; वह कई सामान्य, रोजमर्रा की बाधाओं का सामना करती है जो चिंता पैदा कर सकती हैं - जैसे कि नए दोस्तों से मिलना, नए खिलौनों और पहेलियों में महारत हासिल करना, जब वह आपके साथ हो तो एक नए खेल में भाग लेना - अपनी प्रगति में। इसीलिए आपके मन में बच्चों की आत्म-अवधारणा को बढ़ावा देना आपके पेशेवर अभ्यास का एक प्रमुख आयाम होना चाहिए।
एक बच्चे की आत्म-अवधारणा में तीन आवश्यक विशेषताएं शामिल होती हैं:
1.आत्मविश्वास. यह उनका विश्वास है कि वह अपने सामने आने वाली चुनौतियों को पूरा करने की क्षमता रखती हैं। नए सीखने के अनुभव एक आत्मविश्वासी बच्चे को चिंतित नहीं करते क्योंकि वह सोचता है कि उसके पास सामना करने के लिए आवश्यक कौशल हैं। आत्मविश्वास उत्साह पैदा करता है और उसकी प्रेरणा को मजबूत रखता है। प्रत्येक नई उपलब्धि उसके आत्मविश्वास को और भी अधिक बढ़ा देती है।
2.आत्मसम्मान. यही वह मूल्य है जो वह स्वयं रखती है। यदि उसका आत्म-सम्मान मजबूत है - दूसरे शब्दों में, यदि वह खुद को एक सार्थक व्यक्ति मानती है - तो उसे अपनी उपलब्धियों पर गर्व होगा, चाहे वे सामाजिक, बौद्धिक या भावनात्मक हों। सकारात्मक आत्मसम्मान का मतलब है कि वह अपने बारे में अच्छा महसूस करती है
3.स्व-छवि. बच्चा स्वयं को इसी प्रकार देखता है। आत्म-छवि इस बात से बहुत प्रभावित होती है कि दूसरे उसके प्रति किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। जब वह कोई कार्य पूरा करती है या किसी चुनौती का सामना करती है तो वयस्क अनुमोदन से उसकी आत्म-छवि में सुधार होता है। आपका समर्थन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएँ उसके स्वयं को देखने के तरीके पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
कमजोर आत्म-अवधारणा
और ऐसा नहीं है कि एक मजबूत आत्म-अवधारणा एक बच्चे के लिए अच्छी है - एक कमजोर आत्म-अवधारणा उसके लिए बुरी है। मनोवैज्ञानिक अनुसंधान इस बात की पुष्टि करता है कि खराब आत्म-अवधारणा वाला बच्चा:
•असफल होने की उम्मीद है. उसका निराशावादी रवैया उसे नई गतिविधियों को आजमाने से डरता है क्योंकि उसे उम्मीद है कि परिणाम विफलता होगा।
•दूसरों के साथ अधिक झगड़ा करना। उसकी आत्म-छवि इतनी नाजुक है कि वह अपने दोस्तों की मासूम टिप्पणियों से आसानी से परेशान हो जाती है।
•सीखने में कठिनाई होती है। उसे इतना यकीन है कि बाकी सभी लोग उससे ज्यादा होशियार हैं, इसलिए वह शुरुआत करने से पहले ही हार मान लेती है।
•अपने बारे में भयानक बातें कहती है। वह लोगों को यह बताने के लिए दौड़ती है कि वह हर चीज़ में कितनी ख़राब है, और अपनी उपलब्धियों की आलोचना करती है जैसे कि वे बेकार हैं।
एक ख़राब आत्म-अवधारणा एक बच्चे को उसके रोजमर्रा के जीवन के सभी पहलुओं के साथ एक कठिन संघर्ष कराती है। अपने साथियों की तुलना में, वह बहुत कम मौज-मस्ती करती है, अधिक तनावग्रस्त है और उसके कम दोस्त हैं। इस तरह कहें तो, आप अपने मन में बच्चों को अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करने के महत्व को देख सकते हैं। सौभाग्य से आप मदद के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।
उम्र और चरण
चार साल से कम उम्र के बच्चों का एक उल्लेखनीय गुण यह है कि उनकी आत्म-अवधारणा आश्चर्यजनक रूप से अच्छी होती है। सच है, शर्मीलेपन के प्रसंग आते हैं और कभी-कभी नई स्थितियों का डर भी होता है, लेकिन आम तौर पर एक छोटा बच्चा खुद से और अपनी क्षमताओं से बहुत संतुष्ट होता है। वह आराम से खेलती है, और किसी भी छोटी-मोटी जलन और परेशानी से जल्दी ठीक हो जाती है।
हालाँकि, अगले कुछ वर्षों में स्थिति बदल जाती है। जब वह लगभग पाँच वर्ष की हो जाती है, तो आप पाएंगे कि कई कारणों से उसका आत्मविश्वास कम हो गया है। सबसे पहले, यह उस समय से मेल खाता है जब वह अपने गुणों की तुलना अन्य बच्चों से करना शुरू कर देती है - यह एहसास कि वह हर चीज में सर्वश्रेष्ठ नहीं है, उसके आत्मसम्मान के लिए एक गंभीर झटका हो सकता है। दूसरा, उसके सामाजिक खेल का स्तर अब अधिक परिपक्व है, जिससे उसके खेलों की जटिलता बढ़ जाती है। इस उम्र में बच्चों के खेल बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, जिनमें विजेता और हारने वाले होते हैं; हर समय हारते रहने से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ने की संभावना नहीं है। और तीसरा, जब वह स्कूल जाना शुरू करती है तो उसकी सीखने की क्षमताओं को माइक्रोस्कोप के तहत रखा जाता है। इन प्रभावों का संयोजन उसकी आत्म-अवधारणा को अत्यधिक असुरक्षित बना देता है।
इसके साथ ही आत्म-दोष की अवधारणा भी आती है। एक बच्चे के बारे में कष्टप्रद चीजों में से एक यह है कि वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करती है कि यह उसकी गलती है। वह या तो दुर्व्यवहार से पूरी तरह इनकार करती है, रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी अपनी बेगुनाही पर जोर देती है, या वह किसी और पर उंगली उठाती है (शायद आपको लगता है कि अन्य बच्चों में से एक) यह दावा करते हुए कि वह जिम्मेदार है, वह नहीं। छोटे बच्चे दोष स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हालाँकि, कुछ वर्षों के भीतर, बच्चा अपनी असफलताओं को स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है। जबकि एक तीन साल की बच्ची इस बात के लिए कालीन को दोषी ठहरा सकती है कि वह दूध का गिलास ले जाते समय फिसल गई, वहीं पांच साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे के यह स्वीकार करने की अधिक संभावना है कि यह उसकी गलती थी।
दृष्टिकोण और आत्म-समझ में इस बदलाव के साथ कठिनाई यह है कि यह कमजोर आत्म-अवधारणा को जन्म दे सकता है। एक बच्चा आसानी से लगातार घटते आत्मविश्वास के चक्र में फंस सकता है, क्योंकि उसकी उपलब्धियों की कमी से उसका खुद पर विश्वास कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह अगली बार प्रयास करने के लिए कम इच्छुक हो जाता है। इस उम्र के बच्चे छोटे बच्चे के अटूट आत्मविश्वास की तुलना में अपनी असफलताओं को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियां इस प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
क्या करें
आपके मन में किसी बच्चे की आत्म-अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं, चाहे वह किसी भी उम्र का हो:
•उसे विशेष महसूस कराएं। आप उसके हर काम में दिलचस्पी लेकर, उसे यह बताकर कि आप उसकी प्रगति से कितने खुश हैं और जब भी संभव हो उसके साथ समय बिताकर उसका आत्मसम्मान बढ़ा सकते हैं।
•उसकी ताकतों को इंगित करें. जब भी उसका आत्मविश्वास कम हो जाए क्योंकि उसे लगता है कि वह उतनी सक्षम नहीं है जितना वह बनना चाहती है, तो उसे उसकी सभी सकारात्मक विशेषताओं, जैसे कि उसके सुखद व्यक्तित्व या उसके अच्छे हास्य की याद दिलाएं।
•यथार्थवादी अपेक्षाएँ रखें। एक बच्चे की संभावित उपलब्धियों की सीमाएँ होती हैं। आपकी व्यावसायिक चुनौती उन लक्ष्यों की यथार्थवादी अपेक्षाएँ रखना है जिन्हें वह प्राप्त कर सकती है और उसे इन लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास रखने के लिए प्रोत्साहित करना है।
•चुनौतियों को छोटे-छोटे चरणों में बाँटें। एक बड़ा काम एक बच्चे के लिए अद्भुत लग सकता है, इसलिए उसे दिखाएं कि इसे कई छोटे चरणों में कैसे विभाजित किया जाए, उदाहरण के लिए अगर वह एक समय में एक कोने को सुलझाती है तो कमरे को साफ करना आसान होता है। इससे उसे सफलता हासिल करने में मदद मिलती है।
•उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। जिस बच्चे का जीवन आप सोचते हैं, वह आपको सरल लग सकता है, लेकिन हो सकता है कि यह उसके लिए वैसा न दिखे। उसके द्वारा व्यक्त किए गए किसी भी आत्म-संदेह को सुनें, उन्हें गंभीरता से लें और फिर उसे आश्वस्त करें।
•प्रयास की प्रशंसा करें, परिणाम की नहीं। एक बच्चे के लिए केवल सफलता या विफलता पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आसान है। फिर भी उस प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना भी सहायक है जिसके कारण ये परिणाम प्राप्त हुए। एक बच्चे की आत्म-अवधारणा तब मजबूत होती है जब उसे लगता है कि आप उसके प्रयासों को महत्व देते हैं, न कि केवल परिणाम को।
•उसे बताएं कि आप उसे कितना पसंद करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चा किस उम्र का है, उसे यह सुनना अच्छा लगता है कि आप सोचते हैं कि वह बहुत बढ़िया है - और वह है। वह यह सुनकर कभी नहीं थकेगी कि आप कितने प्रसन्न हैं कि उसने ऐसा किया या वैसा किया, या यह सुनकर कि आप उसके बारे में सोचते हैं कि वह एक प्यारी बच्ची है, वह कभी नहीं थकेगी।
Unit-1
Teaching learning material
शिक्षण सहायक सामग्री
(परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक)
शिक्षकों को समाज में परिवर्तन के एजेंट के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, जो अगली पीढ़ी के दिमाग, मूल्यों और व्यवहार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक का अर्थ है कि उनके पास छात्रों के शैक्षणिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को प्रभावित करने की शक्ति है।आइए विस्तार से जानें कि शिक्षक परिवर्तन के एजेंट के रूप में कैसे काम कर सकते हैं:
शिक्षा और ज्ञान प्रसार: शिक्षक अपने छात्रों के बीच ज्ञान प्रदान करने और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और नवीनतम जानकारी प्रदान करके, शिक्षक छात्रों को उनके आसपास की दुनिया को समझने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से सशक्त बना सकते हैं। यह ज्ञान पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती दे सकता है, रूढ़िवादिता को ख़त्म कर सकता है और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा दे सकता है।
आलोचनात्मक सोच और पूछताछ को बढ़ावा देना: शिक्षकों के पास छात्रों में आलोचनात्मक सोच कौशल को विकसित करने का अवसर है। जानकारी और विचारों पर सवाल उठाने, विश्लेषण करने और मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित करके, शिक्षक स्वतंत्र विचार को बढ़ावा दे सकते हैं और छात्रों को कई दृष्टिकोणों से सामाजिक मुद्दों की जांच करने की क्षमता से लैस कर सकते हैं। यह छात्रों को यथास्थिति को चुनौती देने, सामाजिक मानदंडों के बारे में गंभीरता से सोचने और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
समावेशन और विविधता को बढ़ावा देना: शिक्षक कक्षा और स्कूल के वातावरण में समावेशन को बढ़ावा देने और विविधता को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे ऐसे समावेशी स्थान बना सकते हैं जो विविध पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और पहचान वाले छात्रों को महत्व और सम्मान दें। मतभेदों के लिए स्वीकृति, समझ और सराहना का माहौल बनाकर, शिक्षक भेदभाव और पूर्वाग्रह का मुकाबला कर सकते हैं, और अधिक न्यायसंगत और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
नागरिक सहभागिता और सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करना: शिक्षक छात्रों को अपने समुदायों में सक्रिय भागीदार बनने के लिए प्रेरित और प्रेरित कर सकते हैं। नागरिक सहभागिता, सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिक व्यवहार के महत्व पर जोर देकर, शिक्षक सहानुभूति, करुणा और दूसरों के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को स्थापित कर सकते हैं। यह छात्रों को सकारात्मक परिवर्तन का एजेंट बनने, सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने और समाज की बेहतरी में योगदान देने के लिए सशक्त बना सकता है।
सकारात्मक व्यवहार और मूल्यों का प्रतिरूपण: शिक्षक अपने छात्रों के लिए आदर्श के रूप में कार्य करते हैं। सत्यनिष्ठा, सहानुभूति, खुले विचारों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करके, शिक्षक छात्रों के दृष्टिकोण और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। जब शिक्षक सकारात्मक मूल्यों और नैतिक आचरण का मॉडल बनाते हैं, तो छात्रों में इन गुणों का अनुकरण करने और जिम्मेदार और दयालु व्यक्तियों के रूप में विकसित होने की अधिक संभावना होती है।
सुरक्षित और सहायक शिक्षण वातावरण बनाना: शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे सुरक्षित और सहायक शिक्षण वातावरण बनाएं जहां छात्र खुद को अभिव्यक्त करने और नए विचारों की खोज करने में सहज महसूस करें। खुले संवाद, सक्रिय रूप से सुनने और आपसी सम्मान को बढ़ावा देकर, शिक्षक सामाजिक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, छात्रों को अपने दृष्टिकोण साझा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और सहानुभूति और समझ की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं।
सहयोग और साझेदारी: शिक्षक परिवर्तन शुरू करने और लागू करने के लिए माता-पिता, प्रशासकों और सामुदायिक संगठनों सहित अन्य हितधारकों के साथ सहयोग कर सकते हैं। साझेदारी बनाकर, शिक्षक अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं और व्यापक सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने, स्कूल नीतियों में सुधार करने और शैक्षिक सुधारों की वकालत करने के लिए समर्थन का एक नेटवर्क बना सकते हैं।
शिक्षक शैक्षिक सेटिंग में लैंगिक मुद्दों को संबोधित करने में परिवर्तन के एजेंट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे शिक्षक लिंग के संबंध में परिवर्तन के एजेंट के रूप में काम कर सकते हैं:
लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देना: शिक्षक कक्षा के भीतर पारंपरिक लैंगिक रूढ़िवादिता को सक्रिय रूप से चुनौती दे सकते हैं और उन्हें बाधित कर सकते हैं। विविध रोल मॉडल को बढ़ावा देकर, लिंग मानदंडों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को प्रदर्शित करके, और गैर-पारंपरिक व्यवसायों या गतिविधियों में लोगों के उदाहरण प्रदान करके, शिक्षक छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक बना सकते हैं और उन्हें लिंग अपेक्षाओं पर सवाल उठाने और चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
समावेशी कक्षा वातावरण: शिक्षक एक समावेशी और सहायक कक्षा वातावरण बना सकते हैं जो सभी लिंगों का सम्मान और महत्व देता है। इसमें एक सुरक्षित स्थान को बढ़ावा देना शामिल है जहां छात्र अपनी लिंग पहचान या अभिव्यक्ति की परवाह किए बिना खुद को अभिव्यक्त करने में सहज महसूस करते हैं। शिक्षक समावेशी कक्षा नियम स्थापित कर सकते हैं, समान भागीदारी के अवसर सुनिश्चित कर सकते हैं और लिंग-संबंधी विषयों पर सम्मानजनक चर्चा को बढ़ावा दे सकते हैं।
पाठ्यक्रम और सामग्री: शिक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री का आलोचनात्मक मूल्यांकन और संशोधन कर सकते हैं कि वे लैंगिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं और विविध दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित करते हैं। इसमें लिंग-समावेशी भाषा को शामिल करना, साहित्य और संसाधनों को शामिल करना जो विविध लिंग पहचान और अनुभवों को चित्रित करते हैं, और विभिन्न विषय क्षेत्रों में लिंग-संबंधी विषयों को एकीकृत करना शामिल है।
लिंग-समावेशी भाषा और प्रथाएँ: शिक्षक लिंग-समावेशी भाषा और प्रथाओं के उपयोग को मॉडल और प्रोत्साहित कर सकते हैं। इसमें लिंग आधारित धारणाओं से बचना, उपयुक्त होने पर लिंग-तटस्थ शब्दों का उपयोग करना और छात्रों के पसंदीदा नामों और सर्वनामों का सम्मान करना शामिल है। शिक्षक स्कूल के माहौल में लिंग-समावेशी नीतियों, जैसे लिंग-तटस्थ शौचालय और ड्रेस कोड को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
लिंग-आधारित बदमाशी और उत्पीड़न को संबोधित करना: शिक्षक कक्षा और स्कूल के भीतर लिंग-आधारित बदमाशी और उत्पीड़न को सक्रिय रूप से संबोधित कर सकते हैं और रोक सकते हैं। इसमें ऐसे व्यवहारों के लिए शून्य-सहिष्णुता की नीति बनाना, सम्मानजनक रिश्तों और सहमति पर शिक्षा प्रदान करना और छात्रों के बीच सहानुभूति और समर्थन की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।
माता-पिता और परिवारों को शामिल करना: शिक्षक लिंग-संबंधी मुद्दों के बारे में बातचीत में माता-पिता और परिवारों को शामिल कर सकते हैं और एक सहायक और समावेशी शैक्षिक वातावरण बनाने के लिए उनके साथ सहयोग कर सकते हैं। लैंगिक समानता और समझ पर केंद्रित कार्यशालाओं, अभिभावक-शिक्षक बैठकों या पारिवारिक कार्यक्रमों का आयोजन करके, शिक्षक सकारात्मक बदलाव की दिशा में सामूहिक प्रयास को बढ़ावा दे सकते हैं।
व्यावसायिक विकास और प्रशिक्षण: शिक्षक लिंग-संबंधी विषयों पर व्यावसायिक विकास के अवसर और प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। यह लैंगिक मुद्दों के बारे में उनकी समझ को बढ़ा सकता है, उन्हें प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए रणनीतियों से लैस कर सकता है, और उन्हें नवीनतम शोध और सर्वोत्तम प्रथाओं पर अद्यतन रख सकता है।
अपनी कक्षाओं में लैंगिक मुद्दों को सक्रिय रूप से संबोधित करके, शिक्षक एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने में योगदान दे सकते हैं। वे छात्रों को रूढ़िवादिता को चुनौती देने, विविधता को अपनाने और सभी लिंगों के प्रति सम्मान बढ़ाने के लिए सशक्त बना सकते हैं। परिवर्तन के एजेंट के रूप में अपनी भूमिका के माध्यम से, शिक्षक एक ऐसी पीढ़ी को आकार देने में मदद कर सकते हैं जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है और लिंग-आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रहों को खत्म करने की दिशा में काम करती है।
Developing positive self concept and self esteem among girls.
एक सकारात्मक आत्म-अवधारणा का विकास करना
प्रत्येक युवा बच्चे में एक मजबूत आत्म-अवधारणा होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, उसे अपने बारे में अच्छा महसूस करने की ज़रूरत है; उसे खुद को पसंद करने और खुद को महत्व देने की जरूरत है - और अगर वह ऐसा नहीं करती है, तो वह पूरी तरह से दुखी होगी और उसमें आत्मविश्वास की कमी होगी। और जैसा कि आप पहले ही अपने बच्चों का पालन-पोषण करने या दूसरों का ध्यान रखने से सीख चुके होंगे, एक मजबूत आत्म-अवधारणा वाला बच्चा बाकियों से ऊपर खड़ा होता है।
वह वह है जो आत्मविश्वास के साथ नई चुनौतियों का बड़े उत्साह के साथ सामना करती है - ऐसा नहीं है कि वह मूर्ख या लापरवाह है, बस वह खुद पर विश्वास करती है और जो आवश्यक है उसे करने की अपनी क्षमता पर विश्वास करती है। वह अपने चेहरे पर मुस्कान रखने वाली भी है क्योंकि वह जीवन का पूरा आनंद लेती है; वह कई सामान्य, रोजमर्रा की बाधाओं का सामना करती है जो चिंता पैदा कर सकती हैं - जैसे कि नए दोस्तों से मिलना, नए खिलौनों और पहेलियों में महारत हासिल करना, जब वह आपके साथ हो तो एक नए खेल में भाग लेना - अपनी प्रगति में। इसीलिए आपके मन में बच्चों की आत्म-अवधारणा को बढ़ावा देना आपके पेशेवर अभ्यास का एक प्रमुख आयाम होना चाहिए।
एक बच्चे की आत्म-अवधारणा में तीन आवश्यक विशेषताएं शामिल होती हैं:
1.आत्मविश्वास. यह उनका विश्वास है कि वह अपने सामने आने वाली चुनौतियों को पूरा करने की क्षमता रखती हैं। नए सीखने के अनुभव एक आत्मविश्वासी बच्चे को चिंतित नहीं करते क्योंकि वह सोचता है कि उसके पास सामना करने के लिए आवश्यक कौशल हैं। आत्मविश्वास उत्साह पैदा करता है और उसकी प्रेरणा को मजबूत रखता है। प्रत्येक नई उपलब्धि उसके आत्मविश्वास को और भी अधिक बढ़ा देती है।
2.आत्मसम्मान. यही वह मूल्य है जो वह स्वयं रखती है। यदि उसका आत्म-सम्मान मजबूत है - दूसरे शब्दों में, यदि वह खुद को एक सार्थक व्यक्ति मानती है - तो उसे अपनी उपलब्धियों पर गर्व होगा, चाहे वे सामाजिक, बौद्धिक या भावनात्मक हों। सकारात्मक आत्मसम्मान का मतलब है कि वह अपने बारे में अच्छा महसूस करती है
3.स्व-छवि. बच्चा स्वयं को इसी प्रकार देखता है। आत्म-छवि इस बात से बहुत प्रभावित होती है कि दूसरे उसके प्रति किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। जब वह कोई कार्य पूरा करती है या किसी चुनौती का सामना करती है तो वयस्क अनुमोदन से उसकी आत्म-छवि में सुधार होता है। आपका समर्थन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएँ उसके स्वयं को देखने के तरीके पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
कमजोर आत्म-अवधारणा
और ऐसा नहीं है कि एक मजबूत आत्म-अवधारणा एक बच्चे के लिए अच्छी है - एक कमजोर आत्म-अवधारणा उसके लिए बुरी है। मनोवैज्ञानिक अनुसंधान इस बात की पुष्टि करता है कि खराब आत्म-अवधारणा वाला बच्चा:
•असफल होने की उम्मीद है. उसका निराशावादी रवैया उसे नई गतिविधियों को आजमाने से डरता है क्योंकि उसे उम्मीद है कि परिणाम विफलता होगा।
•दूसरों के साथ अधिक झगड़ा करना। उसकी आत्म-छवि इतनी नाजुक है कि वह अपने दोस्तों की मासूम टिप्पणियों से आसानी से परेशान हो जाती है।
•सीखने में कठिनाई होती है। उसे इतना यकीन है कि बाकी सभी लोग उससे ज्यादा होशियार हैं, इसलिए वह शुरुआत करने से पहले ही हार मान लेती है।
•अपने बारे में भयानक बातें कहती है। वह लोगों को यह बताने के लिए दौड़ती है कि वह हर चीज़ में कितनी ख़राब है, और अपनी उपलब्धियों की आलोचना करती है जैसे कि वे बेकार हैं।
एक ख़राब आत्म-अवधारणा एक बच्चे को उसके रोजमर्रा के जीवन के सभी पहलुओं के साथ एक कठिन संघर्ष कराती है। अपने साथियों की तुलना में, वह बहुत कम मौज-मस्ती करती है, अधिक तनावग्रस्त है और उसके कम दोस्त हैं। इस तरह कहें तो, आप अपने मन में बच्चों को अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करने के महत्व को देख सकते हैं। सौभाग्य से आप मदद के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।
उम्र और चरण
चार साल से कम उम्र के बच्चों का एक उल्लेखनीय गुण यह है कि उनकी आत्म-अवधारणा आश्चर्यजनक रूप से अच्छी होती है। सच है, शर्मीलेपन के प्रसंग आते हैं और कभी-कभी नई स्थितियों का डर भी होता है, लेकिन आम तौर पर एक छोटा बच्चा खुद से और अपनी क्षमताओं से बहुत संतुष्ट होता है। वह आराम से खेलती है, और किसी भी छोटी-मोटी जलन और परेशानी से जल्दी ठीक हो जाती है।
हालाँकि, अगले कुछ वर्षों में स्थिति बदल जाती है। जब वह लगभग पाँच वर्ष की हो जाती है, तो आप पाएंगे कि कई कारणों से उसका आत्मविश्वास कम हो गया है। सबसे पहले, यह उस समय से मेल खाता है जब वह अपने गुणों की तुलना अन्य बच्चों से करना शुरू कर देती है - यह एहसास कि वह हर चीज में सर्वश्रेष्ठ नहीं है, उसके आत्मसम्मान के लिए एक गंभीर झटका हो सकता है। दूसरा, उसके सामाजिक खेल का स्तर अब अधिक परिपक्व है, जिससे उसके खेलों की जटिलता बढ़ जाती है। इस उम्र में बच्चों के खेल बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, जिनमें विजेता और हारने वाले होते हैं; हर समय हारते रहने से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ने की संभावना नहीं है। और तीसरा, जब वह स्कूल जाना शुरू करती है तो उसकी सीखने की क्षमताओं को माइक्रोस्कोप के तहत रखा जाता है। इन प्रभावों का संयोजन उसकी आत्म-अवधारणा को अत्यधिक असुरक्षित बना देता है।
इसके साथ ही आत्म-दोष की अवधारणा भी आती है। एक बच्चे के बारे में कष्टप्रद चीजों में से एक यह है कि वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करती है कि यह उसकी गलती है। वह या तो दुर्व्यवहार से पूरी तरह इनकार करती है, रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी अपनी बेगुनाही पर जोर देती है, या वह किसी और पर उंगली उठाती है (शायद आपको लगता है कि अन्य बच्चों में से एक) यह दावा करते हुए कि वह जिम्मेदार है, वह नहीं। छोटे बच्चे दोष स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हालाँकि, कुछ वर्षों के भीतर, बच्चा अपनी असफलताओं को स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है। जबकि एक तीन साल की बच्ची इस बात के लिए कालीन को दोषी ठहरा सकती है कि वह दूध का गिलास ले जाते समय फिसल गई, वहीं पांच साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे के यह स्वीकार करने की अधिक संभावना है कि यह उसकी गलती थी।
दृष्टिकोण और आत्म-समझ में इस बदलाव के साथ कठिनाई यह है कि यह कमजोर आत्म-अवधारणा को जन्म दे सकता है। एक बच्चा आसानी से लगातार घटते आत्मविश्वास के चक्र में फंस सकता है, क्योंकि उसकी उपलब्धियों की कमी से उसका खुद पर विश्वास कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह अगली बार प्रयास करने के लिए कम इच्छुक हो जाता है। इस उम्र के बच्चे छोटे बच्चे के अटूट आत्मविश्वास की तुलना में अपनी असफलताओं को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियां इस प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
क्या करें
आपके मन में किसी बच्चे की आत्म-अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं, चाहे वह किसी भी उम्र का हो:
•उसे विशेष महसूस कराएं। आप उसके हर काम में दिलचस्पी लेकर, उसे यह बताकर कि आप उसकी प्रगति से कितने खुश हैं और जब भी संभव हो उसके साथ समय बिताकर उसका आत्मसम्मान बढ़ा सकते हैं।
•उसकी ताकतों को इंगित करें. जब भी उसका आत्मविश्वास कम हो जाए क्योंकि उसे लगता है कि वह उतनी सक्षम नहीं है जितना वह बनना चाहती है, तो उसे उसकी सभी सकारात्मक विशेषताओं, जैसे कि उसके सुखद व्यक्तित्व या उसके अच्छे हास्य की याद दिलाएं।
•यथार्थवादी अपेक्षाएँ रखें। एक बच्चे की संभावित उपलब्धियों की सीमाएँ होती हैं। आपकी व्यावसायिक चुनौती उन लक्ष्यों की यथार्थवादी अपेक्षाएँ रखना है जिन्हें वह प्राप्त कर सकती है और उसे इन लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास रखने के लिए प्रोत्साहित करना है।
•चुनौतियों को छोटे-छोटे चरणों में बाँटें। एक बड़ा काम एक बच्चे के लिए अद्भुत लग सकता है, इसलिए उसे दिखाएं कि इसे कई छोटे चरणों में कैसे विभाजित किया जाए, उदाहरण के लिए अगर वह एक समय में एक कोने को सुलझाती है तो कमरे को साफ करना आसान होता है। इससे उसे सफलता हासिल करने में मदद मिलती है।
•उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। जिस बच्चे का जीवन आप सोचते हैं, वह आपको सरल लग सकता है, लेकिन हो सकता है कि यह उसके लिए वैसा न दिखे। उसके द्वारा व्यक्त किए गए किसी भी आत्म-संदेह को सुनें, उन्हें गंभीरता से लें और फिर उसे आश्वस्त करें।
•प्रयास की प्रशंसा करें, परिणाम की नहीं। एक बच्चे के लिए केवल सफलता या विफलता पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आसान है। फिर भी उस प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना भी सहायक है जिसके कारण ये परिणाम प्राप्त हुए। एक बच्चे की आत्म-अवधारणा तब मजबूत होती है जब उसे लगता है कि आप उसके प्रयासों को महत्व देते हैं, न कि केवल परिणाम को।
•उसे बताएं कि आप उसे कितना पसंद करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चा किस उम्र का है, उसे यह सुनना अच्छा लगता है कि आप सोचते हैं कि वह बहुत बढ़िया है - और वह है। वह यह सुनकर कभी नहीं थकेगी कि आप कितने प्रसन्न हैं कि उसने ऐसा किया या वैसा किया, या यह सुनकर कि आप उसके बारे में सोचते हैं कि वह एक प्यारी बच्ची है, वह कभी नहीं थकेगी।
Meaning of Sex And Gender
Gender (लिंग):-
जेंडर शब्द का संबंध प्रारंभ मेंलिंग अर्थात
स्त्रीलिंग और पुल्लिंग से रहा है।
अन्य भाषाओं में जेंडर विभाजन की
इस प्रक्रिया केतीन रूप हैं:-
स्त्रीलिंग पुलिंग वह नपुंसक लिंग
का प्रयोग मिलता हैं।
हिंदी में स्त्रीलिंग व पुलिंग केवल
दो रूपों में प्रयोग मिलता है।
वही वैदिक संस्कृति मेंदेखते हैं तो एक
तीसरा लिंग नपुंसक लिंग या उभयलिंगी का प्रयोग भी किया
जाता है।पश्चिम में तीसरे
Netural gender विभाजन का
आधार स्त्री व पुरुषत्व
के समाज में निर्धारितगुना से अलग
स्वतंत्रपहचानका होना
था।स्त्री व पुरुषत्व शब्द के प्रयोगके संदर्भ
में अरस्तुने कहा:-
हा ग्रीक विचारकप्रोटोकॉल ने ही भाषा में
स्त्री व पुरुष और Netural gender
का प्रयोगसंज्ञा के वर्गीकरण के
संदर्भ में किया है।
भारत में जेंडर की यह विभाजन प्रक्रिया
व्यवहार मुल्क थी
जैसा कीचार्ल्स hoket ने कहा है
शब्दों के व्यवहार के आधार पर संज्ञा का
वर्गीकृत विभाजन जेंडर है।
भाषा के संदर्भ में भले ही जेंडर का प्रयोग
शब्दों के व्यवहार मुल्क
प्रयोग पर आधारित है। लेकिन सामाजिक
संदर्भों को भी भाषा से
अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
लिंग की अवधारणा
लिंग का अर्थ जैविक और भौतिक विशेषताओं से है।
शारीरिक
लक्षणों के आधार पर इसमें भेद किया जाता है।
जैसे क्रोमोसोम गुणसूत्र,
हार्मोंस और जनन अंग।
यह एक जैविक भौतिक व प्राकृतिक तथ्य है
अंतर से है।
जेंडर:-
यह सामाजिक सांस्कृतिक तथ्य है जो सामाजिक
निर्माण है।
यह स्थाई
नहीं है गतिशील है जैसे सामाजिक राजनीतिक
आर्थिक ऐतिहासिक
आदि ऐसेकई कारक हैं जो उसकी गतिशीलता
को निर्धारितकरते हैं।
जेंडर आधारित वर्गीकरण का आधार
शर्म महिलाओं के लिए वांछित है
और कौन सा पुरुषों के लिए बाधित है।
प्रत्येक समाज पुरुष व स्त्री से
अलग व्यवहार की आशा करता है उनकी
भूमिकाओं क्रियो एवं
गतिविधियों में अंतर पाया जाता है।
समाज शास्त्री भाषा में जेंडर की भूमिका
उन व्यवहारों
प्रतिमानों से है जो विभिन्न संस्कृतियों में लिंग के अनुरूप हैं।
जेंडर शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के जींनस (gens)
से बना है।
Gens - 1. प्रकार (kinds)
2. आधारित (work)
यह वह वर्ग है जिससे समाज की लिंग आधारित
मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
जेंडर समाज में पुरुषों व महिलाओं के कार्यों व उन
के व्यवहारों को
परिभाषित करता है जबकि लिंग पुरुष और महिला अतः
जनरल को
मानव निर्मित अवधारणा के रूप में समझता है
जबकि लिंग मनुष्य की
प्राकृतिक या जैविक अवस्था है।
लिंग अध्ययन की प्रमुख अवधारणा:-
एक शीशु या तो पुरुष या स्त्री के रूप में पैदा होता है।
हम किसी प्रकार पुरुष या स्त्री में भेद करते हैं
लिंग को जैविक या
संदर्भ में परिभाषित कर सकते हैं तथा यह कह सकते हैं
कि दोनों
लिंग में काफी जैविक के अंतर पाए जाते हैं
इस प्रकार लिंग एक द्विलिंगी
तंत्र है जिसमें दो प्रकार के विकल्प (पुरुष और स्त्री)
सामान्यतःमौजूद
होते हैं। हमें सभी के दिमाग में सामान्य रूप से
स्त्री तथा पुरुष के
अलग-अलग व्यवहार ,जीवन की उसे तस्वीर को
हमारे सामने रखती
है जिसमें जीवन के अनुभव तथा पालन पोषण के
तरीकों से प्रगति
होती रहती है तथा संस्कृति दर संस्कृति इसे
सुरक्षित व सुरक्षित
किया जाता है यह तस्वीर मनुष्य की मानसिकता
में गहरीकहीं दबे रहती है।
लिंग एक जैविक शब्दावली है जो स्त्री और पुरुष
में जैविक
भेद को प्रदर्शित करती है वहीं जेंडर शब्द स्त्री और पुरुष
के बीच
सामाजिक भेदभाव को प्रदर्शित करता है कि जैविक भेद के
अतिरिक्त जितने भी दिखाते हैं वह प्राकृतिक में
होकर समाज
द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
जेंडर एक समय में एक विशेष आयाम जैसे महिला
अथवा पुरुष से
संबंधित आर्थिक सामाजिक और संस्कृति के अवसरों
को प्रदर्शित
करता है। कई देशों में यही माना जाता है
की लिंग द्वारा ही पुरुष को
संदर्भित करकेकिया जाता है महिलाओं के लिए
घरेलू काम और पुरुषों
के लिए बाहरी कम जेंडर की सामाजिकता अस्मिता
से जुड़ा है परंतु
लिंग मनुष्य के शरीर मात्र से संबंधित होता है।
जेंडर एक मानसिक
संरचना है परंतु लिंग एक शारीरिक संरचना है।
जेंडर का जुड़ाव सामाजिक पक्ष से हैजबकि लिंग का
शरीर के रूप में आकर का प्रतिनिधित्व करना है
जेंडर मनोवैज्ञानिक है। इसकी अभिव्यक्ति सामाजिक है
परंतु लिंग संरचनात्मक प्रारूप को डालने किए हुए हैं।
मांस पेट मिड के अनुसार
अनेक संस्कृतियों में नारीत्व और पुरुष
तत्व को विभिन्न ढंग से समझा जाता रहा है
जैसेजन्म से ही महिलाओं और पुरुषों के मध्य
कुछ विशेष तरीके से भेद करने का प्रयास आरंभ
कर दिया जाता है तथाउसे अंतर को जीवन भर रखा
जाता है।
कम्युनिस्ट के अनुसार
जेंडर सामाजिक लिंग को स्त्री पुरुष भेदभाव के
सामाजिक संगठन अथवा स्त्री तथा पुरुष के मध्य
आसमान संबंधों की व्यवस्था के रूप में परिभाषित
किया जा सकता है।
लिंग एक जैविक या अवधारणा हैअन् ओकला
ने अपनी पुस्तक sex sender and bocity
1972 मैं लिंग को परिभाषित किया।
लिंग का तात्पर्य पुरुष तथा स्त्रियों के
जैविक विभाजन से है यहां तक की संसार
में सभी जीवों को जैविक या आधार परदो
वर्गोंमादा तथा नर में बांटा गया है।
1968 में सुलामी फायरस्टोन की डायलिटिक
सेक्स समय1971 में jullet mistail ki “woman book “
“ग गर्णक” अपनी पुस्तकमें रहती है कि जेंडर
एक ऐसा मुखौटा विश तथा कवच है जिसमें स्त्री
वह पुरुष एक आसमान नृत्य करते हैं।
एलन वॉलफ ने पाया कि सभी प्रकार के समूह मेंजिसमें
एक दूसरे के साथ गलत व्यवहार किया उसमें सबसे अधिक
गहराई तक पुरुषों ने महिलाओं को अधीन किया है।
लर्नर रहती है कि महिलाओं की अन्य सभी प्रकार की
अधीनताओं से अधिक प्राथमिक है एवं अन्य सभी वाद
जैसे जातिवाद वर्गवाद आदि वादों से सेक्सीजम है जिसे नष्ट किया जाना चाहिए
लिंग भेद स्त्री तथा पुरुष की शारीरिक बनावट में जैविक अंतर है जो प्राकृतिक होने के कारण सभी जगह और सभी समय एक समान होता है लेकिन जेंडर कामामला उन्हें भूमिकाओं का कार्यों से है जो समाज में स्त्री तथा पुरुषको अलग-अलग बनती है। वस्तुतः जेंडर की अवधारणा एक सामाजिक सांस्कृतिक निर्माण है जो समय एवं स्थान के साथ बदलती रहती है।
यह एक प्रकार की असमानता का परिचालक है। इसका आशय है कि अस्तित्व तथा लिंग है जबकि जेंडर स्त्रीयत है।जैसे नवजात शिशु को मां के द्वारा अपना दूध पिलाना अस्तित्व है जबकि उसे शिशु का शोध आदि साफ स्त्रीयत है।
इस अर्थ में प्रसिद्ध नारीत्व विचारक सिमो ने कहा है कि स्त्री पैदा नहीं होती थी बनाई जाती है।
भारत में अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे बचपन में इस सोच के कारण स्कूल नहीं भेजा जाता कि वह जाकर क्या करेगी लड़कियों को पढ़ाना इसलिए भी उचित नहीं समझा जाता की विवाह के पश्चात दूसरे परिवार के सदस्य बन जाएगी ।
लड़कियों को केवल घर के कामकाज के लायक समझा जाता था एक परिवार में लड़कों की उन्नति के बारे में जो सच है वह लड़कियों के बारे में नहीं है।टच परिवारों में लड़कियों ने यह महसूस करवाया जाता है की लड़कियां लड़कों की बराबरी न करें
भोजन में लालन-पालन में और सुरक्षा में सभी जगह इस भेदभाव को देखा जा सकता है परिवार का मुख्य सदस्य भी पुरुष होता है स्त्रियों को विकास के काम अवसर मिलते हैंमहत्वपूर्ण निर्णय में स्त्रियों की भूमिका काम होती है।
समाज के स्तर पर भी स्त्री तथा पुरुष में काफी भेदभाव दिखाई देता है जैसे स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को सामुदायिक कार्यों में नेतृत्व के अधिक अवसर दिए जाते हैं।
Unit-2
जेंडर का समाजीकरण
रूप हार्टले के अनुसार: -
जेंडर आधारित समाजीकरण कर हैं
प्रक्रियाओं द्वारा आधारित होता है:-
1 छलू आयोजन
22,धारा बस्ता ,
3,मौखिक संदेश
4 कार्यों से पहचान
जेंडर के सामाजिक कारण के
घटक जिनका प्रभाव पड़ता है:-
सांस्कृतिक
राजनीतिक
आर्थिक
वातावरण या पर्यावरणीय
जेंडर निर्माण
अनुकरण द्वारा
परिवर्तन द्वारा पुनर्बलन,
कार्यों की बंटवारे द्वारा
,खेलकूद के समाजीकरण के द्वारा चयन,
पहनावा,
भूमिकाएं और जिम्मेदारियां
स्वतंत्रता के बादपाठ्यक्रम निर्माण में जेंडर की भूमिका
पाठ्यक्रम निर्माण के समय उपयोगिताएं क्रिया के द्वारा पाठ्यक्रम को बालक तथा बालिका दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी बनाने हेतु पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनाने पर बोल दिया गया।पाठ्यक्रम निर्माण में जेंडर की अति महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा मनोविज्ञान में अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि शिक्षा मनोविज्ञान में प्रगति हो रही है उसी के साथ पाठ्यक्रम में बालकों के साथ बालिकाओं को समावेश करने पर बोल दिया गया है।
स्वतंत्रता के पश्चातराधाकृष्णन आयोग1948 से 50 , मुहालियार आयोग 1950कोठारी आयोग या शिक्षा आयोग 1964,शिक्षा नीति1986,हंसा मेहता समिति 1962 आदि नेअपने-अपने स्तर पर पाठ्यक्रम को बालक बालिकाओं दोनों के लिए उपयोगी बनाने के लिए सुझाव दिए।
हंसा मेहता समिति 1962:-
जनतंत्र एवं समाजवादी समाज में शिक्षा का संबंध व्यक्तिगत समानताओं,अभिवृत्तियों,रुचियांसे कोई संबंध नहीं है अतः ऐसे समझ में लिंग के आधार पर पाठ्यक्रम में अंतर करने की नई आवश्यकता नहीं है।
कोठारी शिक्षा आयोग 1962- 64
हमेंहंसा मेहता समिति की स्तुतियों से सहमति व्यक्त करते हैं यही कारण है कि हमने कक्षा 10 के अंत तक विद्यार्थियों के लिए सम्मान पाठ्यक्रम का प्रस्ताव देते हैं।
डॉ राजेंद्र प्रसाद:-
राजेंद्र प्रसाद प्रकृति और ईश्वर ने मानव जाति को स्थिर रखने का भार स्त्री पर रखा है और मनुष्य का सृजन पुरुष नहीं अपितु स्त्रियां ही कर सकती हैं। इस गौरवपूर्ण व विशिष्ट दायित्वस्त्रियों और समाज को समझ लेना चाहिए चाहे जो भी शिक्षा प्रणाली हो उसमें इसकी अनिवार्यता और गरिमा को ध्यान में रखें।
महात्मा गांधी:-
आधार रूप में स्त्री और पुरुष दोनों समान है यह बिल्कुल सत्य है कि शरीर की बनावट में महान विभेद है अतः पुरुषों एवं स्त्रियों की शिक्षा में इस प्रकार का अंतर किया जाना चाहिएजैसा कि स्वयं प्रकृति में किया है और दोनों के कर्तव्य भी भिन्न है।
लिंग और छिपी पाठ्यचर्या
छिपी हुई पाठ्यचर्याशिक्षा का एक निम्न प्रभाव है यह वह भाग है जिसे हमपढ़ना नहीं चाहते फिर भी विद्यार्थी इन्हें कक्षा कक्ष वह सामान्य वातावरण में मूल्य विश्वासों व नियमों के रूप में ग्रहण करता है।
यह विभिन्न प्रकार के समूचे परंपराओं विश्वासों एवं भाषा प्रारूपण में तथा संस्था के कार्यात्मक व संरचनात्मक व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जाता है ।
छिपी पाठ्यचर्या पारस्परिक जेंडर भूमिका में निम्न प्रकार से वृद्धि करता है
प्राथमिक व मिडिल विद्यालयों में महिला अध्यापक बच्चों को भलीभांति देखभाल कर सकती हैं
माध्यमिक सह शिक्षा विद्यालयों में उच्च स्तरीय शिक्षक में पुरुषों का अधिक प्रतिनिधित्व होना
विद्यालय की साफ सफाई अथवा समझ में साज सजावट के कार्यों में महिला शिक्षकों की अधिक भूमिका होना।
लैंगिक असमानता विद्यालय गणवेश से भी प्रकट होती है।
सामान्यतः देखने में आता है कि विज्ञान एवं गणित जैसे तकनीक की या अधिक कठिन माने जाने वाले विषय में लड़कियों की बजाय लड़कों को वरीयता देना।
अनेक चित्रों में महिलाओं को निष्क्रिय असहाय अथवा पुरुषों पर आश्रित दिखाना
वंचित समूह का चित्रण रूढ़िवाद धारणाओं के अनुसार होता है।
परिस्थितियों पत्रों का थाना को चित्रों और विषय वस्तुओं के संदर्भ में यदि हम पाठ्य पुस्तकों का विश्लेषण करें तो पुरुष पात्रों की उपस्थिति या दृश्यता लगभग 75 फीस दी होती है।
महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता या महिला आंदोलन का जिक्र कम नजर आता है।
पुरुषों को कहानियों कविताओं सैनिक समूह विद्यार्थी समूह आदि में अनेक बार दिखाया जाता है किंतु महिलाओं के सामूहिक कार्यों दैनिक कार्यों या सामाजिक जीवन को कम दिखाया जाता है।
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लिंग, यौन उत्पीड़न और कानूनी कार्यवाही
महिला उत्पीड़न हा:-
महिला उत्पीड़न से तात्पर्य है महिलाओं के प्रति हिंसा से है। महिलाओं के विरुद्ध किया जाने वाला हिंसक व्यवहारअत्याचार जो उसको शारीरिक व मानसिक रूप से आघात पहुंचता है। महिला उत्पीड़न कहलाता है।
महिला उत्पीड़न के प्रकार
बलात्कार,दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या,घरेलू हिंसा,अपहरण,यौन उत्पीड़न वह नीतिका व्यवहारआदि।
महिला उत्पीड़न का मुख्य उद्देश्य
इस उत्प्रेडन का मुख्य उद्देश्य धन प्राप्त करना है।
महिलाओं पर अधिकार प्राप्त करना है।
महिलाओं में यौन सुख प्राप्त करने के लिए शोषण करते हैं।
यौन उत्पीड़न के कारण
पुरुषों की प्रधानता
स्त्रियों का पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता होना
शिक्षा का अभाव होना
सामाजिक कूप्रथाएं होना
संचार माध्यमों के माध्यम से दिखाई जा रही नारी की छवि
उचित न्याय व्यवस्था का अभाव
प्रसव पूर्व निदान तकनीकी अधिनियम 1994
गर्भधारण पूर्व वह प्रसव पूर्व निदान तकनीकी अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियम है जिसे कन्या भ्रूण हत्या रोकने गिरते लिंग अनुपात को कम करनाप्रसव पूर्व लिंग से इनको प्रतिबंधित करने के लिए अधिनियमित किया गया था
कानूनी अपराध
किस अधिनियम के अंतर्गतगर्भधारणपूर्व या बाद में या जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना उसके लिए सहयोग देना या विज्ञापन करना कानूनी अपराध है जिसमें तीन से पांच वर्ष तक की खेल वह ₹100000 तक का जुर्माना हो सकता है।
दोनों समान (लड़का लड़की) समाज में जितने लड़के पैदा होते हैं उतनी ही लड़कियां भी जन्म देती है कुदरत में भी स्त्री और पुरुष कुछ जैविक या अंतर को छोड़कर जीवन की शान शक्तियां एवं समान अवसर प्रदान किए हैं किंतुसामुदायिक एवं सामाजिक व्यवहार से धीरे-धीरे पुरुषों की शक्ति अधिक प्रभावित हो जाती है।
वर्तमान स्थिति
भारत में स्त्रियों की स्थिति प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से बालिकाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है इस भेदभाव के परिणाम स्वरुप समाज में लड़कों को प्रमुखता तथा कन्या भ्रूण हत्याऔर छोटी-छोटी उम्र में ही बालिकाओं का विवाह हैऔर इसके साथ ही
पोषण स्वास्थ्य शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरत में भेदभाव देखा जाता है।
अधिनियम:-
भारत सरकार में स्पष्ट रूप से जन्म पूर्व लिंग परीक्षण के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया है और अधिनियम 1994लागू करके, भ्रूण जांच को कानूनी अपराध फहराया है।उपर्युक्त अधिनियम में संशोधन करके 2003 में इसका नाम गर्भधारण पूर्व व प्रसव पूर्व निदान तकनीकी या लिंग चयन पर प्रतिबंधअधिनियम 2003 रखा गया
प्रसव पूर्व निदान तकनीकी विनियमन
जहां गर्भधारण पूर्व वह परसों पूर्व निदान तकनीकी के संचालन की व्यवस्था है उन तकनीकों का उपयोग केवल निम्न विकारों की पहचान के लिए भी किया जा सकता है:-
गुणसूत्र संबंधी विकार,अनुवांशिकी रोग,जन्मजात की विकृतियां,रक्त संबंधी रोग, लिंग संबंधी आनुवंशी की रोग आदि।
किस अधिनियम के तहत यह व्यवस्थाहै कि चिकित्सक भले बंटी यह जांच करले की कोई गर्भवती महिला बरन की जांच की जाने वाली शर्तों को पूरा करती है या नहीं
प्रमुख शर्तें
गर्भवती स्त्री की उम्र है 35 वर्ष से अधिक हो।गर्भवती स्त्री के दो या अधिक स्वत गर्भपात हो चुके हो।
गर्भवती स्त्री नशीली दवा,शंकर संक्रमणया किसी आघातरसायन के संपर्क में रही हो जिससे बच्चे को खतरा हो।
जांच करने के लिए तकनीकी का सहारा
गर्भवती स्त्री या उसके पति की मानसिक स्थिरताजैसी किसी शारीरिक विकार या किसी अनुवांशिक रोग का पारिवारिक इतिहास है
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005
भारतीय संसद के द्वारा इस अधिनियम कोअनुमति13 दिसंबर 2005 को दी गईतथा इसकी शुरुआत 26 अक्टूबर 2005 को हुई।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का उद्देश्य
इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है।तथा पीड़ित महिला को विधिक सहायता प्रदान करना है।
महिला आरक्षण:-
वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया है।
यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
विधेयक की पृष्ठभूमि और आवश्यकता:-
महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल से ही की जाती रही है। चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी।
महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु किये गए प्रयास:
· 1996: पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया।
· 1998 - 2003: सरकार ने 4 अवसरों पर विधेयक पेश किया लेकिन पारित कराने में असफल रही।
· 2009: विभिन्न विरोधों के बीच सरकार ने विधेयक पेश किया।
· 2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्यसभा द्वारा पारित।
· 2014: विधेयक को लोकसभा में पेश किये जाने की उम्मीद थी।
