शिक्षा क्या है
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इस लेख में हम शिक्षा का अर्थ प्रकृति एवं उद्देश्य समझेंगे। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ शिक्षा का संकुचितार शिक्षा का व्यापक शिक्षा की परिभाषाएं एवं भारतीय दृष्टिकोण शिक्षा प्रकृति पर्दा शक्तियों की विकास की प्रक्रिया के रूप में आदि के बारे में विस्तार से अध्ययन करें ।
शिक्षा का अर्थ
संस्कृत भाषा में शिक्षा शब्द की उत्पत्ति "शिक्ष" धातु से हुई है। संस्कृत में शिक्ष धातु का प्रयोग सीखने ज्ञान ग्रहण करने तथा विद्या प्राप्त करने के अर्थ में किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है:- ज्ञान या विद्या प्राप्त करना।
संस्कृत भाषा में शिक्षा के सम्मान ही एक दूसरा शब्द विद्या है। विद्या शब्द की उत्पत्ति:- उस सीमा तक जान लेना जिससे आगे जानने को कुछ नए बचे अर्थात विद्याज्ञान या जानने की चरम सीमा है। शिक्षा तथा बिरधा में भी अंतर है। विद्या प्रमुख रूप से किसी न किसी विशिष्ट ज्ञान की अंतिम स्थिति कहलाती है जबकि शिक्षा ज्ञान का समग्र रूप है। इस अर्थ में विद्या शिक्षा का एक अंग है जबकि व्यक्ति शिक्षा के किसी एक अंग में ही विशेषता प्राप्त कर ले तो उसे उस क्षेत्र की विद्या कहा जाएगा।
शिक्षा का संकुचित अर्थ🥰👇
संकुचित अर्थ में शिक्षा का अर्थ उसे ज्ञान से है जिसे निश्चित योजना के अनुसार निश्चित प्रयासों से निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार दिया जाता है। सरल शब्दों में औपचारिक रूप से जब बालक को किसी चीज या वस्तु का ज्ञान करते हैं तो वह शिक्षा है। विद्यालय शिक्षा को ही हम संकुचित अर्थ में शिक्षा कहते हैं। संकुचित अर्थ में प्रयुक्त की जाने वाली शिक्षा से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह केवल सैद्धांतिक ही होता है इसका व्यावहारिक किया प्रायोगिक पक्ष नहीं होता है अर्थात विद्यालय महाविद्यालय विश्वविद्यालय में प्राप्त की जाने वाली शिक्षा को ही संकुचित शिक्षा कहा जाता है और इसी को संकीर्ण शिक्षा भी कहते हैं इस प्रकार की शिक्षा का प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की आंतरिक शक्तियों के विकास से कोई संबंध नहीं होता है। इस प्रकार की शिक्षा से केवल पुस्तक के ज्ञान होता है।
शिक्षा का व्यापक अर्थ
व्यापक अर्थ में शिक्षा के जिस रूप को लेते हैं उस बालक अपनी मां की गोद से बचपन के साथियों के साथ से खेल कूद के मैदान से सामाजिक जीवन से विद्यालय से मिलने से तमाशा से उत्सव से त्योहार से धार्मिक क्रियाकलापों से तथा इसी प्रकार के सैकड़ो औपचारिक तथा अनौपचारिक साधनों से प्राप्त करता है। इस प्रकार की शिक्षा केवल नेत्रों या कानों से ही नहीं अपितु बालक अपनी सभी ज्ञान इंद्रियों से प्राप्त करता है। इसी कारण यह शिक्षा व्यावहारिक तथा उपयोगी होती है।
मैकेंजी के अनुसार व्यापक शिक्षा
व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत जलती है जीवन का प्रत्येक अनुभव उसके भंडार में वृद्धि करता है।
शिक्षा की प्रकृति
शिक्षा को हम कई रूपों में देखते हैं यह रूप ही शिक्षा की प्रकृति कहलाती है हम शिक्षा को जिस रूप में देखेंगे शिक्षा की प्रकृति वैसी ही हो जाती है जैसे उपाधियों के रूप में शिक्षा। शिक्षण के रूप में शिक्षा। प्रशिक्षण के रूप में शिक्षा। सूचना के रूप में शिक्षा। अनुदेशन के रूप में शिक्षा। द्विध्रुवी तथा त्रि ध्रुवी पक्रिया के रूप में शिक्षा। साक्षरता के रूप में शिक्षा। विज्ञान और कल दोनों रूपों में शिक्षा।
शिक्षा की परिभाषा
भारतीय दृष्टिकोण मैं शिक्षा की परिभाषा
उपनिषद के अनुसार
सा विद्या या विमुक्ताए।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार
मनुष्य में पूर्व ही अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है।
महात्मा गांधी के अनुसार
शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक तथा व्यक्ति के शरीर तथा आत्मा की सर्वोत्तमता का सर्वांगीण प्रकटीकरण है।
सुकरात के अनुसार
शिक्षा से तात्पर्य मनुष्य के मस्तिष्क में अंतर्निहित सर्वमान्य वैद्य विचारों को आगे बढ़ाना है।
फ्रोबेल के अनुसार
शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बालक अपनी अंतर्निहित शक्तियों को प्रकाशित करता है।
रोस के अनुसार
शिक्षा एक सुनिश्चित तथा महत्वपूर्ण अवधारणा रखने वाले व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति पर इस उद्देश्य से डाला गया प्रभाव है कि वह भी उन अवधारणाओं तथा विचारों का निर्माण कर लें।
डी वी के अनुसार परिभाषा
शिक्षा अनुभव के सतत पुनर्निर्माण के माध्यम से जीवन की प्रक्रिया है यह व्यक्ति में उन समस्त क्षमताओं का विकास है जिनके द्वारा वह अपने पर्यावरण को नियंत्रित करता है तथा अपनी उपलब्धि की संभावनाओं को पूरा करता है।
हरबर्ट के अनुसार
शिक्षा अच्छे नैतिक चरित्र का विकास है।
शिक्षा का वास्तविक अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विभिन्न वैज्ञानिकों की परिभाषा ओं के आधार पर हम यह निकाल सकते हैं कि "शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी सहायता से बालक की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक विकास इस प्रकार होता है कि उसके द्वारा न केवल उसकी व्यक्तिकता का ही विकास हो अपितु वह अपना वह समाज का कल्याण करते हुए अपने भौतक सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के साथ समायोजन स्थापित कर सके।
शिक्षा की विशेषताएं
परिभाषाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो विश्लेषणात्मक कार्य से शिक्षा की निम्नलिखित कुछ अत्यंत विशेषताओं का पता चलता है जो निम्न हैं
- औपचारिक शिक्षा ही शिक्षा नहीं है
बालक जिस शिक्षा को विद्यालय में चेष्टा से या प्रयासों से सीखता है केवल मात्र वहीं शिक्षा नहीं अपितु अन्य अनौपचारिक साधनों से भी वह जो कुछ सीखता है उसे भी हम शिक्षा के दायरे में सम्मिलित करते हैं। वास्तविक रूप से देखा जाए तो हम पाएंगे कि विद्यालय द्वारा बालक जो कुछ सीखता है वह तो हमारी संपूर्ण शिक्षा का बहुत छोटा सा एक भाग है। अपनी शिक्षा का वह बहुत बड़ा भाग तो अन्य अनौपचारिक तथा अपने दैनिक अनुभव से प्राप्त करता है।
2. शिक्षा एक गत्यात्मक प्रक्रिया है
शिक्षा कोई एक्सटीरिया नहीं है यह तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो जीवन के प्रारंभ से जीवन के अंत तक चलती रहती है इस सतत प्रक्रिया से मनुष्य सदैव उन्नति की ओर अग्रसर होता है और अपने व्यवहारों में परिमार्जन या परिवर्तन करता है।
3. शिक्षा जन्मजात शक्तियों का विकास है
शिक्षा बालक या व्यक्ति को अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकती है अपितु यह तो उसमें जो कुछ भी प्रकृति प्रदत क्षमताएं योग्यताएं तथा अभिवृत्ति या हैं केवल उनको ही प्रकाशित कर उनमें उन्नति शील तथा प्रगतिशील परिवर्तन कर सकती है। शिक्षा बालक की प्रकृति प्रदत तथा जन्मजात शक्तियों का विकास करने वाली गत्यात्मक प्रक्रिया है। महात्मा गांधी शिक्षा की इसी विशेषता को आधार मानकर शिक्षा की परिभाषा देते हैं कि शिक्षा और सर्वश्रेष्ठ गुणों का प्रदर्शन है जो बालक एवं मनुष्य के शरीर मस्तिष्क और आत्मा में है।
4. शिक्षा त्रि स्तमभीय प्रक्रिया है
आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक को ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वही एकमात्र स्तंभ है जिस पर संपूर्ण प्रक्रिया आधारित है इस प्रकार शिक्षा एक स्तंभ प्रक्रिया है और शिक्षक ही एकमात्र स्तंभ है। प्रकृति वादी विचारधारा ने आदर्शवादी विचारधारा का विरोध किया और कहा कि अकेला शिक्षक ही शिक्षा का एकमात्र स्तंभ नहीं है। संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में जितना अधिक महत्व शिक्षक का है उतना ही अधिक महत्व शिक्षार्थी का है क्योंकि शिक्षक शिक्षा प्रदान करता है तो शिक्षार्थी उसे ग्रहण करता है। इसलिए प्रेषक तथा प्राप्त करता दोनों को ही सम्मान महत्व दिया जाना चाहिए। इस प्रकार प्रकृति वादी विचारधारा ने शिक्षा को द्वी स्तंभ प्रक्रिया कहां है।
कल अंतर में जॉन डीवी तथा व्यवहारवादी विचारों ने मत व्यक्त किया की संपूर्ण प्रक्रिया में जितना महत्वपूर्ण स्थान शिक्षक तथा छात्र को प्राप्त है उतना ही अधिक महत्वपूर्ण स्थान उसे विषय वस्तु या पाठ्यक्रम का है जिसकी शिक्षा उसे प्राप्त करनी है क्योंकि पाठ्यक्रम ही बालक की शिक्षा की दिशा मात्रा तथा किस्म को निर्धारित करता है। पाठ्यक्रम के अनुसार ही शिक्षक बालक की शिक्षा को निर्धारित करता है। पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षा दिशाहीन तथा ए निश्चित हो जाएगी इस प्रकार शिक्षा जगत में शिक्षक शिक्षार्थी तथा पाठ्यक्रम तीनों ही समान महत्व रखते हैं। शिक्षा को इस त्रि सत्तर प्रक्रिया बना दिया गया। आज भी शिक्षा को त्रिस्तम प्रक्रिया के रूप में ही स्वीकार किया जाता है।
5. शिक्षा सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है
शिक्षा का कार्य बालक की कुछ विशिष्ट शक्तियों तथा क्षमताओं का विकास करना नहीं है 7 साथी शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक के व्यक्तित्व के सभी पक्षों का विकास करने का प्रयास किया जाता है शिक्षा के द्वारा उसके विकास के सभी आयामों को प्रभावित करने की चेष्टा की जाती है। शिक्षा का कार्य संपूर्ण व्यक्ति का निर्माण करना है वह व्यक्ति कि केवल स्मरण शक्ति या कल्पना सामाजिकता दिल हरदे आत्मा अथवा शरीर का भी विकास नहीं करती अपितु संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है।
6. शिक्षा समायोजन की प्रक्रिया है
व्यक्ति का संतुलित विकास तभी संभव है जब है अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित कर ले अपने स्वयं के तथा अपने वातावरण के साथ जब तक व्यक्ति का समायोजन नहीं होगा व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहेगी उसमें चिंता तथा तनाव रहेगा फलता वह मानसिक उद्योगों से पीड़ित रहेगा और किसी भी प्रकार के अनुभव प्राप्त नहीं कर सकता आएगा शिक्षा के द्वारा बालक में पर्यावरण के साथ समायोजन करने की शक्ति विकसित की जाती है जिससे वह मानसिक संघर्षों से बचता हुआ अपना संतुलित विकास कर सके।
7. शिक्षा व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया है
मूलत प्रत्येक बालक के व्यवहार जन्मजात तथा प्रकृति प्रदत होते हैं। फाल्ट है उनमें नियोजन संगठन तथा व्यवस्था का अभाव होता है एक प्रकार से वे मूल समय तथा जंगली पान लिए हुए तथा पशु तुल्य होते हैं। शिक्षा के द्वारा इन व्यवहारों को समाज उपयोगी बनाया जाता है उनमें व्यवस्था तथा प्रणाली का प्रवेश किया जाता है तथा उनको सुधार कर इस प्रकार का रूप दिया जाता है कि उनकी सहायता से वह अपना समाज का तथा राष्ट्र का सर्वाधिक हित कर सके।
8. शिक्षा अनुभव का सतत पुनर्गठन है
मनुष्य तथा बालक अपने दैनिक जीवन में विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त करते हैं कुछ व्यक्ति अपने अनुभव से लाभ उठाकर अपने व्यवहार का परिवर्तन कर लेते हैं तथा नई-नई क्षमताओं से कौशलों का विकास कर लेते हैं यही शिक्षा कहलाती है जबकि कुछ लोग अपने अनुभव से लाभ नहीं उठा पाते हैं व्यक्ति जब अपने अनुभव से लाभ उठाता है तब वह उस लाभ के कारण अपने अनुभव का पुनर्गठन करता है जिससे प्रत्येक अनुभव उसे अधिकतम लाभ दे सके और उसकी शिक्षा प्रणाली में ऐसा स्थान ग्रहण कर सके जहां से वह उस अनुभव का सर्वोत्तम लाभ ले सके इसलिए कहा जाता है कि शिक्षा अनुभव का पुनर संगठन है।
साक्षरता के रूप में शिक्षा। विज्ञान और कला दोनों के रूप में शिक्षा। ण किया जाएपरी भाषाओं का यदश्लेषण किया जाए
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