समावेशी शिक्षा: अर्थ,अवधारणा ,परिभाषाएं,महत्व,विशेषता

      समावेशी शिक्षा

                       Course- 11

 ( Samaveshi Shiksha )

 : अर्थ,अवधारणा

 ,परिभाषाएं,विशेषता,महत्व


समावेशी शिक्षा की अवधारणा 

समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा होती है जिसमें सामान्य बालक बालिकाएं और मानसिक या शारीरिक रूप से बाधित बालक एवं बालिकाओं सभी एक साथ बैठकर एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। 

समावेशी शिक्षा सभी नागरिकों के सामान्य अधिकार की बात करता है इसलिए इसके सभी शैक्षणिक कार्यक्रम इसी प्रकार से निर्धारित किए जाते हैं। ऐसे संस्थानों में विशिष्ट बालकों के अनुरूप प्रभावशाली वातावरण तैयार किया जाता है और नियमों में कुछ छूट दी जाती है जिससे विशिष्ट बालकों को समावेशी शिक्षा के द्वारा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।

                              
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समावेशी शिक्षा क्या है

 ( समावेशी शिक्षा का अर्थ ):-

समावेशी शिक्षा अंग्रेजी भाषा के शब्द इंक्लूसिव(inclusive) एजुकेशन का हिंदी रूपांतरण है। समावेशी शिक्षा:- सामान्य  विद्यार्थी तथा विशिष्ट बिना किसी भेदभाव के एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं।



समावेशी शिक्षा की परिभाषा:-

यरसेल के अनुसार

समावेशी शिक्षा के कुछ कारण योग्यता, लिंग, प्रजाति, जाति ,भाषा, चिंता का स्तर, सामाजिक और आर्थिक स्तर विकलांगता व्यवहार या धर्म से संबंधित होते हैं।


स्टीफन ब्लैक हार्ट के अनुसार


शिक्षा के मुख्य धारा का अर्थ बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना या सम्मान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा प्रयुक्त सामाजिक मानवीकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व :-

समावेशी की प्रक्रिया विकलांग और बिना विकलांग दोनों छात्रों के लिए अधिक प्रभावी है। पिछले 3 दशकों में अध्ययनों में पाया गया कि समावेशी शिक्षा विकलांग बच्चों को अधिक हासिल करने और बेहतर कौशल प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

समावेशी कक्षाओं में भाग लेने वाले विकलांग या असम छात्र अकादमिक क्षेत्र में अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाते हैं।

विविध अनुभव रचनात्मक सोच की ओर ले जाते हैं इसलिए रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए कक्षा की विविधता ही एकमात्र तरीका है इसलिए विविधता समावेशी शिक्षा का एक प्रमुख तत्व है समावेशी शिक्षा में बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्रदान की जाती है 

विशेष शिक्षा (spcial Education)

विशेष शिक्षा शिक्षा शिक्षा शास्त्र की वह शाखा है जिसके अंतर्गत उन बच्चों को शिक्षा दी जाती है जो सामान्य बालको से शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक रूप से थोड़े अलग होते हैं विशेष बालको से तात्पर्य यह है कि वह बच्चे जो सामान्य से प्रतिभाशाली होते हैं या काफी कम होते हैं। ऐसे बालक विशेष आवश्यकताएं पाते हैं। किसी विशेष शिक्षा उन बालकों को प्रदान की जाती है जो किसी विकलांगता से ग्रसित हो या अधिक प्रभावशाली या प्रतिभावान है।

परिभाषाएं

कर्क के अनुसार

विशेष शिक्षा शब्द शिक्षा के उन पहलुओं को इंगित करता है जिसे विकलांग एवं प्रतिभाशाली बच्चों के लिए किया जाता है लेकिन औसत बालकों के मामले में प्रयुक्त नहीं होता। 

हरहान और कोफमेन के अनुसार

विशेष शिक्षा का अर्थ विशेष रूप से तैयार किए गए साधनों द्वारा विशेष बालकों को प्रशिक्षण प्रदान करना।

विशेषताएं

विशिष्ट शिक्षा विशेष बच्चों को समाज के साथ समायोजन में सहायता करती है। विशेष शिक्षा विशेष बच्चों की पहचान में निदान में सहायता प्रदान करती है। सामान्य विद्यालय में विशेष सेवा के साथ विकलांगता बालकों को सीखने की सुविधा प्रदान करती है। जब विशेष शिक्षा के बारे में सोचा जाता है तो प्रतिभाशाली और अन्य ऐसा धारण बालकों को विशेष कार्यक्रम आयोजित करके ज्ञान प्राप्त होता है। यह बच्चे सामान्य कक्षा के विद्यार्थियों से अलग-अलग रहते हैं लेकिन यह मनोवैज्ञानिक सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अस्वस्थ हैं।


परिभाषाएं 

भारतीय शिक्षा आयोग

विकलांग बालकों की शिक्षा सामान्य शिक्षा प्रणाली का अविभाज्य हिस्सा होनी चाहिए। 

Namgyel  के अनुसार

एकीकृत शिक्षा शिक्षा का तात्पर्य किसी दिए गए उदाहरण में व्यवहार और लाभकारी सीमा तक चल रहे नियमित शिक्षा कार्यक्रम में विकलांग बच्चों की सार्थक भागीदारी है जिसका अंतिम लक्ष्य इष्टतम शैक्षणिक सामाजिक और साथ ही व्यक्तिगत है।



विशेषताएं

यह विकलांग बच्चों पर विशेष जोर देता है। एकीकृत शिक्षा सभी विकलांग बच्चों के लिए मुख्य धारा की सुविधा प्रदान करती है। यह विकलांगों को सामाजिक दुनिया में रहने के लिए व्यापक दायरे प्रदान करता है। यह सामान्य स्कूल में विकलांग बच्चों को विशेष बल प्रदान करता है। एकीकृत शिक्षा अपनी प्रणाली में विकलांग और गैर विकलांग दोनों प्रकार के बालकों को शामिल करती है।


समावेशी शिक्षा


यह आधुनिक धारणा है जिसमें सभी बालकों को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है।इस संपूर्ण शिक्षा का भाग समझा जाता है जो बाधित एवं सामान्य बालकों को एक साथ लाती है।समावेशी शिक्षा विशेष अधिगम के नए आयाम खोलती है। समावेशी शिक्षा समानता एवं बंधुत्व के सिद्धांत पर आधारित है।समावेशी शिक्षा का आधार मनोवैज्ञानिक एवं छात्र अधिगम केंद्रीय पर होता है।


विशेष शिक्षा


विशेष शिक्षा प्रतिभाशाली अपंग बालकों के लिए प्राचीन धारणा है पूर्ण विधान इस संपूर्ण शिक्षा का एकीकरण भाग नहीं समझा जाता है जो बाधित बालकों को दी जाती है। विशेष शिक्षा व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं शिक्षण कार्य क्षेत्र में मार्गदर्शन करती है। विशेष शिक्षा एक प्रकार से भेदभाव पर आधारित होती है। विशेष शिक्षा का  स्वरूप कुछ सीमा तक चिकित्सा या स्वास्थ्य शिक्षा जैसा होता है।


एकीकृत शिक्षा


एकीकृत या समेकित शिक्षा यह विशेष शिक्षा का नवीन एवं प्रगतिशील स्वरूप है।इस संपूर्ण शिक्षा का बाधित बालकों के लिए एक भाग समझा जाता है जो बाधित बालकों को कुछ अधिक सहायता प्रदान करता है। एकीकृत शिक्षा सामान्य शिक्षा के साथ विशेष विधान उपलब्ध कराती है। एकीकृत शिक्षा समानता के सिद्धांत पर आधारित होती है।समेकित या एकीकृत शिक्षा का आधार मुख्य रूप से मनोवैज्ञानिक होता है । 


शिक्षा के अधिकार के संदर्भ में सभी बालकों के लिए समावेशी शिक्षा


उपयुक्त शिक्षा की प्राप्ति:-


विकलांगता ग्रसित व्यक्तियों को विकलांगता के आधार पर सामान्य शिक्षा प्रणाली से अलग नहीं रखा जा सकता तथा सक्षम सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी विकलांग व्यक्तियों की विकलांग का ग्रसित महिलाओं तथा लड़कियों की उपयुक्त प्रणाली उपयुक्त शिक्षक प्रणाली तक पहुंचे हो अन्य के साथ समानता के आधार पर।


सक्षम सरकार तथा प्रतिष्ठान:-


बालकों को निशुल्क तथा अनिवार्य माध्यमिक शिक्षा सुनिश्चित करेगी। सक्षम सरकार तथा प्रतिष्ठान यह सुनिश्चित करेगी कि समावेशी शिक्षा जीवन पर्यंत शिक्षक पर आधारित होगा।


प्रवेश का अधिकार:-


यदि किसी बालक ने किसी स्कूल में समुचित आयु में प्रवेश नहीं लिया है लेकिन अपनी शिक्षा स्वयं की विकलांगता या असक्षमता के कारण पूरा करने में सफल रहा हो तब ऐसे बालकों को उनकी आयु के अनुरूप किसी भी कक्षा में प्रवेश दिलाया जाएगा।


अंतरण या स्थानांतरण का अधिकार:-


किसी ऐसे विद्यालय में जहां प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा पूरी करने की सुविधा न हो तो ऐसे बालकों को यह अधिकार होगा कि किसी दूसरे विद्यालय में प्रवेश की सुविधा उपलब्ध है।


सहयोग का अधिकार:-


प्रत्येक बालक को उसकी प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा पूरा करने में आवश्यक पर्याप्त तथा समुचित सहयोग पाने का अधिकार होगा।विकलांगता ग्रसित प्रत्येक व्यक्ति को इसकी उच्च शिक्षा पूरा करने के लिए समुचित सहायता पाने का अधिकार होगा। प्रत्येक बालक को सभी विद्यालय में पहुंचने का अधिकार है तथा सक्षम सरकार का यह कर्तव्य है कि वह पहुंचने योग्य भवन बनवाएगी।


उच्च शिक्षा का अधिकार :-


विकलांग महिलाओं सहित किसी भी विकलांग व्यक्ति को उच्च शिक्षा संस्थानों में उनके विकलांगता के आधार पर यदि वे ऐसे प्रवेश के सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं जिन्हें इस अधिनियम अथवा अधिनियम में बांटा जाता है प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।

सभी सक्षम सरकार तथा शैक्षणिक संस्थान यदि ऐसा यह उचित समझते हैं विविधता में वृद्धि कर सकते हैं तथा अवसरों की समानता को प्रोत्साहित करने के लिए निर्धारित कार्य विधि के अनुरूप किसी विकलांग व्यक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम अंकों में छूट दे सकते हैं।


उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण:-


सभी उच्च शिक्षासंस्थान प्रत्येक कोर्स में विकलांगता घोषित व्यक्तियों के लिए 6% सीट आरक्षित रखेंगे।


उच्च शिक्षा में सहायता:-


विकलांग ग्रसित प्रत्येक व्यक्ति को जिसे उच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेना है उसे पर्याप्त आवश्यक तथा लैंगिक संवेदनशील गतिविधियों में वह ऐसे संस्थान का प्रतिनिधित्व करता है उन्हेंऐसी परीक्षा में सहायता प्राप्त होगी।




शिक्षकों की अरहर्ता :-


प्रत्येक विद्यालय तथा शिक्षण संस्थानों में आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक कर्मचारी होना चाहिए ताकि सभी प्रकार के विद्यार्थियों की आवश्यकता की पूर्ति कर सके।


विद्यालय में सुविधा :-

जिन्हें आवश्यक पर रहतातथा निर्धारित प्रशिक्षण प्राप्त है इस अनुपात को प्राप्त करने के लिए शख्स में अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि निर्देशित अनुपात ऐसा हो कि विकलांग व्यक्तिइस संबंध में निर्देशित शिक्षा के लक्षण की प्राप्ति कर सके।


स्थानीय सर्वेक्षण:-

इस अधिनियम को पारित करने तथा इसके क्रियान्वयन  के पूर्व सक्षम सरकार पूरे देश में स्थानीय सर्वेक्षणका संचालन करेगी ताकिविकलांगता ग्रसित बालकों की भौतिक उपस्थित ज्ञात हो सके तथा आज पड़ोस मेंरिसोर्स या स्त्रोतकेंद्र अथवा विशेष विद्यालय जो भी मामला हो तथा उपयुक्त विद्यालय की स्थापना एवं समुचित व्यवस्था हो सके।


माता-पिता का कर्तव्य:-

प्रत्येक माता-पिता अथवा अभिभावक का कर्तव्य होगा कि अपने बच्चों या आश्रित को जो भी मामला है किसी निकटवर्ती विद्यालय विशेष विद्यालय में प्रवेश करवा या प्रवेश की व्यवस्था करवाजिन बालकों की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरा करने के लिए माता-पिता का अभिभावक द्वारा चयनित किया गया हो।


विद्यालय का कर्तव्य:-

कोई भी विद्यालय या व्यक्ति किसी बालक के प्रवेश के दौरान किसी भी तरीके से फीस नहीं वसूलेगा तथा किसी बच्चे अथवा माता-पिता अथवा अभिभावक को किसी भीस्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा।


विद्यालय प्रबंधन समिति:-






       यूनिट- 2 


संकल्पना और नीति परिप्रेक्ष्य :- 

समावेशी शिक्षा कब लागू हुई? 

भारतीय शिक्षा आयोग की सिफारिश है 1964 से 66:-


भारत का प्रथम प्रोफेसर दौलत राम कोठारी शिक्षा आयोग1964 से 66 के अनुसार विकलांग या असक्षम बच्चों के लिए शिक्षा का प्रथम कार्य है कि सामान्य बालकों की आवश्यकताओं के अनुसार ही उनकी पूर्ति के दिए तैयार करें। इसलिए कहा गया है कि विकलांग बच्चों की शिक्षा सामान्य प्रणाली के बालकों की शिक्षा का एक अभिन्न अंग को अंतर केवल बच्चों को पढ़ने की विधि और बच्चों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपनाए गए स्रोतों में होगा।


इस क्षेत्र में अभी तक काफी अधिक कार्य किया गया है लेकिन स्थिति में कोई अधिक परिवर्तन दिखाई नहीं देता है इस क्षेत्र हेतु शिक्षा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विकलांग बच्चों की शिक्षा की अनुशंसाया सिफारिश में कार्रवाई योजना के अंक के रूप में शैक्षणिक सुविधाओं को प्राप्त करने का प्रावधान रखा गया है।


सामान्यतः विद्यालय में विकलांग बच्चों को रखना मानसिक रूप से कष्ट कर प्रतीत होता है।

कोठारी आयोग की सिफारिश के बाद 1974 में विकलांग बालकों की शिक्षा का दायित्व समाज कल्याण मंत्रालय को सोपा गया। विकलांग बालकों के लिए समावेशी शिक्षा योजना के अंतर्गत चयनित सामान्य विद्यालयों में विकलांग बालक बालिकाओं को सामान्य बच्चों के साथशिक्षा देने की शुरुआत हुई।


जिससे इन बाल बालिकाओं का मनोवैज्ञानिक विकास हो सके। तथा विकलांग बालकों की पुस्तक के सामग्रीय वेशभूषा ऐश परिवहन भत्ता उपकरण तथा उनकी शिक्षण हेतु नियुक्त शिक्षकों के वेतन आदि की सुविधा राज्य सरकार एवं वित्तीय सहायता के रूप में केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई गई।

वर्ष 1974 से 76 में समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा विकलांग बच्चों की शिक्षा हेतु केंद्रीय योजना की शुरुआत की गई।

वर्ष 1982-83 में इस योजना को शिक्षा विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया तथा विकलांग बालकों को शिक्षा देने तथा अत्यधिक सुविधा प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना की गई।



दृष्टि बाधित राष्ट्रीय संस्थान देहरादून उत्तराखंड।

सरवन वादी के राष्ट्रीय संस्थान मुंबई महाराष्ट्रपूर्ण

मंदबुद्धि राष्ट्रीय संस्थान सिकंदराबाद हैदराबाद

अस्थि विभाग राष्ट्रीय संस्थान कोलकाता पश्चिम बंगाल।


सन 1980 के दशक में विकलांग बालकों को न्यूनतम प्रतिबंधित वातावरण में शिक्षा देने की अवधारणा ने जोरपकड़ा और

1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांगता वर्ष घोषित किया गया तथा समाज कल्याण मंत्रालय ने विकलांग बालकों को शिक्षा देने वाले संगठनों की सहायता के लिए तीन योजनाए प्रारंभ की:-


  1. विकलांग बालकों को शारीरिक पुनर्वास के लिए आवश्यक सहायता देने का कार्य पंजीकृत संस्थाओं को अनुदान देकर किया गया जिसमें2500 से 3000 तक केमूल्य के उपकरणोंया टीचिंग एडस को विकलांग बच्चों को निशुल्क उपलब्ध करवाई ।

  2. विकलांग बच्चों की पहचान शिक्षा पुनर्वास सेवा हेतु सुरक्षित संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की गई।

  3. विकलांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना एवं सम्मान पूर्वक जीवन जीने में सक्षम बनाने हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए गए तथा शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों की कक्षा 9 से सन्नाटक उत्तरवह व्यावसायिक शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की गई उपर्युक्त विवरण में वर्णित सभी कार्यक्रम एवं सहायता भारतीय शिक्षा आयोग का परिणाम है।


राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्रारूप 2005 (समावेशी शिक्षा के संदर्भ में)


समावेशन का अपने आप में कोई विशेष अर्थ नहीं होता इसके चारों ओर वैचारिक दार्शनिक सामाजिक और शैक्षणिक ढांचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है। समावेशन की प्रक्रिया में बच्चों को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है बल्कि यह सीखने का विश्वास करने के लिए भी सक्षम बनाया जाता है जो कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। वर्तमान में विशेष नहीं शैक्षणिकके आवश्यकताओं वालेबालकों के लिए शिक्षा की दो प्रकार की व्यवस्थाएं हैं :- 


एक वह जिन्हें हम विशेष विद्यालय कहते हैंजोज्यादातर शहरों में स्थित आवासीय विद्यालय हैं जिनका उद्देश्य केवल एक प्रकार के विशिष्ट बालकों की विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है।दूसरा यह कि उन्हें अन्य सभी बालकों के साथ आसपास के सामान्य विद्यालय में भेजा जाए और वही उनकी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने की व्यवस्था की जा सके। इस प्रकार के विद्यालय में सभी बालक मिलजुल करें एक दूसरे के सहयोग से सीख सकते हैं। परंतु बालकों को बाद में इस समाज में रहना है जिनका वह हिस्सा है इसलिए क्यों ने बालक को प्रारंभ से ही इस माहौल में रखा जाए जहां उसे विद्यालय की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात रहना है। इसलिए अच्छा होगा कि आरंभ से बालक को मुख्य धारा वाले ऐसे विद्यालय में भेजा जाए जहां अन्य सामान्य बालक भी जाते हैं। इसी अवधारणा के साथ समावेशी शिक्षा प्रणाली का आरंभ हुआ। समावेशी शिक्षा कातात्पर्य ऐसी प्रणाली से है जिसमें प्रत्येक बालक को चाहे वहविशिष्ट हो या सामान्य बिना किसी भेदभाव के एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीक व सामग्री के साथ उनकी सीखने सिखाने की जरूरत को पूरा किया जा सके।



समावेशी शिक्षा का महत्व और आवश्यकता है:-

समावेशी शिक्षा प्रत्येक बालक के लिए उच्च आकांक्षाओं के साथ उसकी व्यक्तिगत शक्तियों को विकास करती है।

समावेशी शिक्षा अन्य बालको या अपने स्वयं की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं में सामाजिक से बैठने में मदद करती है।

समावेशी शिक्षा सम्मान औरअपनेपन कीभावनाके साथ-साथ विद्यालय में व्यक्तिगतमतभेदों को स्वीकार करने केअवसर प्रदान करती हैं।


समावेशी शिक्षाबालक को अन्य बालकों के साथ कक्षा कक्ष की सम्मान गतिविधियों में भाग लेने और व्यक्तिगत लक्षण पर कार्य करने के लिए अभी प्रेरित करती है।


समावेशी शिक्षा बालकों की शिक्षा की गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी सम्मिलित करने की वकालत करती है।


समावेशी शिक्षा हेतु रणनीतियां:-


समावेशित विद्यालय वातावरण:-


बालकों की शिक्षा चाहे वह किसी भी स्तर की हो उसमें विद्यालय के वातावरण का बहुत योगदान होता है विद्यालय का वातावरण नहीं कुछ तथ्यों की शिक्षा बालकों को स्वयं देता है। समावेशित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण सुखद और स्वीकार्य होना चाहिए इसके अतिरिक्त विद्यालय में विशेष बालकों की विशेष सेक्स निकल सकता हूं की पूर्ति हेतु आवश्यक साधु सामान शैक्षणिक सहायताओं उपकरणों संसाधनों भवन आदि का समुचित प्रबंध आवश्यक है बिना इसके विद्यालय में समावेशित माहौल बनाने में कठिनाई हो सकती है।


बालकों के अनुरूप पाठ्यक्रम:-


बालकों को शिक्षित करने का सबसे असरदार तरीका है कि उन्हें खेलने के तरीकों तथा गतिविधियों के माध्यम से सीखने का प्रयास करें। समावेश शिक्षा व्यवस्था के लिए आवश्यक है कि विद्यालय पाठ्यक्रम बालकों की अभिव्यक्तियोंमनोवृतियों आकांक्षाओं तथा क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम में विविधता हुए पर्याप्त लचीलापन होना चाहिए ताकि उसे प्रत्येक बालक के क्षमताओं आवश्यकताओं तथा रुचि के अनुसार बनाया जा सके। बालकों की विभिन्न योग्यताओं में क्षमताओं का विकास हो सके।



मार्गदर्शन और निर्देशन की व्यवस्था:-


समावेशी विद्यालय में सभी बालकों को उचित मार्गदर्शन में परामर्श मिलना चाहिए ताकि बालक उनका अनुसरण करके शिक्षा प्राप्त कर सके। मार्गदर्शन में परामर्श चाहे वह शैक्षणिक हो या शहर शैक्षणिक बालकों को मिलना अति आवश्यक है।


सामुदाय की सक्रिय साझेदारी:-


किसी भी प्रकार की प्रणाली व शिक्षा को संचालित करने के लिए स्थानीय समुदाय व समाज की साझेदारी और प्रशासन की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। समाज की साझेदारी से ही किसी भी शिक्षा प्रणाली को उचित मनाया जा सकता है।


शिक्षकों को प्राप्त प्रशिक्षण:-


किसी भी समावेशी विद्यालय को व्यवस्थित रूप से चलने के लिए आवश्यक है कि उसे विद्यालय में रखी शिक्षक को उचित प्रशिक्षण प्राप्त होना चाहिए ताकि वह कक्षा कक्षा के अनुरोध का अपनी शिक्षक वीडियो में उचित सहायक सामग्रियों का प्रयोग करके प्रभावी बना सके और एक समावेश की कक्षा कक्षा का निर्माण कर सके।


बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन:-


बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में एक मानव अधिकार पर एक संधि है जो बच्चों के नागरिक राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य एवं सांस्कृतिक अधिकारों को परिभाषित करता है इसके अतिरिक्त सम्मेलन किसी भी मानव समुदाय के बच्चों को जो 18 वर्ष से कम है की व्याख्या करता है।


इस सम्मेलन में संबंधित सभी राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार शर्तों का पालन करना जरूरी है। इससे संबंधित शिकायतों का निरीक्षण संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकारों से संबंधित समिति द्वारा किया जाता है जिसके सदस्य विश्व के हर भाग से होते हैं सम्मेलन के एजेंट का अनुमोदन करने वाले सदस्य राष्ट्र की सरकारी संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति को हर वर्ष अपनी प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए वचनबद्ध है जिसका निरीक्षण चयनित राष्ट्रों से संबंधित समिति करती है संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने इस सम्मेलन को अंगीकार किया तथा इस पर हस्ताक्षर करने के लिए 20 नवंबर 1989 तक का समय दिया गया तथा यह दिनांक 2 सितंबर 1990 से प्रभावित हो गई।


वर्तमान में 196 राष्ट्र इससे जुड़े हैं। इसके अंतर्गत दो वैकल्पिक के प्रोटोकॉल 25 में 2000 को अंगीकार किए गए प्रथम वैकेंसी प्रोटोकॉलअनुच्छेद बच्चों कोसैनिक विवादों से दूर रखा जाएगा द्वितीय प्रोटोकॉल बच्चों को बेचेव उनका यौन शोषणएवं बाल पॉर्नोग्राफी को प्रतिबंधित करता है।


उक्त दोनों का 150 राष्ट्रों ने अनुमोदन किया। यह सम्मेलन बच्चों की विशेष आवश्यकताओं एवं अधिकारों से संबंधित है। यह है सम्मेलन यह चाहता है कि राष्ट्र बच्चों से संबंधित मुद्दों पर रुचि ले यह सोच अधिकांश राष्ट्रों में पाए जाने वाले सामान्य नियमों से बिल्कुल भिन्न है।


यह सम्मेलन प्रत्येक बच्चे की मूलभूत अधिकारों जिसमें जीने का अधिकार एवं उनके नाम एवं पहचान के अधिकार शामिल है इसके अतिरिक्त यह माता-पिता के साथ संबंधों को पुनर प्रवासी थे करता है।


सम्मेलन यह चाहता है कि बच्चों को अपनी मौलिक अभिव्यक्ति विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता सम्मेलन यह भी चाहता है कि सदस्य राष्ट्र माता-पिता को उनके उत्तरदायित्व का एहसास करवा उनके प्रति होने वाले दुराचारों को रोका जाए एवं उनकी निजता (privacy) सम्मान हो ।


सम्मेलन सदस्य राष्ट्रों से यह अपेक्षा करता है कि बच्चों को अलग से कानूनी प्रतिनिधित्वप्रदान किया जाए ताकि उससे संबंधित किसी न्यायिक विवाद में उनके पक्ष को भी सुना जाए:- नौ लोगों की समितिहोनी चाहिए।


यह बच्चों के प्रति बड़े दंड का विरोध करता है। अनुच्छेद 19 में यह प्रावधान है कि बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक मानसिक हिंसा से बचने के लिए आवश्यक कानूनी प्रशासनिक सामाजिक एवं शैक्षणिक उपाय किए जाएंगे ।


सम्मेलन के आपराधिक दंड से संबंधित प्रावधान के संबंध में सदस्य राष्ट्रों में विवाद की स्थिति है जिसमें आस्ट्रेलिया कनाडा और ग्रेट ब्रिटेन शामिल है।


भारत में UNCRC का अनुमोदन 11 दिसंबर 1992 को किया।भारत इसके सभी सिद्धांतों एवं क्षेत्र पर सहमत है केवल बाल श्रम के मुद्दे पर विरोधाभास की स्थिति है। भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से बाल श्रम करवाना कानूनी अपराध है।भारत मेंअक्टूबर 2006 में यह कानूनी प्रावधान किया गया था कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से होटल एवं घरेलू नौकर के रूप में कार्य करवाना कानूनी अपराध है एक अनुमान के अनुसार भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बाल श्रमिकों की संख्या लगभग 4 मिलियन तथा 14 वर्ष से अधिक आयु के बाल श्रमिकों की संख्या 60 मिलियन है।


भारत सरकार ने इस दिशा में गंभीर प्रयास किए हैं विभिन्न संगठनों की स्थापना कर इस स्थिति को सुधारने का प्रयास किया भारत सरकार ने अपनी नीतियों में बाल देख बाल को विशेष रूप से रेखांकित किया 


UNESEF ने भी भारत सरकार के इन प्रयासों में सहयोग प्रदान किया है। भारत में इस हेतु विभिन्न संस्थाएं बनाई गई जिसमें चाइल्ड राइट्स एंड यू (CHILD RIGHTS AND YOU) ,Save the children,बाल विकास धरा नई दिल्ली बचपनबचाओ आंदोलन आदि संस्थाएं प्रमुख हैं अतः हम कह सकते हैं कि UNO एक वैश्विक संस्था के रूप में बाल अधिकारों के प्रति सजग होकर विभिन्न राष्ट्रों में अपनी भूमिका का निर्वाह है कर रहा है।


निष्कर्ष:-


संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन बच्चों के नागरिक सामाजिक आर्थिक व स्वास्थ्य के अधिकारों को परिभाषित करता है।

विरामवर्तमान में इसके कुल सदस्य देशों की संख्या 196 है।

विरामसंयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा इसको अंगीकार किया गया और सदस्यों को हस्ताक्षर करने के लिए 20 नवंबर 1989 तक का समय दिया गया था।दिनांक 2 सितंबर 1990 से यह प्रभावित हो गया था।


इस सम्मेलन द्वारा 25 may 2000 को दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल को अंगीकार किया पहले बच्चों को सैनिक विवादों से दूर रखना।दूसरा बच्चों को बेचना यौन शोषण पोर्नोग्राफी को प्रतिबंधित करना।


इन प्रोटोकॉल का अनुमोदन केवल 150 राष्ट्रों ने किया।


यह सम्मेलन बच्चों के नाम पहचान व माता-पिता के साथ संबंधों को भी परिभाषित करता है।

यह सम्मेलन बच्चों के माता-पिता को उनके उत्तरदायित्व का अहसास करवाता है और बच्चों की निजता का सम्मान करता है।


यह बच्चों के लिए बड़े दंड का विरोध करता है। यह सम्मेलन बाल श्रम का भी विरोध करता है।



बच्चों की उत्तरजीविका सुरक्षा एवं विकास पर विश्व घोषणा:-


बच्चों के लिए यूनिसेफ, विश्व बैंक 1990 के परिणाम:-


  1. यूनिसेफ द्वारा बच्चों की उत्तरजीविका सुरक्षा एवं विकास पर एक विश्व बैठक का आयोजन किया गया जिसमें काफी विचार विमर्श कर विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाते हुए 30 सितंबर 1990 को एक विश्व घोषणा जारी की गई जिसके मुख्य परिणाम निम्न लिखित है:-


2) विश्व के बच्चे मासूम मूल्यवान और आश्रित हैं यह क्रियाशील और आशाओं से परिपूर्ण भी है इनका यह समय उल्लास एवं शांति खेलने सीखने और बढ़ने से संबंधित है होना चाहिए एवं उनका भविष्य समाधान से परिपूर्ण होना चाहिए इनका जीवन चिताओं को पीछे छोड़ते हुए एवं नए अनुभव को ग्रहण करने वाला होना चाहिए 


3) परंतु अधिकांश बच्चों के बचपन की वास्तविकता इससे अलग है :-


चुनौतियां:-


विश्व में चारों ओर प्रतिदिन अनगिनत बच्चे खतरों के भुखमरी के सानिध्य में विकास करते हैं वे व्यक्ति ने ही युद्ध की बीसी का और हिंसा को जेल रहे हैं इसके अतिरिक्त हुए नस्लीय भेदभाव क्षेत्रीय भेदभावप्रतिगमिता विदेशी बाध्यताओं में जीते हुए शरणार्थियों विस्थापित हो रहे हैं उन्हें उनके घरों एवं जड़ों से बलपूर्वक दूर किया जा रहा है वह अवहेलना और कुर्ता के शिकार बनते जा रहे हैं प्रतिदिन लाखों बच्चे गिरवी एवं आर्थिक वरदान के कारण घर से बिछड़ना निरक्षरता पर्यावरणीय समस्याओं को जानने के लिए अभिशप्त हैं। 


प्रतिदिन 40,000 बच्चे कुपोषण काएड्स स्वच्छ जल की कमी जैसी स्थितियां एवं ड्रग्स नशा से ग्रसित होकर मर जाते हैं ।


यह सभी स्थितियां हमारे लिए एक चुनौती है इसके निदान के लिए हम सभी राष्ट्रसभी राजनीतिक नेताओं को मिलकर प्रयास करने चाहिए। 



अवसर

हम सभी रसों को उनकी समस्याओं को गंभीरता पूर्वक लेते हुए उनके जीवन को विपरीत स्थितियों से बचने का प्रयास करना चाहिए समस्याओं से ग्रसित बच्चों की पूर्ण मानवीय क्षमता से विकास के लिए एक रणनीति बनानी चाहिए जो उनकी आवश्यकताओं अधिकारों एवं अवसरों को पूर्ण कर सकें।
बच्चों के अधिकारों पर यह सम्मेलन नए अवसर उपलब्ध कराते हुए बच्चों के अधिकारों के सम्मान एवं कल्याण को वास्तविक रूप से सार्वभौमिक बनावे।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण में हाल ही में कुछ ऐसे सुधार हुए हैं जो इस कार्य हेतु सुविधा प्रदान करेंगे अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं साक्षमता से अब यह है संभव है कि आर्थिक विकास करते हुए वातावरण की रक्षा करते हुए भयानक रोगों का निदान करते हुए तथा सामाजिक व आर्थिक न्याय को प्राप्त करते हुए इस क्षेत्र में सकारात्मक कार्य किया जा सकते हैं।

हमें संसाधनों के अभाव में बच्चों की सुविधाओं का विशेष तौर से ध्यान रखना होगा।

बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण में वृद्धि करना हमारा प्रथम कर्तव्य है इसके लिए हमें अपना दायरा बढ़ाना होगा हम प्रतिदिन 10000 बच्चों का जीवन उनके मृत्यु के कर्म को सुरक्षा प्रदान कर बचा सकते हैं।

विश्व के बहुत शिक्षकों में बच्चों की मृत्यु दर में कमी को गंभीरता से नहीं लिया जाता है वहां हमें इस क्षेत्र में विशेष कार्य करने की आवश्यकता है।

हमें निष्कता से ग्रसित बच्चों पर भी विशेष ध्यान देना होगा वह बेहद विपरीत परिस्थितियों में जी रहे हैं ।
विश्व में बच्चों की सुरक्षा के लिए महिलाओं की सामान्य एवं निश्चित भूमिका को सशक्त करने की आवश्यकता है लड़कियों को प्रारंभ से ही समान अवसर देने की आवश्यकता है।

वर्तमान में 100 मिलियन से अधिक बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा भी उपलब्ध नहीं हो रही है जिसमें से दो तिहाई लड़कियां है इनमें प्रारंभिक शिक्षा एवं साक्षरता का वैधानिक प्रावधान विश्व के बच्चों की विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

0.5 मिलियन माता शिशु प्रजनन के दौरान प्रतिवर्ष मर जाते हैं सुरक्षित मातृत्व के लिए हमें सभी संभव उपाय अपनाने होंगे इसके लिए परिवार नियोजन एवं परिवार का आकार एक महत्वपूर्ण कारक है जिससे बच्चों को परिवार में बढ़ाने के लिए प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध होता है जो उनकी सुरक्षा व सहायता के लिए बहुत ही आवश्यक है।

सभी बच्चों को उनकी पहचान को खोजने का अवसर मिलना चाहिए उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि वह सुरक्षित हैं उनके कल्याण के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें परिवार एवं अन्य संस्थाओं से प्रोत्साहक वातावरण मिले उन्हें मुक्त समाज में उत्तरदायित्व पूर्ण जीवन के लिए तैयार किया जाना चाहिए।

उन्हें प्रारंभ से ही अपने समाज की सांस्कृतिक जीवन में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

विकासशील देशों में आर्थिक स्थितियां बच्चों को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं जिससे उनका भविष्य बुरी तरह से प्रभावित होता है इसके लिए यह अनिवार्य है कि सतत आर्थिक वृद्धि एवं विकास की नीतियों की पालन की जाए एवं उसे पर लगातार ध्यान दिया जाए इसके लिए विकसित देशों तथा ऋण दाता एजेंसी द्वारा दीर्घ अवधि के लिए कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध है करवाया जाए।

इन प्रयासों के लिए सभी देशों को सतत एवं विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग विशेष भूमिका निभा सकता है।

बच्चों के कल्याण के लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक प्रयास की आवश्यकता है इसके लिए हमें दृढ़ निश्चय करना चाहिए।

हमें बच्चों के अधिकारों को उच्च प्राथमिकता देते हुए अपनी वचनबद्धता को प्रदर्शित करना होगा हमें इस बात पर सहमति बनानी होगी कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए हमें सभी रसों को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।

Unite-4

inclusive curriculum meaning and characteristics

एक समावेशी पाठ्यक्रम उसके सभी छात्रों को समान रूप से सम्मिलित करने का प्रयास करता है, चाहे वे विभिन्न जाति, धर्म, लिंग, विशेषता या अन्य परिचयों से हों। इसमें छात्रों की विभिन्नता को समझने, समर्थन करने, और मूल्यांकन करने का एक प्रमुख उद्देश्य होता है। इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं:

1. सामाजिक समावेश: यह पाठ्यक्रम सभी छात्रों को समाज में शामिल करने का प्रयास करता है, विभिन्न समुदायों को समर्थन और सम्मान प्रदान करते हुए।

2. समर्थन और विशेषता के सम्मान: इसमें हर छात्र की विशेष आवश्यकताओं और समर्थन की देखभाल का प्रयास किया जाता है, साथ ही उनकी विशेषताओं का सम्मान किया जाता है।

3. साक्षरता और संचार कौशल: इसमें सभी छात्रों को अपनी साक्षरता और संचार कौशलों को विकसित करने का मौका मिलता है।

4. संबंधात्मक शिक्षा: यह पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों को एक साथ जोड़कर संबंधात्मक शिक्षा प्रदान करता है, जिससे छात्रों को अधिक समझ मिलती है।

Teaching and learning environment with special reference to inclusive school

एक शिक्षण और सीखने के पर्यावरण को समावेशी स्कूल के संदर्भ में विस्तार से समझाने के लिए निम्नलिखित  को देखें:

एक समावेशी स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां हर छात्र को समानता, समावेश, और समर्थन के लिए स्वागत किया जाता है। यहां पर शिक्षकों का मुख्य उद्देश्य है सभी छात्रों को विशेषज्ञता की दिशा में प्रोत्साहित करना, साथ ही उनके आत्मविश्वास को मजबूत करना।

एक समावेशी स्कूल के शिक्षण और सीखने के पर्यावरण में, हर छात्र को उनकी आवश्यकताओं और योग्यताओं के आधार पर अनुकूलित किया जाता है। यहां पर उन्हें उनके संवार्धन के लिए विशेष सहायता, उपकरण, और समर्थन प्रदान किया जाता है।

शिक्षण प्रक्रिया में, शिक्षकों को छात्रों के विभिन्न शैली और गुणों को समझने और उनके लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम तैयार करने की जरूरत होती है। इसके अलावा, शिक्षकों को छात्रों के साथ निरंतर संवाद और सहयोग का माहौल बनाए रखना चाहिए।

सीखने के प्रक्रिया में, छात्रों को अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए अनुकूलित और प्रेरित किया जाना चाहिए। वे अपनी अवस्थाओं को समझें, अपनी क्षमताओं को पहचानें, और समाधान ढूंढने के लिए संयमित तरीके से काम करें।

समावेशी स्कूलों में, शिक्षा और सीखने के लिए एक उत्साही और सहायक वातावरण होता है, जो हर छात्र को अपनी सफलता की ओर अग्रसर करता है। यहां पर हर छात्र को सम्मान और समर्थन का अनुभव होता है, जो उन्हें अपने पूरे पोटेंशियल की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है।


समावेशीकरण को बढ़ावा देने व अपवर्जन को रोकने के लिए नीतियां:-

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समावेशी शिक्षा pdf

       Course-11

SYLLABUS 2021-23

Course -11

B.Ed. (TWO YEAR COURSE)

Creating an Inclusive School

(CODE: BED-220)


Unite - I

 Introduction, Issues & perspectives of Inclusive Education 

• Definitions, Concept and Importance of Inclusion and Disability, Difference between Special Education, Integrated Education and Inclusive Education.

 Advantages of Inclusive Education for Education for all Children in the context of Right to Education. 

⚫ Meaning, Concept and Need for Inclusive School.

151

SYLLABUS 2021-23

Practicum/Field Work

B.Ed. (TWO YEAR COURSE)

• Observe inclusive teaching strategies in an inclusive classroom and discuss with teacher for further planning. • To investigate the opinion of teachers on the integration of students with disability in normal schools. 

Unit - II Concept & Policy Perspective

Recommendations of the Indian Education Commission (1964-66), National Curriculum Framework, 2005 NCERT, The Convention on the Rights of the Child (specific articles related to inclusive education).
• The World Declaration on the Survival, Protection and Development of Children and the Plans of action (Outcome of the UNICEF World Summit for Children, (1990) Promoting Inclusion Preventing Exclusion, UNESCO Conventions, declaration recommendations related to Rights of persons with Disabilities.


Practicum/Field Work
and
To study the conceptions of teachers about the need of inclusive education in primary schools, then method: collect views of teachers and heads of school.


 Development of Children and the Plans of action (Outcome of the UNICEF World Summit for Children, (1990) Promoting Inclusion Preventing Exclusion, UNESCO Conventions, declaration and recommendations related to Rights of persons with Disabilities.


Practicum/Field Work
To study the conceptions of teachers about the need of inclusive education in primary schools, then method: collect views of teachers and heads of school.
Analyse and interpret results in the light of inclusive education and write a report.
• Explain the main constitutional provisions on inclusive education.

UNIT-III Diversity in the Classroom
⚫ Diversity due to disability: Nature, Characteristic and Needs.
Diversity due to Socio-Cultural and Economic factors: Discrimination, Language Attitudes, Violence and Abuse. • Concept, Nature, and Characteristics of Multiple Disabilities, Classroom Management for Inclusive Education.
⚫ MDGs (Millennium Development Goals) and EPA goal of UNESCO.


152
SYLLABUS 2021-23
B.Ed. (TWO YEAR COURSE)
Practicum/Field Work
Study the educational resources for persons with disability (POD) in local secondary schools, two primary schools of your choice, result may be discussed in school in the present context of teacher education.
• Conduct an awareness program on millennium goal of UNESCO.
• Conduct a survey in the local area to ascertain the
prevailing attitudes/practices toward social, emotional and academic inclusion of children with diverse needs. • Conduct a survey on the type of supportive service needed for inclusion of children with any disability and share the findings in the class.


UNIT-IV Curriculum & Pedagogy in Inclusive School

 ⚫ Inclusive Curriculum- Meaning and Characteristics. 
⚫ Teaching and Learning Environment with special reference to Inclusive School.
⚫ Guidelines for adaptation for teaching/practicing Science, Mathematics, Social Sciences, Languages in Inclusive settings.


Practicum/Field Work
⚫ Planning and conducting multi level teaching in the persons with disabilities (two classes).
To study the barriers/problems in relation to development of positive policy regarding inclusive teaching-learning practices in local private schools/schools in slums/rural areas, method may be: collection of the views of managing committees/heads/teachers on development of positive policy regarding inclusive teachers-learning facilities. Write a report on entire activity and present it in classroom presentation.(among peer group
)

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